विदेशों में बदहाल स्थिति में हैं भारतीय श्रमिक
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विदेशों में बदहाल स्थिति में हैं भारतीय श्रमिक

वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भले ही विदेशों में बेहतर भविष्य की तलाश में श्रमिक जाते हों, पर हर तरीके से इनका शोषण किया जाता है.


Indian Migrant Workers: हाल में ही जब इटली में जी7 देशों का भव्य जलसा आयोजित किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी भी शिरकत कर रहे थे. लगभग उसी दौरान रोम के पास के ग्रामीण क्षेत्र, लैटिना, में वहां काम करने गए एक भारतीय कृषि श्रमिक, 31 वर्षीय सतनाम सिंह को घायल अवस्था में सड़क पर फेंक दिया गया था. इसके बाद इलाज के दौरान उनकी मृत्यु भी हो गई. सतनाम सिंह भारत से दो वर्ष पहले इटली काम की तलाश में गए थे और फिर लैटिना में अंतोनेला लोवाटा के खेतों में कृषि श्रमिक के तौर पर काम करने लगे थे. हाल में ही किसी कृषि उपकरण को चलाते समय दुर्घटनावश उनका हाथ कट कर शरीर से अलग हो गया और शरीर में दूसरे स्थानों पर भी गंभीर चोटें आईं थीं. इस दुर्घटना के बाद अंतोनेला लोवाटा ने उन्हें अपनी गाडी में बैठाया, उनके कटे हाथ को फलों के एक डिब्बे में रखा और दूर ले जाकर सड़क के किनारे फेंक दिया. लगभग एक घंटे तक सड़क के किनारे पड़े रहने के बाद उन्हें चिकित्सा सहायता उपलब्ध हो पाई, पर इलाज के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई. यह एक ऐसा उदाहरण है जो प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा और अनिश्चित भविष्य बयान करता है. दुखद यह है कि ऐसे उदाहरण बार-बार अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हमारे सामने आते हैं, पर हमारे देश का दरबारी मीडिया इन खबरों से अनजान बने रहता है.

यहां के मीडिया के लिए विदेशों में भारतीय श्रमिकों की बदहाली कोई मायने नहीं रखती, बल्कि जब कभी मोदी सरकार विदेशों में श्रमिकों की मौत के बाद विशेष विमान से उनके शवों को भारत लाती है, तब दिनभर उसका लाइव टेलीकास्ट चलता है और मोदी जी का जयकारा सुनाया जाता है. हाल में ही कुवैत में श्रमिकों के आवासीय परिसर में भीषण अग्निकांड की चपेट में आकर 49 भारतीय श्रमिकों की मौत हो गयी थी. इसकी खबर आने के बाद भी किसी भी मीडिया ने मध्य-पूर्व में भारतीय श्रमिकों की स्थिति पर कोई भी रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत की, पर जिस दिन इनका शव भारत आया, उस दिन तिरुअनंतपुरम से लेकर नई दिल्ली हवाईअड्डे से सीधी खबर ब्रेकिंग न्यूज़ के तौर पर चली और हरेक रिपोर्ट में प्रधानमंत्री मोदी की वाहवाही होती रही.

इस वर्ष सऊदी अरब के मक्का में भीषण गर्मी के प्रकोप और बदइन्तजामी के कारण 1300 से अधिक हज यात्रियों की मृत्यु हुई, जिसमें लगभग 100 भारतीय थे. हमारे देश में रोजगार की इस कदर कमी है कि मौक़ा मिलने पर भारतीय विदेशों में जाकर अत्यधिक खतरनाक रोजगार करने से भी नहीं चूकते. अनेक भारतीय रूस-उक्रेन युद्ध में रूस की सेना के तौर पर लड़ रहे हैं. इनमें से जब किसी की युद्ध में मृत्यु होती, तब ही कोई समाचार आता है. मोदी सरकार को तो ऐसे भारतीय सैनिकों की संख्या भी नहीं पता है. मई 2024 में रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस की सेना की तरफ से लड़ते 2 भारतीयों की मौत हुई थी. इजराइल-हमास युद्ध में भी इजराइल की तरफ से लड़ाई में शरीक कुछ भारतीयों की मौत हुई है.

भारतीय श्रमिकों की विदेशों में दुर्दशा का एक उदाहरण अभी स्विट्ज़रलैंड से भी सामने आया है. यूनाइटेड किंगडम के सबसे अमीर और भारतीय मूल के हिंदुजा परिवार पर स्विट्ज़रलैंड की एक अदालत में भारतीय श्रमिकों के शोषण के आरोपों की सुनवाई करते हुए इस परिवार के सदस्यों को जेल की सजा सुनाई गयी है. हिंदुजा परिवार स्विट्ज़रलैंड के अपने मैनसन में भारत से लाये हुए श्रमिकों को रखते थे. इसमें से तीन श्रमिकों ने अदालत में एक याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया था कि श्रमिकों के स्विट्ज़रलैंड पहुंचते ही हिंदुजा परिवार उनके पासपोर्ट जब्त कर लेता है और फिर बहुत कम वेतन पर और बिना किसी आजादी के ही उनसे काम लिया जाता है. कुल मिलकर श्रमिकों को बंधुआ मजदूर जैसा रखा जाता था. अदालत ने इन सभी आरोपों को सही देखते हुए प्रकाश हिंदुजा और पत्नी कमल को 4 वर्षों के कारावास और बेटे अजय हिंदुजा और बहू नम्रता को साढ़े चार वर्षों के कारावास की सजा सुनाई है.

मई 2024 में संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन ने वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2024 प्रकाशित किया था. इसके अनुसार लगभग 2 करोड़ भारतीय श्रमिक दुनियाभर के देशों में रोजगार में हैं. इन श्रमिकों द्वारा भारत में वर्ष 2022 में 111.22 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा आई. श्रमिकों द्वारा अपने देश में पैसे भेजे जाने के मामले में पिछले कई वर्षों से भारत दुनिया में पहले स्थान पर है और यह अपने देश में 100 अरब डॉलर से अधिक मुद्रा भेजने वाला पहला देश भी है. भारतीय श्रमिकों द्वारा अपने देश में भेजी जाने वाली मुद्रा में लगातार बृद्धि दर्ज की जा रही है. वर्ष 2010 में यह राशि 53.48 अरब डॉलर, 2015 में 68.91 अरब डॉलर और 2020 में 83.15 अरब डॉलर थी.

वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भले ही विदेशों में बेहतर भविष्य की तलाश में श्रमिक जाते हों, पर हरेक तरीके से इनका शोषण किया जाता है. इन्हें कोई अधिकार नहीं मिलते, इन्हें कॉन्ट्रैक्ट से भी कम पैसे मिलते है, इनसे बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार किया जाता है और अनेक श्रमिक तो जितना पैसा खर्च कर विदेशों में पहुंचते हैं, उतना भी नहीं कमा पाते.

17 जुलाई 2019 को लोकसभा में तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री ने बताया था कि वर्ष 2016 से मई 2019 के बीच विदेशों में 28794 भारतीयों मी मृत्यु दर्ज की गयी, जिसमें सबसे अधिक मौतें, 9057 यानि 32 प्रतिशत मौतें अकेले सऊदी अरब में दर्ज की गईं, इसके बाद 5789 यानि 20 प्रतिशत मौतों के साथ संयुक्त अरब अमीरात का स्थान है. इसके बाद क्रम से कुवैत, ओमान, अमेरिका, मलेशिया, क़तर, बहरीन, कनाडा, सिंगापुर और इटली का स्थान है. आश्चर्य यह है कि विदेशों में, विशेषकर मध्य-पूर्व के देशों में, बड़ी संख्या में श्रमिकों की मौत के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी की किसी भी देश से द्विपक्षीय वार्ता में श्रमिकों की स्थिति और बेहतर सुविधाएं चर्चा में नहीं रहता.

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