तालिबान सरकार के लिए उम्मीद की किरण बना अफगान क्रिकेट
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तालिबान सरकार के लिए उम्मीद की किरण बना अफगान क्रिकेट

विभिन्न तरह के संकट से घिरे तालिबानी सरकार के लिए उस देश की क्रिकेट टीम का टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल में पहुंचना बड़ी उपलब्धि है.


Afghanistan cricket: विभिन्न तरह के संकट से घिरे अफगानिस्तान की सरकार को अभी तक विश्व द्वारा मान्यता नहीं दी गई है. लेकिन उस देश की क्रिकेट टीम के लिए टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल में पहुंचना बड़ी उपलब्धि है. 15 अगस्त 2021 को सत्ता में वापसी के लगभग तीन साल बाद तालिबान सरकार को उसकी अति-रूढ़िवादी नीतियों के कारण दुनिया के बाकी हिस्सों द्वारा तिरस्कार के साथ देखा जा रहा है. यहां तक कि अफगान क्रिकेट टीम भी. वहीं, ICC ने भी अभी तक तालिबान को मान्यता नहीं दी है. क्योंकि काबुल सरकार ने महिलाओं पर प्रतिबंधों के तहत महिला क्रिकेट पर प्रतिबंध लगा दिया है.

तालिबान की शर्तें

हर मैच के शुरुआत में बजाए जाने वाला अफगान राष्ट्रगान तालिबान के पहले का है. ऐसे में तालिबान सरकार ने अनुरोध किया था कि राष्ट्रगान बिना संगीत के बजाया जाए. लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया. अफ़ग़ानिस्तान टीम के दो शीर्ष खिलाड़ी अपने देश में नहीं रहते हैं. कप्तान राशिद खान और ऑलराउंडर मोहम्मद नबी दुबई में रहते हैं. साल 1990 के दशक के मध्य से 2001 तक तालिबान के पहले कार्यकाल में क्रिकेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. क्रिकेट ने अफगानिस्तान में अमेरिकी कब्जे के दौरान अपनी पहचान बनाई, जिसमें शुरुआत में पाकिस्तान और बाद में भारत से थोड़ी मदद मिली. दरअसल, क्रिकेट की शुरुआत 1979-1990 के दौरान सोवियत कब्जे के दौरान पाकिस्तान के शरणार्थी शिविरों में अफगानों से हुई थी. यह खेल अफगानों के बीच लोकप्रिय साबित हुआ.

क्रिकेट-राजनीति गठजोड़

पाकिस्तान में तालिबान के पनपने के साथ ही क्रिकेट राजनीति से जुड़ गया. क्रिकेट के विकास के लिए मंच तब तैयार हुआ, जब अमेरिका के नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय सेना ने न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन डीसी पर 9/11 के हमलों के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और तालिबान को सत्ता से हटा दिया. साल 2021 में जब तालिबान सत्ता में वापस आया, तब तक अफ़गान क्रिकेट काफ़ी अच्छी तरह से स्थापित हो चुका था. साल 2017 तक अफ़गानिस्तान को ICC में प्रवेश की अनुमति मिल गई और उसे पूर्ण रूप से क्रिकेट खेलने वाले देश के रूप में मान्यता मिल गई. इसने कुछ अच्छी जीतें हासिल कीं और राशिद खान जैसे कई क्रिकेटरों ने इस खेल में अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी.

इसके बाद तालिबान 2.0 के लिए इस खेल को खत्म करना मुश्किल हो गया. इतना ही नहीं, तालिबान ने असहाय होकर अपने समर्थकों और अधिकारियों में से कई को क्रिकेट का अनुसरण करते और इसका भरपूर आनंद लेते देखा.

सुधार

क्रिकेट ने तालिबान के लिए संभावित सुधार के द्वार खोलने में कामयाबी हासिल की है. काबुल में तालिबानी सरकार ने अनिच्छा से दूसरी तरफ देखा है. क्योंकि उनके मुकाबलों की शुरुआत में अफ़गान टीम के खिलाड़ियों ने पुराने राष्ट्रगान और झंडे को सजाया है. पूरा देश अपनी क्रिकेट टीम के सेमीफाइनल में पहुंचने का जश्न मनाने के लिए सड़कों पर उतर आया है. जबकि एक सप्ताह से भी कम समय पहले ऑस्ट्रेलिया पर शानदार जीत दर्ज की गई थी.

तालिबान किसी भी तरह अफगानिस्तान की सड़कों पर उमड़ी भीड़ के आवेग और स्वतःस्फूर्तता को नियंत्रित नहीं कर सकता है. देश के लिए साल 1979 के अंत में सोवियत कब्जे के बाद यह पहली बार है, जब हर जगह जश्न मनाने का मौक़ा है.

क्रिकेट और कूटनीति

क्रिकेट के मैदान पर की गई वीरता कूटनीति के क्षेत्र में अन्य समानांतर घटनाक्रमों के साथ तालमेल बिठाती है. चीन ने हाल ही में बीजिंग में तालिबान के राजदूत को मान्यता दी है. ऐसा करने वाला वह पहला देश है. इस वर्ष जनवरी में भारत ने काबुल में अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में भाग लिया था. इससे पहले दिल्ली में अफ़गान दूतावास, जिसमें तालिबान से पहले की सरकार थी, को तालिबान सरकार की इच्छा के अनुसार बंद कर दिया गया था. अफ़गानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद से काबुल में भारत का दूतावास काम करता रहा है. हालांकि, न तो नई दिल्ली और न ही बीजिंग ने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता दी है.

राजदूत

काबुल शासन के लिए अफगानिस्तान क्रिकेट टीम की उपलब्धि एक वास्तविक राजदूत साबित हो रही है, जो साल 2021 में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेनाओं की अपमानजनक वापसी को लेकर अभी भी कटुता में डूबी बड़ी पश्चिमी शक्तियों को नरम कर सकती है. हालांकि, यह मानना भोलापन होगा कि क्रिकेट में तालिबान की धर्मतंत्रवादी मानसिकता के मूल तत्वों को बदलने की शक्ति है. लेकिन यह खेल तालिबान और अन्य देशों, विशेषकर एशियाई क्षेत्र के बीच बातचीत का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.

नरेंद्र मोदी सरकार, भारत में मुस्लिम विरोधी बयानबाज़ी के बावजूद, तालिबान सरकार के साथ अपने व्यवहार में विशेष रूप से नरम रही है. भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह समझ में आता है. क्योंकि अन्यथा अफ़गानिस्तान पाकिस्तान-चीन धुरी के करीब पहुंच सकता है, जो नई दिल्ली के लिए नुकसानदेह है.

पाकिस्तान की पहल

इसके अलावा तालिबान 2.0 इस्लामाबाद के प्रस्तावों के प्रति उतना ग्रहणशील नहीं है, जितना साल 1990 के दशक के मध्य में सत्ता में आने पर था। अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान को 2001-2021 के बीच निर्वासित तालिबान के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी और इसने उनके संबंधों को हमेशा के लिए खराब कर दिया।

भारत, जो तालिबान 1.0 के दौरान अवांछित व्यक्ति था, का अब काबुल में स्वागत है. क्रिकेट ने तालिबान के परिप्रेक्ष्य में भारत के पुनर्वास में एक प्रमुख भूमिका निभाई है. उदाहरण के लिए अफ़गान राष्ट्रीय टीम के कई सदस्य आईपीएल में नियमित रूप से खेलते हैं. राशिद खान, रहमानुल्लाह गुरबाज़ और नवीन उल-हक़ जैसे कुछ लोग स्थानीय मशहूर हस्तियां हैं और विभिन्न फ़्रैंचाइज़ी में उनकी काफ़ी मांग है. भारत ने अफगान टीम को अभ्यास के लिए अपने क्रिकेट मैदान के अलावा संबंधित बुनियादी ढांचागत सहायता भी उपलब्ध कराई है.

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