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क्या कर्नाटक में कांग्रेस खुद कर रही नुकसान? दूरी नहीं हुई कम


क्या कर्नाटक में कांग्रेस खुद कर रही नुकसान? दूरी नहीं हुई कम
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सिद्धारमैया (बाएं) और डीके शिवकुमार (दाएं) के बीच मतभेद अभी भी कम नहीं हुए हैं, जबकि भाजपा लगातार कांग्रेस पर निशाना साध रही है। इसी बीच हनी ट्रैप का विस्फोटक आरोप सामने आया है। फाइल फोटो

कर्नाटक के सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना द्वारा व्यापक हनी-ट्रैप साजिश का आरोप कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने की क्षमता रखता है।

कर्नाटक में कांग्रेस को सत्ता में आए लगभग दो साल हो चुके हैं। पार्टी को अप्रत्याशित बहुमत मिला था, जिससे यह उम्मीद थी कि वह अपनी पकड़ मजबूत करेगी और दीर्घकालिक शासन के लिए कदम बढ़ाएगी। लेकिन राज्य के एक मंत्री द्वारा किए गए हनीट्रैप घोटाले के विस्फोटक आरोप ने साबित कर दिया है कि सिद्धारमैया सरकार स्थिरता से कोसों दूर है।सरकार आंतरिक अस्थिरता से जूझ रही है, जिससे उसके प्रमुख कार्यों जैसे कि गारंटी योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी असर पड़ रहा है।

हनीट्रैप का विस्फोटक आरोप

राज्य के सहकारिता मंत्री के.एन. राजन्ना ने विधानसभा में ही हनीट्रैप घोटाले का खुलासा किया। यह मुद्दा विपक्षी बीजेपी विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल द्वारा उठाया गया था।राजन्ना जैसे वरिष्ठ मंत्री ने खुद इस आरोप को न केवल वैधता दी, बल्कि इसके बारे में खुलकर बात भी की। सवाल यह उठता है कि एक मंत्री खुद अपनी सरकार को अस्थिर करने वाले आरोपों पर क्यों जोर देगा?

यह घोटाला कांग्रेस के भीतर चल रही गहरी सत्ता-संघर्ष की ओर इशारा करता है। राजन्ना ने दावा किया कि 48 राजनेता राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर हनीट्रैप के शिकार हो सकते हैं। उन्होंने इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग की।

विधानसभा में ही खुलासा क्यों?

राजन्ना यह मामला मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को गुप्त रूप से भी बता सकते थे। लेकिन उन्होंने इसे सबसे सार्वजनिक मंच विधानसभा में उजागर करने का रास्ता चुना।एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि राजन्ना और गृहमंत्री परमेश्वर खुद भी इस साजिश का शिकार हो सकते हैं। यही कारण है कि राजन्ना ने इतना भावनात्मक बयान दिया, जिससे कांग्रेस सरकार के लिए खतरा पैदा हो गया।

मजबूत बहुमत, फिर भी असुरक्षा का माहौल

कांग्रेस के पास 224 में से 137 सीटें हैं, जिससे उसकी स्थिति बहुत मजबूत मानी जा सकती थी। लेकिन इसके बावजूद पार्टी के भीतर असुरक्षा और अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है।चुनाव से पहले किए गए वादों को पूरा करने की बजाय कांग्रेस आंतरिक गुटबाजी में उलझी हुई है।

बीजेपी के लिए अप्रत्याशित अवसर

2023 में बीजेपी की विफलताओं के चलते कांग्रेस सत्ता में आई थी। बीजेपी की आंतरिक कलह, भ्रष्टाचार के आरोप और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ने उसे सत्ता से बाहर कर दिया था। लेकिन कांग्रेस भी इन गलतियों को दोहरा रही है।मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच सत्ता संघर्ष शुरू से ही चर्चा में रहा है। जब दोनों के बीच समझौता हुआ, तब पार्टी समर्थकों को उम्मीद थी कि वे शासन पर ध्यान देंगे। लेकिन यह सत्ता संघर्ष अभी भी जारी है।

बीजेपी मौके की तलाश में

राज्य में MUDA घोटाला, वाल्मीकि घोटाला जैसे मामलों के चलते केंद्र की जांच एजेंसियां ED और सीबीआई एक्टिव हो गई हैं। बीजेपी नेतृत्व कांग्रेस सरकार की किसी भी चूक का फायदा उठाने के लिए तैयार बैठा है।और अब हनीट्रैप का मामला आ गया है, जिससे कांग्रेस खुद को ही कमजोर कर रही है।

इतिहास खुद को दोहरा रहा है?

1989 में कांग्रेस ने कर्नाटक में 224 में से 178 सीटें जीतकर सबसे बड़ी जीत हासिल की थी। लेकिन इसके बाद कांग्रेस आंतरिक कलह में फंस गई।मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बर्खास्त कर दिया, जिससे लिंगायत समुदाय कांग्रेस से दूर हो गया।फिर एस. बंगारप्पा को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन उन्हें भी PV नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी ने हटा दिया।इसके बाद M. वीरप्पा मोइली मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्हें भी अस्थिरता का सामना करना पड़ा।1994 के चुनाव में कांग्रेस 178 सीटों से गिरकर सिर्फ 34 सीटों पर सिमट गई।

कांग्रेस के नेताओं की भूल

सत्ता में आने के बाद सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार जैसे अनुभवी नेता भूल जाते हैं कि जनता को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि मुख्यमंत्री कौन है।जनता बस यह चाहती है कि सरकार स्थिर रहे और जनता के लिए काम करे। लेकिन सत्ता में आते ही गुटबाजी, मंत्री बनने की होड़ और पदों की लालसा शुरू हो जाती है।यह समस्या हर पार्टी में है, लेकिन इस वक्त कांग्रेस ही सार्वजनिक रूप से खुद को शर्मिंदा कर रही है।

जनता सब देख रही है

कर्नाटक की जनता कांग्रेस की आंतरिक कलह पर नजर रखे हुए है। अगर कांग्रेस फिर से सत्ता के लिए लड़ती रही और शासन पर ध्यान नहीं दिया, तो जनता 2028 में फिर से उसे सबक सिखा सकती है।

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