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अब कार्टून भी संस्कृति की मुख्यधारा में! EP उन्नी को नवमलयाली अवॉर्ड


अब कार्टून भी संस्कृति की मुख्यधारा में! EP उन्नी को नवमलयाली अवॉर्ड
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नवमलयाली द्वारा ईपी उन्नी को दिया गया यह सम्मान न केवल एक कलाकार की सराहना है, बल्कि कार्टून को एक सशक्त सांस्कृतिक माध्यम के रूप में स्वीकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

ऑनलाइन मलयालम पत्रिका 'नवमलयाली' ने अपने सातवें सांस्कृतिक सम्मान की घोषणा की है, जो इस वर्ष प्रसिद्ध राजनीतिक कार्टूनिस्ट ईपी उन्नी को दिया गया है। भारत में जहां पुरस्कारों की भरमार है। वहीं, यह सम्मान इसलिए खास है। क्योंकि यह किसी कार्टूनिस्ट को संस्कृति के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित करता है, एक ऐसा क्षेत्र जिसे आमतौर पर साहित्यकारों, चित्रकारों, कवियों, संगीतकारों और नृत्यकारों के लिए आरक्षित माना जाता है। कार्टून को अक्सर कला और संस्कृति की दुनिया में बाहरी या कमतर स्थान मिलता है।

नवमलयाली के पूर्व पुरस्कार साहित्यकारों को ही मिलते रहे हैं, जिनमें अरुंधति रॉय जैसी हस्तियां भी शामिल हैं। मगर इस बार कार्टूनिस्ट उन्नी को यह पुरस्कार “प्रतिरोध की रोज़मर्रा की अभिव्यक्ति में कला को प्रयोग में लाने” के लिए दिया गया है।

क्या है कार्टून कला?

फ्रांस में कार्टून और कॉमिक आर्ट को "नौवीं कला" (Ninth Art) कहा जाता है। एस्टेरिक्स और टिनटिन जैसे कॉमिक पात्रों को भी उतना ही बौद्धिक और कलात्मक महत्व मिलता है, जितना गोडार्द जैसे दार्शनिक फिल्मकारों को। अमेरिका में कार्टून की परंपरा बहुत मजबूत रही है — हर्बलॉक जैसे संपादकीय कार्टूनिस्टों से लेकर आर्ट स्पीगेलमैन और जो सैको जैसे ग्राफिक नॉवेलिस्टों तक। हालांकि, हाल के वर्षों में अमेरिकी मीडिया में सेंसरशिप बढ़ी है — न्यूयॉर्क टाइम्स ने राजनीतिक कार्टून बंद कर दिए और वॉशिंगटन पोस्ट ने एन टेलनेस की आलोचनात्मक कार्टून प्रकाशित करने से इनकार कर दिया। लेकिन टेलनेस को हाल ही में पुलित्जर पुरस्कार से नवाज़ा गया।

भारत में कार्टून की ताक़त

ईपी उन्नी जैसे कार्टूनिस्ट भारत में दैनिक राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं पर पैनी नज़र रखते हैं। जब नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की शुरुआत में बीफ विवाद हुआ तो उन्नी ने एक व्यंग्यचित्र में एक डिनर को मेनू की जगह ‘मनुस्मृति’ मांगते दिखाया, जिससे आधुनिकता और अतीत की रूढ़ियों के बीच विरोधाभास को दर्शाया गया। ओवी विजयन ने 1968 में प्राग स्प्रिंग के दौरान सोवियत टैंकों की बर्बरता पर आधारित कार्टून बनाकर भारतीय वामपंथ की आलोचना की थी। अबू अब्राहम ने आपातकाल के दौरान संविधान की अनदेखी को दर्शाते हुए एक ऐसा कार्टून बनाया था, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति को बाथटब से झुककर अध्यादेश पर हस्ताक्षर करते हुए दिखाया गया।

जब विपक्ष चुप तो कार्टून बोलते हैं

वर्तमान समय में, जब मुख्यधारा मीडिया अक्सर सत्ता के समक्ष मौन हो जाता है, कार्टूनिस्ट ही असहमति की आवाज़ को जीवित रखे हुए हैं। संदीप अध्वर्यू, मंजुल, आर प्रसाद, साजिथ कुमार, इरफ़ान, पोनप्पा, सतीश आचार्य, आलोक जैसे कई कलाकार प्रतिदिन सत्ता की नीतियों पर सवाल उठाते हैं — कोई तीखे, तो कोई सूक्ष्म अंदाज़ में। ईपी उन्* इस समूह का नेतृत्व करते हैं और हास्य को लोकतंत्र की रक्षा में सबसे प्रभावशाली हथियार बना देते हैं।

कला और संस्कृति में कार्टून की जगह

नवमलयाली के इस सम्मान ने एक पुराना पूर्वाग्रह तोड़ा है। आज जब बॉब डिलन को साहित्य का नोबेल मिलता है या जब गाने और कॉमिक्स को सामाजिक चेतना के वाहक के रूप में देखा जाता है तो सवाल उठता है — क्या कार्टून भी उसी श्रेणी में नहीं आते? कार्टून न केवल सौंदर्यबोध जगाते हैं, बल्कि सामाजिक न्याय और नैतिक विवेक को भी चुनौती देते हैं। वे हमारे सोचने, समझने और प्रतिक्रिया देने की क्षमता को जगाते हैं। कार्टूनिस्ट हमें जागरूक करते हैं, समाज का आईना दिखाते हैं और सही दिशा की ओर ले जाने का प्रयास करते हैं।

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