
ओली की विदाई ने नेपाल में एक युग का अंत किया और Gen Z आंदोलन को केंद्र में ला दिया। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और अभिव्यक्ति की आज़ादी का मुद्दा अब युवा हाथों में है। Hami Nepal जैसे संगठन भविष्य की राजनीतिक धुरी बन सकते हैं — अगर वे संगठित और पारदर्शी बने रहें।
9 सितंबर की दोपहर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली जब इस्तीफा देने के बाद नेपाली सेना के हेलिकॉप्टर में सवार हुए तो यह दृश्य पिछले साल बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता से बेदखली और देश छोड़ने की घटना की याद दिला गया। हसीना ने 5 अगस्त 2024 को भारत की ओर रुख किया था। ओली कहां गए हैं, यह अब भी स्पष्ट नहीं है।
ओली का अगला पड़ाव अज्ञात
जहां हसीना का गंतव्य भारत था। वहीं, ओली के बारे में केवल अटकलें ही लगाई जा रही हैं। उनका हेलिकॉप्टर उन्हें भारत या चीन ले जा सकता है। लेकिन अंतिम निर्णय नेपाल की सेना पर निर्भर है। अगर सेना उन्हें देश के भीतर ही कहीं सुरक्षित स्थान दे दे तो वे यहीं रुक सकते हैं — जैसे हसीना के मामले में नहीं हुआ था।
छात्रों के नेतृत्व में उथल-पुथल
हसीना और ओली, दोनों की सत्ता से विदाई में एक और समानता है — आंदोलन की अगुवाई राजनीतिक दलों ने नहीं, बल्कि छात्र संगठनों ने की। बांग्लादेश में यह आंदोलन "Students Against Discrimination" नामक मंच से शुरू हुआ था, जिसे किसी राजनीतिक पार्टी से सीधा संबंध नहीं था। नेपाल में भी "Hami Nepal" नामक एक NGO ने नेतृत्व किया। यह संस्था 2015 में सुदान गुरूंग द्वारा बनाई गई थी, जिनका बच्चा नेपाल भूकंप में मारा गया था। संस्था ने शुरुआत में आपदा राहत का काम किया और बाद में युवाओं को भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूक करना शुरू किया।
भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का चेहरा बना 'Hami Nepal'
गुरूंग का मानना है कि भ्रष्टाचार ही नेपाल की खराब अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी की मुख्य वजह है, जिससे हर साल भारी मात्रा में युवाओं का पलायन होता है। ‘Hami Nepal’ को पश्चिमी देशों के कॉरपोरेट और फाउंडेशन डोनेशन से आर्थिक सहायता भी मिलती रही है। उन्होंने युवाओं को सोशल मीडिया के माध्यम से लामबंद कर एक सोशल मोबिलाइजेशन अभियान चलाया — कुछ वैसा ही जैसा बांग्लादेश में हुआ था।
सोची-समझी रणनीति?
बांग्लादेश के नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस ने खुलेआम स्वीकार किया था कि 2024 के आंदोलन की रणनीति “meticulously designed” थी और महफूज आलम नामक युवा नेता को इसका मास्टरमाइंड बताया गया था। अब नेपाल में भी कई लोग मान रहे हैं कि सुदान गुरूंग इसी तरह की भूमिका निभा रहे हैं। सोशल मीडिया बैन के विरोध में सोमवार को आयोजित विरोध प्रदर्शन में Hami Nepal ने स्कूली बच्चों को यूनिफॉर्म में प्रदर्शन में शामिल होने को कहा। इसका उद्देश्य यह था कि पुलिस बल प्रयोग से हिचके, लेकिन अगर बल प्रयोग होता और बच्चे हताहत होते तो इससे आंदोलन को और धार मिलती और यही हुआ।
'पॉइंट ऑफ नो रिटर्न' पर पहुंचा जनाक्रोश
नेपाल और बांग्लादेश दोनों में आंदोलनकारी युवाओं की मौतों के बाद प्रदर्शन और तेज हो गए। बांग्लादेश में हसीना ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए आरक्षित कोटा सिस्टम खत्म किया, लेकिन लोग नहीं माने। नेपाल में ओली ने सोशल मीडिया बैन हटाया, फिर भी प्रदर्शन रुके नहीं। अंत में गृह मंत्री रमेश लेखक और फिर प्रधानमंत्री ओली को इस्तीफा देना पड़ा।
क्या इसमें बाहरी ताकतें भी शामिल थीं?
नेपाल और बांग्लादेश दोनों में इन आंदोलनों की कमान ऐसे संगठनों के हाथ में रही, जो ज्यादा जाने-पहचाने नहीं थे और इंटेलिजेंस एजेंसियों की नजरों से दूर रहे। लेकिन इन संगठनों ने सोशल मीडिया, टेक्नोलॉजी और जन आक्रोश को एकजुट कर सरकारें हिला दीं। बांग्लादेश में आंदोलन के पीछे अमेरिकी समर्थन की चर्चा खूब रही है — अब सवाल उठ रहा है कि क्या नेपाल में भी कोई विदेशी शक्ति खेल रही है? इसका जवाब शायद कुछ समय बाद ही मिलेगा।