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जब 'सिंदूर' बना जंग का नारा, जबकि महिलाएं चाहती हैं सिर्फ शांति


जब सिंदूर बना जंग का नारा, जबकि महिलाएं चाहती हैं सिर्फ शांति
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ऑपरेशन सिंदूर का नाम और लोगो हमारे फासीवादी, स्त्री-द्वेषी समाज का प्रतीक है, जहां महिलाओं को बदनाम किया जाता है और अपमानित किया जाता है अगर वे पितृसत्तात्मक लाइन पर नहीं चलती हैं।

भारत और पाकिस्तान के बीच तीन दिनों तक चले तनाव के बाद दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम की घोषणा ने राहत की सांस ली। हालांकि, इस संघर्ष के दौरान मारे गए लोगों की संख्या, गिराए गए विमान, ड्रोन और मिसाइलों की संख्या, और पूजा स्थलों और नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाए जाने की खबरों को लेकर विवाद बना रहा। दोनों देशों के पास अपनी-अपनी कहानियां हैं और युद्ध जैसी स्थिति में समाचार रिपोर्टिंग भी उग्र और विषाक्त हो जाती है, जिससे चीज़ें बढ़ा-चढ़ा कर पेश की जाती हैं।

सरकारी कथा और 'ऑपरेशन सिंदूर'

इस लेख का उद्देश्य भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई उस कथा पर चर्चा करना है, जिसमें हिंदू महिलाओं की विधवाओं का बदला लेने के नाम पर 'ऑपरेशन सिंदूर' की बात की गई। 'सिंदूर' एक लाल रंग का पाउडर है, जो हिंदू महिलाएं अपने बालों की बिछाव में लगाती हैं, जो उनके विवाहित होने का प्रतीक होता है। ऑपरेशन सिंदूर का लोगो एक 'सिंदूरदान' का चित्रण करता है, जिसमें लाल पाउडर गिरा हुआ दिखाया गया है, जो रक्तस्राव की तरह प्रतीत होता है। यह लोगो पारंपरिक भारतीय मानसिकता में गहरे भावनात्मक प्रभाव डालने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

गोपनीयता का उल्लंघन

पहलगाम में पर्यटकों पर हमले के बाद एक नई शादीशुदा महिला की तस्वीर, जो लाल चूड़ियां पहने हुए अपने मृत पति के शव के पास शोक मना रही थी, सभी टीवी चैनलों पर दिखाई गई। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई। उषा, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक शिक्षिका हैं, ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया ने पूरी तरह से संवेदनहीनता दिखाई और महिला की गोपनीयता का उल्लंघन किया। लेकिन जब उस महिला (हिमांशी नरवाल) ने शांति की अपील की तो उसे बुरी तरह से ट्रोल किया गया।

हिमांशी नरवाल का बयान और ट्रोलिंग

हिमांशी नरवाल, जो केवल एक सप्ताह पहले विवाहिता हुई थीं, अपने पति लेफ्टिनेंट विनय नरवाल के साथ हनीमून पर गई थीं। हमले के बाद नरवाल परिवार द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर में हिमांशी ने कहा कि जो लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के खिलाफ जा रहे हैं — हम नहीं चाहते। हम शांति और केवल शांति चाहते हैं। यह बयान मीडिया और दक्षिणपंथी विचारधारा की उस कथा से मेल नहीं खाता था, जिसमें एक "हिंदू दुल्हन" को "मुस्लिम आतंकवादियों" द्वारा विधवा किया गया था। इसलिए, ट्रोल ब्रिगेड ने उनके खिलाफ चरित्र हनन अभियान चलाया, उन्हें "देशद्रोही" और "हत्यारों की समर्थक" करार दिया।

नारीवादी प्रतिक्रिया और विरोध

भारत और पाकिस्तान की नारीवादी संगठनों ने इस पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। 11 मई को जारी एक संयुक्त बयान में उन्होंने कहा कि जब सिंदूर युद्ध का नारा बन जाता है तो यह दर्द को मिटा देता है और महिलाओं को केवल शरीर के रूप में प्रस्तुत करता है, जिस पर पुरुषवादी राष्ट्रवादी कल्पनाएं चढ़ाई जाती हैं।

डॉ. मेडुसा और अन्य महिलाओं पर हमले

लोकप्रिय सोशल मीडिया टिप्पणीकार और व्यंग्यकार डॉ. मेडुसा ने कहा था कि किसी से उसका धर्म पूछकर मारना आतंकवाद है। लेकिन किसी को धर्म के आधार पर पीटना भी आतंकवाद है। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी समर्थित प्रदर्शन हुए और विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें शो-कॉज नोटिस जारी किया। कुछ धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी छात्र संगठनों ने उनके समर्थन में प्रदर्शन किए।

विरोध की आवाज़ों को दबाना

दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट की वकील अमिता सचदेवा ने 29 अप्रैल को साइबर क्राइम साउथ डिवीजन में एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें व्यंग्यकार शमिता यादव पर सरकार की प्रतिक्रिया की आलोचना करने के कारण देशद्रोह का आरोप लगाया गया था। यह घटना दिखाती है कि असहमति की आवाज़ों को दबाने की कोशिशें जारी हैं।

मंत्री का आपत्तिजनक बयान

मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी, जो ऑपरेशन सिंदूर के प्रवक्ता थीं, के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। बीजेपी ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई की और मंत्री से रिपोर्ट मांगी।

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