
9 अगस्त 2025 को कोलकाता में तीन अलग-अलग विरोध प्रदर्शन हुए – सभी अलग संगठनों द्वारा आयोजित, लेकिन उद्देश्य एक ही था – अभया को न्याय मिले।
एक साल पहले “We want Justice” के नारे ने पश्चिम बंगाल की सड़कों पर जनसैलाब उतार दिया था। 300 से अधिक रैलियों में हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया था, जिनमें फुट क्लबों और युवाओं की उल्लेखनीय भूमिका रही। रात के समय आयोजित की गई ‘Seize the Night’ नामक मशाल जुलूसों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से कहीं अधिक थी। यह विरोध प्रदर्शन न तो किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा आयोजित थे और न ही संगठित – बल्कि ये समाज के भीतर मौजूद छोटे-छोटे समुदायों द्वारा खुद सामने आए थे। इनका मकसद था – एक जूनियर डॉक्टर “अभया” (तिलोत्तमा) के साथ आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुए बलात्कार और हत्या की नृशंस घटना के खिलाफ अपना आक्रोश प्रकट करना।
तीन मंच, एक उद्देश्य
9 अगस्त 2025 को कोलकाता में तीन अलग-अलग विरोध प्रदर्शन हुए – सभी अलग संगठनों द्वारा आयोजित, लेकिन उद्देश्य एक ही था – अभया को न्याय मिले। इनमें शामिल थे विभिन्न राजनीतिक दल, 'अभया मंच' और 'अभया प्रतिवादी मंच'। इन प्रदर्शनों के ज़रिए उस भयावह घटना की याद को फिर से सामने लाया गया, जिसमें अभया की हत्या के बाद प्रशासन ने मामले को दबाने की कोशिश की और कथित दोषी संजय रॉय को जल्दबाज़ी में गिरफ्तार कर मामले को ‘समाप्त’ कर दिया गया। संजय रॉय एक सिविक वॉलंटियर था, जिसे अस्पताल की इमारत में विशेष पहुंच प्राप्त थी।
न्याय की मांग बनी जनअसंतोष का प्रतीक
इस आंदोलन ने एक सार्वजनिक स्थान बना दिया है, जहां सरकार के प्रति असंतोष खुलकर सामने आ रहा है। यह किसी राजनीतिक बंटवारे को नहीं, बल्कि ममता बनर्जी सरकार के सामने खड़े होते जा रहे व्यापक विरोध को दर्शाता है – खासतौर पर 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले। यह आंदोलन अब केवल अभया के न्याय की बात नहीं कर रहा, बल्कि यह उस “सिस्टम” के खिलाफ आक्रोश है जिसे जनता भ्रष्ट, असंवेदनशील और सत्ता के संरक्षण में पनपता मानती है।
राजनीतिक ध्रुवीकरण में भी एकजुटता
सीपीआई(एम) ने जहां राजनीतिक हिंसा की शिकार तमन्ना खातून जैसी अन्य पीड़ितों के लिए भी न्याय की मांग की, वहीं यह रैली तृणमूल कांग्रेस सरकार को 2026 में सत्ता से हटाने की अपील में भी बदल गई। बीजेपी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस्तीफे की मांग करते हुए सचिवालय 'नवन्ना' तक मार्च किया। इस रैली में अभया के माता-पिता भी शामिल हुए, जो अब भी सीबीआई जांच से असंतुष्ट हैं। सभी प्रदर्शनों में एक सहमति थी – “सिस्टम ने न्याय में विफलता दिखाई है।”
‘सिस्टम’ के खिलाफ एकजुटता की नई आवाज
कार्यकर्ता और लेखक बोलान गांगोपाध्याय ने कहा कि प्रदर्शन में भले लोग कम हों, लेकिन असंतोष अब न्याय की ठोस मांग में बदल चुका है। यह सिर्फ अभया के साथ हुए अपराध की नहीं, बल्कि उस पूरे तंत्र की नाकामी की कहानी है जिसमें आम जनता खुद को असहाय महसूस करती है। आजाद फाउंडेशन की डोलोन गांगुली ने बताया कि घरेलू कामगारों, कारखानों के श्रमिकों, छात्रों, महिलाओं और कामकाजी वर्ग के समुदायों की भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि यह आंदोलन एक व्यापक संघर्ष का रूप ले रहा है।
अस्पताल से आंदोलन तक
अभया की याद अब केवल एक पीड़िता की स्मृति नहीं, बल्कि उस हड़ताल, धरना और भूख हड़ताल की याद भी बन चुकी है जिसमें डॉक्टरों और आम जनता ने न्याय की गुहार लगाई थी। मुख्यमंत्री के आवास के पास आयोजित कलिघाट रैली में 90 वर्षीय विद्वान समीक्ष बंधोपाध्याय ने अभया मामले में आरोपी की गिरफ्तारी को “न्याय का मज़ाक” करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सत्ता में ‘लंपट तत्वों’ की पैठ है, जो सत्तारूढ़ दल के संरक्षण में हैं। उन्होंने कहा कि यह केवल स्मृति बनाए रखने का आंदोलन नहीं, बल्कि इसे एक राजनीतिक संघर्ष में बदलने की आशा है।
जनता की स्मृति और विश्वास की परीक्षा
जब सोशल मीडिया पर 'लाइक्स' और 'डिसलाइक्स' को ही भावना का मापक मान लिया गया है, तब एक साल बाद भी हुए इन प्रदर्शनों ने यह सिद्ध किया कि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के खिलाफ अविश्वास गहरा हो गया है। हालांकि, प्रदर्शन में भीड़ बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन जो लोग आए, वे यह जताने आए कि वे मुख्यमंत्री को अब 'संदेह का लाभ' देने को तैयार नहीं हैं।