
कश्मीरी पंडितों का कहना है कि केंद्र द्वारा संरचित पुनर्वास नीति की कमी के कारण कई पंडितों को पलायन करना पड़ा और वे अपनी जड़ों से दूर हो गए. जबकि अन्य अभी भी न्याय का इंतजार कर रहे हैं.
19 अप्रैल से कश्मीर घाटी का रेल संपर्क पहली बार देश के अन्य हिस्सों से जुड़ जाएगा. ये सिर्फ एक नया रेलवे रूट नहीं है, बल्कि एक ऐतिहासिक कदम है, जो कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में बड़ा प्रयास माना जा रहा है. इस हफ्ते उधमपुर-सरीनगर-बड़गाम-बारामूला रेल सेक्शन पर वंदे भारत ट्रेन की ट्रायल रन की गई. वर्तमान में ट्रेन संगलदान (जम्मू क्षेत्र) से बारामूला (कश्मीर) तक चल रही है. इस रेल कनेक्शन के पीछे कश्मीरी पंडितों के लिए मिली-जुली भावनाएं हैं. 1990 में जब घाटी में आतंकवाद चरम पर पहुंचा, तब लाखों कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ना पड़ा. आज भी वे अपनी घर वापसी के इंतजार में हैं. अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले ने जरूर उम्मीद जगाई थी। लेकिन वास्तविक पुनर्वास की राह अब भी अधूरी है.
ज़मीनी सच्चाई
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) के संजय टिक्कू के अनुसार, 1989 तक घाटी में करीब 77,000 पंडित परिवार रहते थे, आज ये संख्या घटकर 500 से भी कम रह गई है. पुनर्वास के नाम पर बने कई सरकारी प्लान फाइलों तक सीमित रह गए. ज़्यादातर पीड़ित पंडित जम्मू से देश और विदेश के दूसरे हिस्सों में पलायन कर चुके हैं.
जड़ों से कटती एक पीढ़ी
पिछले 30 सालों में, जो कश्मीरी पंडित अपने घर नहीं लौट पाए, वे आज अपनी संस्कृति, भाषा और परंपराओं से भी कटते जा रहे हैं. एक पूरी पीढ़ी शरणार्थी बनकर बड़ी हो चुकी है, जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. KPSS का कहना है कि सरकार की योजनाएं सिर्फ कागज़ों पर दिखने वाली "सांकेतिक नीतियां" रह गई हैं. जो योजना लोगों को घर वापसी का सपना दिखाती थी, वह अब केवल रोजगार योजनाओं या गिनी-चुनी बस्तियों तक सीमित हो गई है. बिना ठोस नीति, बिना ज़मीनी तैयारी के ये पुनर्वास सिर्फ प्रचार बनकर रह जाता है.
सच्चा पुनर्वास तब होगा, जब कश्मीरी पंडितों को सिर्फ शरणार्थी नहीं, बल्कि हकदार नागरिक समझा जाएगा. उन्हें मंदिर, ज़मीन, घर और संस्कृति वापस दी जाए. नीति ज़मीन पर दिखे, सिर्फ घोषणा में नहीं. अगर सच में बदलाव चाहिए तो केंद्र और केंद्रशासित सरकार को पुनर्वास की मूल योजना पर वापस जाना होगा. उसे नई सोच और दृढ़ नीयत के साथ दोबारा शुरू करना होगा.
नई रेल सेवा से उम्मीद
रेल सेवा से जुड़े लोग उम्मीद कर रहे हैं कि यह कदम उन लोगों की वापसी का रास्ता खोलेगा, जो सालों से अपने घर लौटने का सपना देख रहे हैं. लेकिन साफ है कि बिना योजना, उद्देश्य और इच्छा शक्ति के, कोई भी विकास सिर्फ दिखावा बनकर रह जाएगा.
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