Nilanjan Mukhopadhyay

लाल किले से RSS की तारीफ: प्रधानमंत्री की निष्पक्षता पर सवाल


लाल किले से RSS की तारीफ: प्रधानमंत्री की निष्पक्षता पर सवाल
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प्रधानमंत्री मोदी के भाषण ने भारत की विरासत को गौरव का विषय बताया, लेकिन आलोचकों का कहना है कि जब इस विरासत को धार्मिक, भाषायी और ऐतिहासिक पूर्वग्रहों से परखा जाता है तो वह समावेशी भारत की आत्मा को आघात पहुंचाती है।

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से राष्ट्र को संबोधन देते हुए RSS की पहली बार खुले तौर पर प्रशंसा की। उन्होंने RSS को “दुनिया का सबसे बड़ा NGO” कहा और संगठन की शताब्दी वर्ष की सेवाकार यात्रा को “गर्व और गौरव का स्वर्णिम अध्याय” बताया। यह पहली बार था, जब लाल किले की प्राचीर से RSS की ऐसी खुली प्रशंसा की गई।

विपक्षी पार्टियों की तीखी प्रतिक्रिया

कांग्रेस ने इसे “संविधान और धर्मनिरपेक्ष भारत की आत्मा का उल्लंघन” बताया, साथ ही इसे संघ को रिटायरमेंट से पहले खुश करने की कोशिश भी माना गया। AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह स्वतंत्रता संग्राम का अपमान है। क्योंकि RSS ने इसमें कोई भूमिका नहीं निभाई और गांधी जी से द्वेष किया। CPI(M) ने इसे शहीदों की स्मृति का अपमान बताते हुए RSS की ऐतिहासिक भूमिका पर सवाल उठाया।समाजवादी पार्टी और TMC ने भी इस कदम को सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति बताया।

BJP का बचाव

BJP का कहना है कि RSS की विचारधारा (Hindutva) देश की सार्वजनिक राजनीति में स्पष्ट रूप से प्रभावशाली हो रही है और इसे सकारात्मक रूप से देखना चाहिए — इसे सांप्रदायिक नहीं, बल्कि भारत के सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बताया गया।

महाकुंभ का उद्धरण अवैध

आलोचक बताते हैं कि कुंभ मेला एक पूर्णतः हिंदू धार्मिक आयोजन है, इसलिए इसे भारत की बहुध Faith विविधता का प्रतिनिधि मानना उचित नहीं। यह पहलू धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता।

‘सुदर्शन चक्र मिशन’

मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा कवच को “सुदर्शन चक्र मिशन” कहकर नामित किया — कृष्ण का पौराणिक अस्त्र, Gujarat-inspired नामकरण मध्यनजर रखते हुए। इससे भारतीय रक्षा सेवाओं की बहुदार्मिक पहचान कमजोर होने की चिंता बढ़ी।

डेमोग्राफी मिशन

प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि देश की जनसंख्या संरचना में बदलाव, खासकर सीमा क्षेत्रों में हो रहा अवैध परिवर्तन, राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती दे रहा है। उन्होंने “उच्च स्तरीय जनसंख्या मिशन” के शुभारंभ की भी घोषणा की, जो जनसंख्या संबंधी जोखिमों पर समयबद्ध तरीके से नज़र रखेगा।

मिशन: सुरक्षा या विभाजन की आड़?

यह कदम BJP और RSS की दशकों पुरानी जनसंख्या सिद्धांतों से जुड़ा दिखता है— जिसमें धर्म, जन्म दर और घुसपैठ जैसे विषयों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर इस्तेमाल किया गया है।

मिश्रित प्रतिक्रिया

मीडिया और विपक्ष में यह तर्क उठाया गया कि मंदिर जैसी धार्मिक सामाजिकता को राष्ट्र की विविधता का उदाहरण बनाना अनुचित है। दूसरी ओर, जनसंख्या मिशन पराहिक सवाल उठ रहे हैं — क्या यह मिशन जनसांख्यिकीय बहुलता का सम्मान करते हुए लागू होगा या यह विभाजन का राजनीतिक औज़ार बनेगा?

बंगालियों के खिलाफ ‘संघीय अभियान’ की आलोचना

हाल के हफ्तों में बीजेपी शासित राज्यों में बंगाली भाषी मुस्लिमों के खिलाफ अभियान तेज़ हुआ है। स्थानीय प्रशासन के सहयोग से संगठित तरीक़े से ऐसे लोगों को 'घुसपैठिया' या 'अवैध प्रवासी'** बताया जा रहा है। विशेष चिंता का विषय यह है कि बंगाली मुसलमान, चाहे वे देश के किसी भी कोने में रहते हों, अब खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। गौरतलब है कि गृह मंत्री अमित शाह पहले भी ऐसे लोगों को "दीमक" कह चुके हैं, जिसकी व्यापक आलोचना हुई थी।

डेमोग्राफी मिशन या सांप्रदायिक संकेत?

प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ‘हाई पावर्ड डेमोग्राफी मिशन’ को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह योजना, जिसकी विस्तृत जानकारी अब तक साझा नहीं की गई है, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए बीजेपी की 'डॉग-व्हिसल पॉलिटिक्स' का हिस्सा प्रतीत होती है।

“विरासत सबसे बड़ा आभूषण”: मोदी का बयान

भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी पहचान का सबसे बड़ा आभूषण, सबसे बड़ा रत्न, सबसे बड़ा मुकुट — हमारी विरासत है और हमें उस पर गर्व है। लेकिन सवाल यह उठता है कि यह विरासत की परिभाषा कितनी समावेशी है?

मध्यकाल को 'ग़ुलामी का काल' कहना ऐतिहासिक अन्याय?

प्रधानमंत्री ने कई बार, यहां तक कि 2023 में अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए भी, भारत के मध्यकाल को "हज़ार साल की ग़ुलामी" करार दिया है। इतिहासकारों और आलोचकों का कहना है कि यह ऐतिहासिक तथ्यों का एकतरफा चित्रण है, जो भारत के समावेशी अतीत को नकारता है। भारत में विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों का आगमन हुआ — मुगल, तुर्क, अफगान और अन्य समुदायों ने केवल आक्रमण ही नहीं किए, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना में घुलमिल गए। ऐसे में, क्या यह उचित है कि इतिहास के कुछ कालखंडों को चुनिंदा रूप से ग़ुलामी करार दिया जाए और बाकी को भारत की विरासत माना जाए?

राजनीति बनाम विचारधारा

प्रधानमंत्री के भाषण में बार-बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा और भाषा का प्रभाव दिखा। विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रधानमंत्री की "प्रतिबद्ध स्वयंसेवक" वाली छवि को उभारने का प्रयास है। अब सवाल यह है कि क्या यह प्रयास RSS नेतृत्व को संतुष्ट करेगा या वे BJP की पुरानी सामूहिक निर्णय प्रक्रिया में वापसी की मांग करते रहेंगे?

(फेडरल सभी पक्षों के विचारों और राय को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेखों में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक की हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करें।)

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