महाराष्ट्र में तलवार की धार पर चुनावी दंगल ! सबसे बड़ा दल बनने की टक्कर
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महाराष्ट्र में तलवार की धार पर चुनावी दंगल ! सबसे बड़ा दल बनने की टक्कर

सियासत में सगा या पराया कोई नहीं। जो आज इस दल में हो वो कल किसी दूसरे का हिस्सा बन सकता है। इन सबके बीच महाराष्ट्र की 288 सीटों के लिए संग्राम तेज हो चुका है।


Maharashtra Assembly Elections 2024: महाराष्ट्र विधानसभा सीटों के लिहाज़ से उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सबसे बड़ा राज्य है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के साथ ही यह राज्य कृषि और रोज़गार देने वाले राज्यों में गिना जाता है। आगामी 20 नवंबर को 288 विधानसभा सीटों के लिए मतदान पर नज़रें इसलिए भी गड़ी हैं कि क्योंकि पहली बार छह बड़ी राजनीतिक पार्टियां क्रमशः महायुति (Mahayuti) और महाविकास अघाड़ी(Maha Vikas Aghadi) नामक दो गठबंधनों के बैनर तले हो रहे इस दिलचस्प चुनाव पर पूरे देश की निगाहें गड़ी हैं।

चुनाव प्रचार में तेजी आई
राज्य में चुनाव प्रचार और रैलियों का शबाब चरम पर है। चुनाव के बाद क्या स्थिति उभरेगी इन सारे सवालों पर भ्रम और असमंजस की गुत्थियां उलझती दिख रही हैं। खासतौर पर इसी माह 23 तारीख को जब राज्य के चुनाव नतीजे आएंगे तो कोई भी पेशेवर एजेंसी सटीक आकलन देने की स्थिति में नहीं दिखती कि आखिर हार जीत किस गठबंधन की होगी। कयास इस बात पर भी हैं कि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो ऐसी सूरत में सबसे बड़े दल के तौर पर उभरने वाली पार्टी के हाथ में सरकार बनाने की चाबी गई तो ऐसी सूरत में राज्य एक बार फिर जोड़ तोड़ और खरीद फरोख्त एक और वैचारिक-सियासी पतन की ओर बढ़ सकता है।
अस्थिर चुनावी माहौल की वजह यह भी मानी जा रही है कि नाम वापसी के बाद भी दोनों ही बड़े गठबंधनों से जुड़े नेता जिन्हें टिकट नहीं मिला, विद्रोही उम्मीदवार के तौर पर मैदान में डटे हैं। यह हालत तब भी कमोबेश बरकरार है, जब दोनों ही गठबंधनों ने दर्जनों सीटों पर अपने अपने दलों या सहयोगी पार्टियों के विद्रोही उम्मीदवारों को मान मनौव्वल कर मैदान से हटाने को सफल हुए। इससे सत्ताधारी महायुति(Mahayuti Seat Sharing) की सीटों का आकलन और समीकरण दोनों गड़बड़ा सकते हैं।
90 सीटों पर सस्पेंस अधिक
राज्य के चुनावों और राजनीति के मिज़ाज को अरसे से देखने वालों का आकलन है कि यहां की करीब 90 सीटों पर जीत और हार का आकलन उलझा हुआ है। इसका कारण है कि दोनों ही गठबंधनों में बड़ी तादाद में नाराज टिकटार्थी दबाव डालने के बाद भी मैदान से नहीं हटे हैं। जहां दबाव में नाम वापसी हूई भी वहां ज़्यादातर सीटों पर भीतरघात, जाति समीकरण, छोटे छोटे और स्थानीय रसूख वाले उम्मीदवारों और कुछ सीटों पर समझौता नहीं हो सका। ऐसी सूरत में एमवीए में भी कई दोस्ताना मुकाबला होने के आसार बढ़ गए हैं।
सबसे बड़े दल की क्या है गणित
उधर भाजपा ने कई सीटों पर भाजपा और एकनाथ शिंदे गुट ने विपक्षी गठबंधन के वोट काटने के लिए हरियाणा की तर्ज पर बहुकोणीय मुकाबले के समीकरण खड़े करवा दिए जहां विपक्षी खेमों के वोट बंटने से महायुति का उम्मीदवार आसानी से सीट निकाल सके।जहां तक सत्ताधारी भाजपा-संघ परिवार का आंतरिक आकलन के आधार पर पुख्ता यकीन है कि वह 80 सीटें पाने में सफल होगी। इसी तर्ज पर शिव सेना शिंदे (Shiv Sena Eknath Shinde) 50 और करीब 20 सीटें अजित पवार को मिलने के आसार हैं। यदि इस आकलन को हकीकत के करीब माना जाता है तो महायुति गठबंधन आसानी से सरकार बनाने के करीब आ सकता है।
इसके पीछे की बड़ी वजह महाराष्ट्र में चुनावो के लिहाज से आरंभ की गई लडकी-बहिन स्कीम समेत 10 गांरटी स्कीमें हैं। राज्य के धूलिया ज़िले के एक किसान जिनके परिवार की दो महिलाओं को इस योजना का लाभ मिला, बताते हैं, उनके परिवार की दो महिलाओं को 1500 रुपए महीना मिला है लेकिन इतनी छोटी सी रकम से इतनी महंगाई में क्या होने वाला है। इसलिए कांग्रेस, उद्धव ठाकरे व शरद पवार के नेतृत्च वाले एमवीए ने महिलाओं को 3000 रुपए महीने और बेरोज़गार नौजवानों को 4000 रु हर महीने देने समेत 10 गारंटियों को ऐलान कर दिया।
भाजपा और शिव सेना-शिंदे गुट में सबसे ज़्यादा टकराव देखने को मिला है। करीब 4 दर्जन सीटों पर दावेदारी को लेकर धमासान मचने से निचले स्तर पर कैडर सीधे तौर पर खेमेबंदी में बंटा रहा। एक तो भाजपा (BJP) के करीब 162 सीटें खुद लेकर सबसे बड़े दल के तौर पर उभरने के दावे ने एकनाथ शिंदे और भाजपा में आपसी अविश्वास और गहरा कर दिया है।उधर शिंदे गुट को डर है कि चुनाव नतीजों के बाद भाजपा ने मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोका तो इससे उनके गुट की पूरी राजनीति ही खत्म हो जाएगी। इसके आसार इसलिए भी लग रहे हैं कि महायुति ने किसी को भी भावी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया। एकनाथ शिंदे को लगता है कि उनके साथ छल हो सकता है, इसलिए उनके रणनीतिकार अभी से अभी चुनाव बाद के विकल्पों को खंगाल रहे हैं।
क्या कोंकण में भारी पड़ेंगे उद्धव
सत्ताधारी महायुति की रैलियों के मुकाबले कोंकण और दक्षिण महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे(Uddhav Thackeray) की हाल की रैलियों में ज़बर्दस्त उत्साह देखने को मिला है। दूसरी ओर मराठा छत्रप शरद पवार(Sharad Pawar) भी अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में विपक्षी उम्मीदवारों पर अच्छी बढ़त बनाते हुए साफ दिख रहे हैं। इसकी वजह यह भी है कि जिताऊ उम्मीदवारों के टिकट चयन में उन्होंने बाकी पार्टियों को पीछे छोड़ा है। हालांकि सांगली और कोल्हापुर क्षेत्र में विद्रोही और गठबंधन में खींचतान से नुकसान हो सकता है। जबकि भाजपा गठबंधन को उत्तर महाराष्ट्र, नई मुंबई और कोंकण में अच्छी बढ़त की उम्मीद बंधी है।
पूरे राज्य के चुनावी परिदृश्य बात करें तो राजनीतिक विश्लेषकों का पुख्ता यकीन है कि महविकास अघाड़ी(Maha Vikas Aghadi) महायुति पर भारी दिख रहे हैं। औरंगाबाद में एक प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश पोहरे की मानें तो लोकसभा चुनाव में मिली सफलता को इस बार के चुनाव में कम आंककर भी देंखें तो राहुल गांधी के करिश्मे से राज्य में कांग्रेस 65 सीटें आसानी से जीत सकती है। इसी तरह उसके दोनों सहयोगी शिव सेना उद्ध ठाकरे और शरद पवार मिलकर प्रत्येक 45-45 यानी 90 सीटें लाने की मज़बूत स्थिति में हैं। ऐसी सूरत में एमवीए को स्पष्ट बहुमत मिलने के पक्के आसार हैं।महायुति ने विपक्षी एमवीए गठबंधन की गारंटी स्कीमों की काट के लिए महिलाओं को दिए जा रहे 1500 रु के वायदे को अब 2100 रु का ऐलान कर दिया है। जबकि नौजवानों के लिए 25 लाख रोज़गार समेत किसानों को लोन और सब्सिडी देने का वायदा देकर कुछ लुभाने की कोशिशें कर रही है।
विदर्भ की तस्वीर
विदर्भ क्षेत्र जहां कांग्रेस व और भाजपा की सीधी टक्कर है वहां कपास आयात नीति ने स्थानीय किसानों को बदहाल कर दिया है। राज्य कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कॉटन बाले के आयात पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग कर डाली। महाराष्ट्र में कपास उत्पादक किसानों की तादाद करीब 40 लाख होगी। विवश होकर उन्हें एमएसपी से भी कम दाम पर कपास बेचने को विवश होना पड़ा है। सोयाबीन उत्पादक किसान और भी बदहाली में हैं। अकोला के एक किसानों का कहना है कि बड़े उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने की नीतियों के चलते सोयाबीन की खेती से आमदनी एक चौथाई से भी कम हो चुकी है। ऐसी सूरत में किसानो कों एमएसपी देने का वायदा मज़ाक जैसा लगता है।
महायुति ने वापसी तो की है लेकिन
लोकसभा चुनावों (General Elections 2024) में महाविकास अघाड़ी की बढ़त से घबराकर ही भाजपा ने महाराष्ट्र में हरियाणा के साथ चुनाव नहीं करवाए। करीब एक माह में लाडली बहना योजनाओं व किसान निधि का पैसा लोगों के खातों में डालने के बाद भाजपा जीत का माहौल बनाने के बाद ही मैदान में उतरना चाहती थी। यही उसने किया भी। हालात कुछ हद तक तो भाजपा ने ठीक किए लेकिन इसका लाभ शिंदे गुट को भी सीटें बढ़ाने से अधिक मिलता दिख रहा है। अजित पवार को भी कम सीटें देकर भाजपा ने एक तरह से और कमज़ोर कर दिया है। इसलिए बड़ी तादाद में अजित पवार के साथ आए लोग या तो वापस उनके चाचा शरद पवार के पास चले गए या फिर भाजपा या बाकी दलों में अपना भविष्य तलाश रहे हैं।
बहरहाल चुनाव प्रचार का शोर तेज़ होने के साथ ही सबसे ज़्यादा निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि 23 नवंबर को सबसे बड़े दल के तौर पर कौन उभरता है। महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक व जाने माने पत्रकार धर्मानंद कामत कहते हैं, “भाजपा की 162 के मुकाबले कांग्रेस 102 सीटें पाकर भी भाजपा से अधिक सीटें लाकर बड़े दल के तौर पर उभर सकती है। इसका कारण है कि आम लोग महंगाई और बेरोज़गारी से भाजपा से बेहद नाखुश हैं। दूसरा यह कि सरकारी फिज़ूल खर्ची, झूठा प्रचार और लोगों का ध्यान बांटने के लिए सांप्रदायिक माहौल खड़ा करने की कोशिशों से भी आम लोग पहले से अधिक सतर्क दिखते हैं।”
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