Nilanjan Mukhopadhyay

शांति के वादे या चुनावी तैयारी, मणिपुर दौरे का असली संदेश क्या है?


शांति के वादे या चुनावी तैयारी, मणिपुर दौरे का असली संदेश क्या है?
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865 दिन बाद मोदी का मणिपुर दौरा विकास योजनाओं तक सीमित रहा। मेल-मिलाप, भरोसा और न्याय पर ठोस पहल न दिखने से लोगों की निराशा गहरी हुई।

2014 के बाद एक दशक बीत जाने पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के समझौते और घोषणाएँ दोहराए जाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। इसके बजाय ज़रूरी है कि वे असफलताओं का सामना करें और उनके लिए जवाब दें।

लंबे इंतज़ार के बाद दौरा

करीब ढाई साल (865 दिन) तक चुप्पी साधे रहने के बाद मोदी का मणिपुर दौरा सवालों से घिरा दिखा। उन्होंने विकास की योजनाएँ ज़रूर घोषित कीं, लेकिन मेल-मिलाप और भरोसे की प्रक्रिया की झलक नहीं दिखी।

दौरे से ठीक पहले एक मार्मिक गीत का वीडियो सोशल मीडिया पर आया। इसमें एक बच्ची काल्पनिक संवाद में मोदी से पूछती है—“पू मोदी, आप कहाँ थे? जवाब आता है—“मैं लंदन गया था, क्वीन के अंतिम संस्कार में। बच्ची फिर पूछती है—“तो आप मेरी मां के अंतिम संस्कार में क्यों नहीं आए, जिन्हें मणिपुर में बलात्कार कर मार दिया गया?” गीत आगे बताता है कि जब मोदी लॉस एंजेलिस जाकर जंगल की आग के पीड़ितों को सांत्वना दे सकते हैं, तो मणिपुर क्यों नहीं आए जब यहां गांव जला दिए गए?

तीन अहम सवाल

मोदी के मणिपुर आगमन के साथ तीन प्रमुख सवाल उठे। पहला, वे 3 मई 2023 को हिंसा भड़कने के बाद पहली बार अब क्यों पहुँचे? यानी 865 दिन बाद। दूसरा, क्या वे वास्तव में विभिन्न समुदायों के बीच पुल बनाने आए थे? और तीसरा, क्या यह दौरा बीजेपी की मणिपुर में दोबारा राजनीतिक वापसी की शुरुआत साबित होगा?

सरकार ने दिसंबर 2024 में अजय कुमार भल्ला को मणिपुर का राज्यपाल बनाकर संकेत दिया था कि अब नियंत्रण केंद्र अपने हाथ में ले रहा है। फरवरी 2025 में राष्ट्रपति शासन लागू करके तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटा दिया गया। इस पृष्ठभूमि में मोदी का दौरा राजनीतिक रूप से भी अहम माना गया।

विकास बनाम मेल-मिलाप

मोदी के दौरे में ज़्यादा ज़ोर उन योजनाओं और परियोजनाओं पर दिया गया जिनकी कीमत हज़ारों करोड़ बताई गई। लेकिन मणिपुर के लोग जवाब चाहते थे—वही सवाल जो उस गीत में गूंज रहे थे।राज्य की जनता को असली ज़रूरत मेल-मिलाप और गैर-पक्षपाती शासन की है। बीरेन सिंह सरकार पर पक्षपात के आरोपों के चलते समाज गहराई से बँट चुका है। दुर्भाग्य से मोदी का छोटा-सा दौरा इस विभाजन को पाटने की दिशा में ठोस पहल नहीं कर सका।

मोदी का भाषण और पुराने दावे

चुराचांदपुर में मोदी ने कहा कि शांति स्थापित करना विकास के लिए ज़रूरी है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि 11 वर्षों में पूर्वोत्तर में कई विवाद सुलझे और लोग विकास की राह पर चले। लेकिन यह आत्मप्रशंसा ज़्यादा थी, भविष्य की रणनीति कम।

इतिहास गवाह है कि सरकारें अक्सर “समझौतों” की घोषणा करती रही हैं—राजीव गांधी के असम समझौते से लेकर अकाली नेता संतोख सिंह लोंगोवाल के साथ समझौते तक। लेकिन इनसे स्थायी हल नहीं निकल पाया। अब मोदी से अपेक्षा है कि वे पुराने दावों को दोहराने के बजाय ठोस जवाब दें।

बीजेपी की चुनौती और संघ की भूमिका

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी के दौरे को टोकनिज़्म और मणिपुर के लोगों का अपमान कहा। विपक्ष इसे समय से पहले चुनाव कराने का दबाव बनाने के औज़ार के रूप में भी देख रहा है।

दूसरी ओर, आरएसएस की दशकों पुरानी रणनीति—पूर्वोत्तर की जनजातियों को भारतवर्ष की सांस्कृतिक अवधारणा से जोड़ने की आज शांति स्थापना की राह में रुकावट मानी जा रही है। कूकी समुदाय आरएसएस पर आरोप लगाता है कि वह मैतेई समुदाय के प्रभुत्व को बढ़ावा दे रहा है। वहीं आरएसएस का प्रचार है कि कूकी नेताओं की माँग चर्च-प्रेरित षड्यंत्र है। यह परस्पर अविश्वास शांति की राह कठिन बनाता है।

मोदी का दौरा न तो सवालों के जवाब दे सका और न ही लोगों के बीच टूटे भरोसे को जोड़ पाया। विकास परियोजनाएँ ज़रूरी हैं, लेकिन मणिपुर के लोग अब केवल यही नहीं चाहते। वे न्याय, भरोसा और शांति की ठोस गारंटी चाहते हैं।

(फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक की हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करें।)

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