
ट्रंप ने पहले 50 फीसदी टैरिफ लगाकर भारत से एक्सपोर्ट्स के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी. टैरिफ बढ़ने से हुए झटके के बीच ट्रंप ने एक और कदम उठाते हुए H-1B वीज़ा की फ़ीस 1 लाख डॉलर तय कर दी.
भारत-अमेरिका संबंधों के लिए मौजूदा समय बेहद अहम है. पिछले हफ्ते राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके 75वें जन्मदिन पर बधाई देने के लिए फोन किया था. इसी पृष्ठभूमि में इन दिनों दो भारतीय मंत्री अमेरिका में मौजूद हैं. विदेश मंत्री (EAM) एस जयशंकर न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र में भाग ले रहे हैं. साथ ही वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी अमेरिका में हैं और ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर चर्चा कर रहे हैं, जिस पर बातचीत चल रही है.
अमेरिका ने लगाया 50 फीसदी टैरिफ
जैसा कि ज्ञात है, ट्रंप इस समझौते को पूरा न करने के लिए भारत को ज़िम्मेदार मानते हैं. इसी कारण उन्होंने भारत से अमेरिका जाने वाले सभी निर्यात पर 25% का “रिसिप्रोकल” टैरिफ लगाया है. इसके अलावा रूस से भारत द्वारा तेल ख़रीदने के कारण उन्होंने और 25% टैरिफ लगा दिया. इस तरह अमेरिकी बाज़ार में भारतीय निर्यात पर कुल 50% टैरिफ लग रहा है. अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय के अनुसार 2024 में भारत का अमेरिका को माल निर्यात 87.3 अरब डॉलर था, जबकि अमेरिका का भारत को निर्यात 41.5 अरब डॉलर रहा था. इस प्रकार भारत के पक्ष में 45.8 अरब डॉलर का ट्रेड सरप्लस है. लेकिन सर्विसेज के क्षेत्र में दोनों देशों का निर्यात लगभग बराबर था—अमेरिका का भारत को 41.8 अरब डॉलर और भारत का अमेरिका को 41.6 अरब डॉलर.
ट्रंप का फोकस व्यापार घाटा कम करने पर
ये आँकड़े दिखाते हैं कि ट्रंप मुख्य रूप से गुड्स व्यापार घाटा कम करने पर फोकस कर रहे हैं. वे चाहते हैं कि भारत अपना बाज़ार अमेरिकी उत्पादों, विशेषकर कृषि और डेयरी, के लिए खोले. यह भारत के लिए संवेदनशील क्षेत्र है क्योंकि अगर अमेरिकी निर्यात को अनुमति देता है तो भारतीय किसान और दुग्ध उत्पादक बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं. भारत की लगभग 50% आबादी कृषि से जुड़ी है, भले ही उसका योगदान जीडीपी में केवल 15% के आसपास है. इसका मतलब यह है कि गरीब तबका कृषि गतिविधियों से जुड़ा है और कोई भी सरकार उनके हितों की अनदेखी नहीं कर सकती. अगर ऐसा हुआ तो राजनीतिक रूप से भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.
अमेरिकी दुग्ध उत्पादों का भारत में एंट्री मुश्किल
डेयरी के मामले में भी भारत अमेरिकी दुग्ध उत्पादों को आसानी से अनुमति नहीं दे सकता क्योंकि इससे भारतीय दुग्ध उत्पादकों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. साथ ही अमेरिका में मवेशियों को दिए जाने वाले चारे में हड्डियों का चूर्ण (bone-meal) शामिल होता है. यह हिंदुओं की आस्था को ठेस पहुँचा सकता है, खासकर तब जब बीजेपी की राजनीति हिंदू मतों के ध्रुवीकरण और धार्मिक चेतना को बढ़ाने पर आधारित है.
50% टैरिफ से भारत से एक्सपोर्ट प्रभावित
भारतीय निर्यात का बड़ा हिस्सा श्रम-प्रधान उद्योगों—जैसे कपड़ा और समुद्री उत्पादों—से आता है. 50% टैरिफ लगाने से भारतीय निर्यात बाधित हो रहा है और नौकरियों में छंटनी हो रही है. रिपोर्टों में कहा गया है कि बिहार से आए प्रवासी मज़दूर, जो तमिलनाडु में वस्त्र निर्माण में लगे थे, काम से निकाले जा रहे हैं और अपने राज्य लौट रहे हैं. नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र इन प्रवासी मज़दूरों की वापसी एनडीए को नुकसान पहुँचा सकती है. इसी तरह अमेरिकी बाज़ार में कालीनों के निर्यात पर भी असर पड़ेगा, और मिर्ज़ापुर मोदी की संसदीय सीट वाराणसी का पड़ोसी ज़िला है.
ट्रंप ने महंगा H-1B वीजा
टैरिफ बढ़ने से हुए झटके के बीच ट्रंप ने एक और कदम उठाते हुए H-1B वीज़ा की फ़ीस 1 लाख डॉलर तय कर दी. अमेरिकी और भारतीय आईटी कंपनियाँ तथा अमेजन जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय आईटी प्रोफ़ेशनल्स को H-1B वीज़ा पर प्रायोजित करती हैं. हर साल 65,000 वीज़ा विदेश से आने वाले नागरिकों को और 20,000 वीज़ा अमेरिकी संस्थानों से पास आउट विदेशी छात्रों को दिए जाते हैं. अनुमान है कि सभी H-1B वीज़ाधारकों में लगभग 70% भारतीय होते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से आती है. अभी तक इन वीज़ाओं की फीस और अन्य चार्ज मिलाकर लगभग 5,000 डॉलर थे. फ़ीस में यह बढ़ोतरी भारतीय आईटी कंपनियों और अमेरिकी कंपनियों में काम करने वाले भारतीयों दोनों के लिए नुकसानदेह होगी. यह आंध्र प्रदेश जैसे NDA-शासित राज्य के लिए विशेष रूप से संवेदनशील मुद्दा है.
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
ट्रंप के इन दोनों कदमों से भारत के हितों को नुकसान पहुँच रहा है और इसका राजनीतिक असर बीजेपी पर भी हो सकता है, क्योंकि 2024 चुनावों के बाद लोकसभा में बीजेपी के पास स्वयं का बहुमत नहीं है. इसलिए मोदी सरकार के लिए राजनीतिक मजबूरी है कि वह ट्रंप को इन मुद्दों पर अधिक व्यावहारिक रुख अपनाने के लिए राज़ी करे. H-1B वीज़ा का मसला ट्रंप तुरंत हल करेंगे, यह कठिन है क्योंकि यह उनके MAGA समर्थकों के बीच लोकप्रिय है, लेकिन टैरिफ पर वे तब मान सकते हैं अगर मोदी सरकार रियायत देने को तैयार हो.
H-1B वीज़ा फीस बढ़ने से मानवीय असर - MEA
H-1B वीज़ा पर अमेरिकी निर्णय के बाद विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया, जिसमें कहा गया— “कुशल प्रतिभा का आदान-प्रदान और गतिशीलता ने अमेरिका और भारत में प्रौद्योगिकी विकास, नवाचार, आर्थिक वृद्धि, प्रतिस्पर्धा और संपन्नता में अत्यधिक योगदान दिया है. नीतिगत निर्णयकर्ताओं को हालिया कदमों का मूल्यांकन पारस्परिक लाभों को ध्यान में रखकर करना चाहिए, जिसमें दोनों देशों के बीच मज़बूत जन-से-जन संबंध शामिल हैं. इस कदम से परिवारों को होने वाली परेशानियों के रूप में मानवीय असर पड़ सकता है. सरकार उम्मीद करती है कि अमेरिकी अधिकारी इन व्यवधानों का समाधान करेंगे.”
लेकिन इन बिंदुओं से ट्रंप पर असर पड़ने की संभावना कम है. भले ही वे मोदी के “मित्र” होने का दावा करते हों, वे अपने एजेंडे पर बिना झिझक चलते हैं, भले ही इससे मोदी को राजनीतिक नुकसान क्यों न हो.
अमेरिका में विदेश मंत्री मिले मार्को रुबियो से
विदेश मंत्री एस. जयशंकर का अमेरिका से निपटने का अनुभव और ज्ञान ही वह मुख्य कारण माना जाता है, जिसकी वजह से मोदी विदेश नीति में उन पर इतना भरोसा करते हैं। जयशंकर ने 22 सितंबर को न्यूयॉर्क में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मुलाक़ात की. मुलाक़ात के बाद जयशंकर ने ‘X’ पर लिखा—
“आज सुबह न्यूयॉर्क में @SecRubio से मुलाक़ात कर अच्छा लगा. हमारी बातचीत में कई द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा हुई। प्राथमिक क्षेत्रों में प्रगति के लिए निरंतर संवाद की अहमियत पर सहमति बनी. हम संपर्क में रहेंगे.”
अमेरिकी दूतावास ने भी इस बैठक पर सकारात्मक टिप्पणी दी. 23 सितंबर को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया— “विदेश मंत्री रुबियो ने दोहराया कि भारत, अमेरिका के लिए बेहद महत्वपूर्ण संबंध है. उन्होंने व्यापार, रक्षा, ऊर्जा, दवाइयाँ, क्रिटिकल मिनरल्स और अन्य द्विपक्षीय विषयों पर भारत सरकार की निरंतर भागीदारी की सराहना की. दोनों नेताओं ने यह सहमति जताई कि अमेरिका और भारत मिलकर मुक्त और खुले इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र को बढ़ावा देंगे, जिसमें क्वाड भी शामिल है.”
हालाँकि इस बयान में कहीं यह संकेत नहीं है कि अमेरिका व्यापार और टैरिफ़ तथा H-1B वीज़ा पर भारत के दृष्टिकोण पर ध्यान देने को तैयार है.
पीयूष गोयल भी अमेरिका में, BTA पर नजर
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार पीयूष गोयल ने न्यूयॉर्क में अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीर से भी मुलाक़ात की है. साफ़ है कि गोयल का मक़सद व्यापार वार्ता को जल्द पूरा करना है. जयशंकर ने भी यही बात रुबियो के सामने रखी होगी. लेकिन अब तक कोई संकेत नहीं है कि ट्रंप टैरिफ़ पर बीच का रास्ता निकालने को तैयार हैं। सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार इस अहम मुद्दे पर रियायतें देगी, और अगर हाँ, तो कितनी और किस प्रकार? स्वाभाविक है कि कृषि और डेयरी क्षेत्र को पूरी तरह से नहीं खोला जा सकता है. क्या ट्रंप क्रमिक (gradual) तरीक़े को मानेंगे? और अगर मान भी गए तो भारतीय किसान और दुग्ध उत्पादक किस तरह प्रतिक्रिया देंगे? यह तब है जबकि मोदी अमेरिकी दूध को भारतीय बाज़ार में आने देने का कोई सवाल ही नहीं है, लेकिन अगर दूध से बने उत्पाद आते हैं तो भी प्रतिक्रिया का अंदाजा लगाना कठिन है.
अमेरिकी दूतावास के बयान में इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र का ज़िक्र है लेकिन भारत के पश्चिमी पड़ोस पर चुप्पी है. इससे यह धारणा और पुष्ट होती है कि अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान को भारत के पश्चिमी पड़ोस में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका मिले.