
मोहन भागवत का 75 वर्ष की उम्र पर पद छोड़ने का बयान स्पष्ट संकेत है कि संघ जल्द ही नेतृत्व परिवर्तन करने की राह पर है। इससे न सिर्फ RSS के अंदर, बल्कि नरेंद्र मोदी पर भी इस्तीफे का दबाव बढ़ेगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अप्रत्यक्ष रूप से संदेश दिया कि उन्हें 75 वर्ष की उम्र के बाद पद छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि 'जब आपकी उम्र 75 साल हो जाए तो इसका मतलब है कि अब रुक जाना चाहिए और दूसरे को रास्ता देना चाहिए.' यह टिप्पणी संघ के भीतर और मोदी की आधिकारिक गद्दी पर बैठने के संदर्भ में की गई, जिसने राजनैतिक गलियारों में हलचल मचा दी है.
यह टिप्पणी एक ऐसे ‘परिवारिक’ कार्यक्रम के दौरान आई, जहां मोरोपंत पिंगले नामक सीनियर नेता पर एक पुस्तक का विमोचन हुआ. मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि यह कोई आकस्मिक टिप्पणी नहीं थी, बल्कि गहरी सोच के साथ दिया गया संकेत था। उन्होंने बताया कि सम्मान स्वरूप 75 वर्ष की आयु पार करने पर दिए जाने वाले शॉल का मतलब होता है कि ‘अब समय आ गया है संभाल दूसरों को’। संघ और BJP में यह परंपरा लिखित तो नहीं है। लेकिन 2009 से भागवत के कार्यकाल में और 2014 के बाद प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी के समय में यह संस्कृति मजबूत हुई है।
मोदी शासन में ‘75 की उम्र’ का रिवाज
साल 2014 में एलके अडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया, क्योंकि वे 75 वर्ष से अधिक उम्र के थे। वहीं, तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने अगस्त 2016 में इस्तीफा दे दिया। लेकिन बाद में उन्हें यूपी का राज्यपाल नियुक्त किया गया। कुछ नेताओं के साथ यह नियम आरक्षित रखा गया, जैसे कि 2019 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा (76 वर्ष) को अपनी जगह बनाए रखा गया। इसका आधार था राजनीतिक रूप से जरूरी होना।
RSS प्रमुख भी शपथ छोड़ देंगे?
भागवत ने हिंट दिया है कि वह RSS की केंद्रीय पदवी फरवरी 2026 में, संघ की स्थापना शताब्दी वर्ष पर, स्वतंत्रता दिवस के आसपास (दुर्गा पूजा या दशहरा के बाद) खुद रिटायर करने का निर्णय ले सकते हैं। उनका वैकल्पिक इस्तीफा 11 सितंबर 2025 को भी संभव है — उस समय उनकी उम्र 75 वर्ष होगी।
RSS–BJP इकाई में तनाव की वजह
संघ नेतृत्व मोदी की स्वयं केंद्रीकृत सत्ता से नाराज था। लेकिन उसकी चिंता सार्वजनिक रूप से व्यक्त नहीं होती थी। मोदी के नेतृत्व में BJP में RSS की भूमिका धीरे-धीरे कम होती गई, जबकि मोदी ने अपने समर्थकों को विस्तार से जगह दी। साल 2024 में चुनाव अभियान के दौरान पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा तक ने RSS की जरूरत से सीधे इनकार कर दिया था, जिससे संघ की चुप्पी टूटने लगी।
आगे क्या होता है?
भविष्य के BJP अध्यक्ष का नाम चयन संघ-सरकार के तालमेल का संकेत देगा। भागवत के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री मोदी और संघ के बीच संतुलन कायम रहेगा या टूटेगा, यह देखा जाना बाकी है। संघ परिवार की आंतरिक हलचलों पर करीब 15 महीनों से राजनीतिक विश्लेषक पूरी नजर रखे हुए हैं।