भारत-पाक खिलाड़ी भिड़े, गल्फ टीमों ने दिखाया एकता का रंग
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भारत-पाक खिलाड़ी भिड़े, गल्फ टीमों ने दिखाया एकता का रंग

भारत-पाक खिलाड़ी हैंडशेक विवाद में उलझे। जबकि यूएई-ओमान की टीमें प्रवासी खिलाड़ियों संग क्रिकेट को सीमाओं से परे एकता का प्रतीक बना रही हैं।


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हाल ही में हुए एक हाई-प्रोफाइल क्रिकेट मुकाबले में भारतीय और पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने हाथ मिलाने से इंकार कर दिया। यह घटना दिखाती है कि कैसे भू-राजनीति (Geopolitics) क्रिकेट में गहराई तक समाई हुई है। खिलाड़ियों का यह रवैया सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और इस पर बहस छिड़ गई कि क्या खेल कभी सच में राजनीति से अलग हो सकता है?

जहां भारत और पाकिस्तान के बीच की दुश्मनी मैदान पर भी ठंडी नजरों से झलकती है, वहीं दूसरी ओर खाड़ी देशों की टीमें बिल्कुल अलग तस्वीर पेश कर रही हैं जहां भारतीय और पाकिस्तानी मूल के खिलाड़ी एक ही जर्सी पहनकर साथ खेलते और एक-दूसरे की जीत का जश्न मनाते हैं।

विविधता से भरी यूएई टीम

एशिया कप में ओमान और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की टीमें इस मायने में खास हैं कि इनकी रचना प्रवासी खिलाड़ियों पर आधारित है। UAE टीम उस देश की बहु-सांस्कृतिक आबादी का प्रतिबिंब है।यूएई के कप्तान मुहम्मद वसीम (पाकिस्तान मूल) के साथ हेदर अली, मुहम्मद फारूक, मुहम्मद जवदुल्लाह, मतीउल्लाह खान और जुनैद सिद्दीकी जैसे पाकिस्तानी पृष्ठभूमि वाले खिलाड़ी खेलते हैं। वहीं, टीम में भारतीय मूल के खिलाड़ी भी हैं जैसे राहुल चोपड़ा, हर्षित कौशिक, ध्रुव पराशर, इथन डिसूजा, अलिशान शराफु, आर्यांश शर्मा और सिमरनजीत सिंह।

युवा ओपनर अलिशान शराफु, जिनका परिवार केरल से है लेकिन वे दुबई में पले-बढ़े, कहते हैं "अपने ही देश के गेंदबाज बुमराह के खिलाफ खेलना एक सपना जैसा था। यहां यह मायने नहीं रखता कि खिलाड़ी ने बचपन में दिवाली मनाई थी या ईद महत्वपूर्ण है तो सिर्फ यूएई की जर्सी का रंग।

दोनों तरफ की जड़ें: ओमान टीम

ओमान की क्रिकेट टीम भी इसी तरह भारत-पाकिस्तान की साझी विरासत को दर्शाती है। पाकिस्तानी पृष्ठभूमि से जुड़े खिलाड़ी हैं वसीम अली, शाह फैसल, मुहम्मद इमरान, जिक्रिया इस्लाम, आमिर कलीम, सुफ़यान महमूद और मुहम्मद नदीम।

वहीं, टीम के कप्तान जतिंदर सिंह, जो पंजाब के लुधियाना में जन्मे हैं, भारतीय जड़ों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके साथ अशिष ओडे़दारा, जितेन रमणंदी, समय श्रीवास्तव, विनायक शुक्ला और करण सोनावले जैसे खिलाड़ी भी हैं।दिलचस्प बात यह है कि जतिंदर सिंह पूर्णकालिक क्रिकेटर नहीं हैं। 2011 से वे मस्कट की एक कॉर्पोरेट कंपनी में प्रशासन विभाग में काम कर रहे हैं और साथ ही क्रिकेट भी खेलते हैं।

यह टीम ड्रेसिंग रूम में कभी हिंदी तो कभी उर्दू बोलती है और मैदान पर सीमाओं से परे होकर खेलती है।

भारत-पाकिस्तान बनाम खाड़ी की हकीकत

भारत और पाकिस्तान जब भिड़ते हैं तो हर मुस्कान, तंज़ या हाथ मिलाने को भी राजनीतिक प्रतीक की तरह देखा जाता है। लेकिन दुबई और मस्कट में खिलाड़ी बिल्कुल अलग दुनिया जीते हैं साझा भोजन, साझा होटल और साझा रणनीतियां।

यह विरोधाभास साफ है। एक ओर क्रिकेट राजनीति से भरा हुआ प्रतीत होता है।दूसरी ओर, खाड़ी देशों में वही खेल सीमाओं से परे एकता का प्रतीक बन जाता है।

प्रवासी इतिहास और नई पहचान

खाड़ी देशों में लाखों दक्षिण एशियाई प्रवासी दशकों पहले काम, व्यापार या रोज़गार के लिए आए। उनके बच्चे यहीं पले-बढ़े और स्कूलों व अकादमियों में क्रिकेट सीखा।इन खिलाड़ियों के लिए चयन भारत या पाकिस्तान की याद नहीं, बल्कि उस देश का सम्मान है जहाँ वे बड़े हुए। उदाहरण के लिए, आर्यांश शर्मा भले भारतीय मूल के हों, लेकिन उनकी पूरी क्रिकेट शिक्षा यूएई में हुई।

वहीं, आमिर कलीम पाकिस्तान में जन्मे, पर उनका करियर और वफादारी ओमान से जुड़ी है। खाड़ी में क्रिकेट का मतलब अब हम बनाम वे नहीं, बल्कि हम सब साथ में है। जहां सुर्खियां भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी और हैंडशेक विवाद पर अटक जाती हैं, वहीं खाड़ी देशों में एक शांत लेकिन सशक्त हकीकत मौजूद है—क्रिकेट, जो जोड़ता है, बाँटता नहीं।

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