दिव्यांग जरूर हैं लेकिन किसी से कम नहीं, पैरालिंपिक्स में खिलाड़ियों ने दिखाया दम
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दिव्यांग जरूर हैं लेकिन किसी से कम नहीं, पैरालिंपिक्स में खिलाड़ियों ने दिखाया दम

पेरिस पैरालिंपिक्स में भारत ने कमाल कर दिया। कुल 29 पदक में से सात गोल्ड मेडल है। इनकी कामयाबी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो सिर्फ कमी का रोना रोते है.


Paris Paralympics 2024: कमबैक...4 अक्षर का यह शब्द सुनने में तो बहुत छोटा लगता है, लेकिन इसके मायने बड़े हैं। और उनके लिए तो बेहद खास है, जिन्हें आज भी भारतीय समाज कही न कहीं कम आंकता है। सड़क पुल फुटपाथ टॉयलेट, स्कूल मॉल, स्टेडियम, खेल ग्राउंड बनाते वक्त बनाते उनकी मौजूदगी को नजरअंदाज करता रहा है। जी हां हम बात दिव्यांगों की कर रहे हैं। ये वही दिव्यांग हैं जिन्होंने भारत को ऐसी उपलब्धि दिलाई है, जिसकी कल्पना भी भारत के लोग नहीं करते हैं।

पेरिस पैरालिंपिक्स में पदकों की झोली
पैरा ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने ओलंपिक में थोक के भाव पदक जीते हैं। खिलाड़ियों ने 7 गोल्ड, 9 सिल्वर और 13 ब्रांज सहित 29 पदक जीते हैं। भारत जैसे देश में ओलंपिक में इतने मेडल मिलना तो असंभव सा लगता है। खास तौर से पिछले 124 साल का इतिहास देखा जाय तो यह तस्वीर और साफ हो जाती है। ओलंपिक में भारत ने आज तक 41 पदक जीते हैं। जिसमें से 10 गोल्ड है। और इस 10 गोल्ड में तो 8 बार भारतीय हॉकी टीम ने गोल्ड जीता है। यानी व्यक्तिगत स्तर पर केवल 2 खिलाड़ी ऐसा कर पाए हैं।

अब जरा पैरा ओलंपिक के उन दो गोल्डेन प्लेयर की बात करते हैं, जो नीरज चोपड़ा भी नहीं कर पाए हैं। सुमित अंतिल ने लगातार दूसरे ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता है। इसी तरह अवनी लखेरा ने कमाल दिखाया है। उन्होंने भी लगातार दो ओलंपिक में गोल्ड जीतकर रिकॉर्ड बना दिया है। ये ऐसे कारनामा हैं, जो भारतीय ओलंपिक के इतिहास में कोई खिलाड़ी नहीं कर पाया है। इसके अलावा नीतेश कुमार, हरविंदर सिंह, धरमबीर, प्रवीण कुमार, नवदीप सिंह ने गोल्ड जीता।

पैरा ओलंपियन की खास कहानी
पैरा ओलंपिक में इन खिलाड़ियों की उपलब्धि को केवल इसलिए कम नहीं आंका जा सकता है। कि यहां पर ओलंपिक की तुलना में कंप्टीशन कम है। भारत पैरा ओलंपिक में 1968 से भाग ले रहा है। लेकिन 2016 से जिस तरह खिलाड़ियों ने दमदार प्रदर्शन किया है। उससे भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊंचा हुआ है। और यह सफलता भारत जैसे खेल को लेकर कम तरजीह देने वाले देश में पैरा ओलंपिक खिलाड़ियों की दृढ़ इच्छा शक्ति को दिखाता है। क्योंकि एक तरफ जहां ओलंपिक में किसी खिलाड़ी के शारीरिक स्तर की परीक्षा होती है, वहीं पैरा ओलंपिक में किसी खिलाड़ी के दृढ़ संकल्प और साहस का परीक्षण होता है।

और अगर इन पदक विजेताओं में की आप कहानी जानेंगे, तो आपको यह अहसास होगा कि कैसे इन खिलाड़ियों ने समाज और दुनिया से लड़कर असंभव को संभव कर दिखाया है। किसी ने हादसे में पैर गंवाने के बाद हार नहीं मानी तो किसी ने लकवा मारने के बाद भी हार नहीं मानी। ऐसी न जानें कितनी कहानियां इन पैरा खिलाड़ियों की सफलता के पीछे के जज्बे और लगन को दिखाती हैं।

राज्यों में हरियाणा आगे
भारतीय खिलाड़ियों की सफलता के पीछे बदलता खेल कल्चर भी है। इस मामले में हरियाणा काफी आगे है। इस बार जो 84 खिलाड़ियों की टीम पेरिस पैरालंपिक में हिस्सा लेने पहुंची थी, उसमें से 23 खिलाड़ी सिर्फ हरियाणा से थे। राज्य में पैरा-एथलीटों को भारी- भरकम पुरस्कार, सरकारी नौकरियां और सम्मान देकर इन खेलों को बढ़ावा दिया है और इससे आम लोगों के बीच पैरा-स्पोर्ट्स को प्रतिष्ठा मिली है। इसी तरह 2010 में देश में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन हुआ था, उसके बाद से खेल मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने वाले नियमित और पैरा-एथलीट खिलाड़ियों को दिए जाने वाले नक़द पुरस्कार की राशि को बराबर कर दिया। इसी तरह केंद्र सरकार के तरफ से पैरा ओलंपिक की फंडिंग में टोक्यो की तुलना में 26 करोड़ का इजाफा किया गया। साथ ही ओलंपिक की तरह पैरा ओलंपिक की खिलाड़ियों को TOPS का हिस्सा बनाया गया। जमीनी स्तर पर पैरा खेल शुरू होने का भी फायदा मिला। खेलो इंड‍िया पैरा गेम्स और जून‍ियर टूर्नामेंट से कई खिलाड़ियों को पैरा ओलंपिक टीम में शामिल होने का मौका मिला। खिलाड़ियों को सपोर्ट स्टाफ का भी फायदा मिला।

बाबुओं को भी सोचना होगा
लेकिन इन बदलावों के बाद भी अभी हमें सरकार में बैठे बाबुओ और समाज के स्तर पर बहुत कुछ सोचना होगा। मसलन राइफ़ल शूटर अवनि लेखरा जिस रेंज में अभ्यास किया करती थीं, वहां लंबे समय तक व्हीलचेयर के लिए कोई रैंप या रास्ता ही नहीं था। और यह मानसिकता भारत के सभी सार्वजनिक स्थल पर दिखती है। सड़क हो या फिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बात हो बहुत कम इलाके हैं, जहां पर दिव्यांगों की सुविधा के आधार पर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाता है। राइट ऑफ पर्सन विथ डिसएबिलिटी एक्ट 2016 के तहत 5 साल के अंदर दिव्यांगों के लिए सुविधाएं विकसित करनी थी। लेकिन आज तक वह नहीं हो पाया है। इसी तरह ज्यादातर प्राइवेट बिल्डिंग और ट्रांसपोर्ट भी दिव्यांग के लिए उदासीन रवैया रखते हैं। ऐसे समाज में पैरा ओलंपिक में खिलाड़ियों का प्रदर्शन किसी नई खुशबू से कम नहीं है। उम्मीद है कि उनकी इस सफलता के बाद से दिव्यांगों के लिए नई सुबह की शुरूआत होगी।

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