Sanket Upadhyay

पॉडकास्ट बना सबका पसंदीदा मंच, फेमस हस्तियों के लिए आसान रास्ता?


पॉडकास्ट बना सबका पसंदीदा मंच, फेमस हस्तियों के लिए आसान रास्ता?
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विजय माल्या पहले व्यक्ति नहीं हैं, जिन्होंने आसान और लोकप्रिय पॉडकास्ट इंटरव्यू में हिस्सा लिया हो. प्रधानमंत्री और उनकी पूरी कैबिनेट अब पॉडकास्टरों के साथ लंबे समय तक बैठना पसंद करती है।

भारत में पॉडकास्टिंग का चलन लगातार बढ़ रहा है। लेकिन विजय माल्या के साथ हाल ही में हुआ पॉडकास्ट अब तक का सबसे लंबा और चर्चित इंटरव्यू बन गया है। अगर यह कोई हिंदी फिल्म होती तो शायद इसका सीक्वल बन चुका होता। हालांकि, यह लेख इंटरव्यू की विषयवस्तु से अधिक इस माध्यम की कार्यप्रणाली और बढ़ते चलन पर केंद्रित है।

बातचीत का मंच, इंटरव्यू का विकल्प नहीं

पॉडकास्ट का मूल विचार 'बातचीत' है, न कि पारंपरिक पत्रकारिता वाले इंटरव्यू लेना। टेलीविज़न इंटरव्यू दशकों से होते आ रहे हैं। लेकिन पॉडकास्टिंग इसमें थोड़ा अलग है। पत्रकारिता में जहां बातचीत संक्षिप्त और सुर्खी निकालने पर केंद्रित होती है। वहीं, पॉडकास्ट लंबी, बिना रोक-टोक वाली बातचीत को बढ़ावा देता है। साल 1990 और 2000 के दशक में सिमी ग्रेवाल के शो को आज की पॉडकास्टिंग का शुरुआती रूप माना जा सकता है।

पॉडकास्ट का बढ़ता प्रभाव

हाल के वर्षों में वीडियो फॉर्मेट में पॉडकास्ट की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। इस ट्रेंड ने कई यूट्यूबर्स को मशहूर बना दिया है, जिनमें रणवीर अल्लाहबादिया और राज शमानी जैसे नाम प्रमुख हैं। युवा होने के कारण उनकी जिज्ञासु शैली जनरेशन Z और मिलेनियल्स को खासा आकर्षित करती है। अब जब उनके शोज़ लोकप्रिय हो गए हैं, वे ज़्यादा से ज़्यादा ऐसे मेहमानों को बुलाना चाहते हैं जो उन्हें व्यूज़ और लोकप्रियता दिला सकें।

विवादित चेहरों के लिए नया मंच

टीवी न्यूज़ डिबेट का दौर अब ढलान पर है। लोगों का उन पर से विश्वास उठ चुका है। ऐसे में पॉडकास्ट एक नया विकल्प बन गया है, खासकर उन लोगों के लिए जो टीवी पर आने से बचते हैं। यह फॉर्मेट लंबी, अनौपचारिक बातचीत का अवसर देता है और यही विवादास्पद हस्तियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया है। इन पॉडकास्ट्स में अक्सर सवालों की सूची और रिसर्च मेहमान को पहले ही भेज दी जाती है। कुछ मामलों में तो इंटरव्यू के बाद किस हिस्से को हटाना है, इस पर भी मेहमान की राय ली जाती है।

विजय माल्या का पॉडकास्ट

विजय माल्या का लगभग चार घंटे लंबा पॉडकास्ट देशभर में चर्चा का विषय बना। इसने लाखों व्यूज़ बटोरे और सोशल मीडिया पर भी काफी सुर्खियां पाईं। लेकिन इससे ज़्यादा अहम बात यह रही कि माल्या को अपनी बात एकतरफा ढंग से रखने का पूरा मौका मिला। पॉडकास्ट के स्वरूप में तीखे सवालों की गुंजाइश कम होती है। इसलिए माल्या से भी किसी तरह की कड़ी पूछताछ नहीं हुई। एक समय ‘किंग ऑफ गुड टाइम्स’ रहे माल्या ने जिस सहजता से खुद की कहानी पेश की, उससे कई सवाल अनुत्तरित ही रह गए।

हालांकि, विजय माल्या पहले व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने पॉडकास्ट को अपना मंच बनाया है। अब तो प्रधानमंत्री से लेकर कई केंद्रीय मंत्री तक इस माध्यम के जरिए लंबी बातचीत करना पसंद करते हैं, जहां वे बिना किसी दबाव के अपनी बात रख सकते हैं।

पॉडकास्ट का भविष्य

हर फॉर्मेट की एक समय सीमा होती है। जब दर्शकों को यह अहसास हो जाता है कि मंच पर बातचीत एकतरफा या पूर्वनियोजित है तो उसका असर कम होने लगता है। आज पॉडकास्ट लोकप्रियता और पैसे दोनों के लिए किया जा रहा है। युवा पॉडकास्टर्स किसी से भी इंटरव्यू कर सकते हैं—चाहे वह प्रसिद्ध हो या विवादित। टीवी डिबेट्स की तरह अगर यह ट्रेंड भी कंट्रोल से बाहर गया तो जनता इसकी प्रतिरोधक क्षमता (immunity) विकसित कर लेगी। जिस तरह वायरस म्यूटेट करता है, पॉडकास्टिंग भी अब एक ‘मीडिया वायरस’ बनता जा रहा है—बदलते रूप में, लेकिन हमेशा किसी एजेंडे के साथ।

(फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करना चाहता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक की हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करें।)

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