प्रचार में नेता से राम होने की कोशिश, कितना कामयाब होंगे आप के केजरीवाल
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प्रचार में नेता से 'राम' होने की कोशिश, कितना कामयाब होंगे 'आप' के केजरीवाल

राजनीती में राम के नजदीक आने की कोशिश आप के लिए कितनी होगी सफल ये देखने वाली बात होगी, क्योंकि येही वो पार्टी है जिसने धर्म, जाती, पंथ से अलग हट कर राजनीती करने की बात कही थी.


AAM Admi Party: आम आदमी पार्टी ने 2012 में जब राजनीती में कदम रखा था तो राजनीती बदलने का दम भरा था. लेकिन अब दिल्ली की सत्ता में 10 साल से ज्यादा समय रहने के बाद ये पार्टी दूसरों को तो नहीं बदल पायी लेकिन खुद जरुर बदलाव की ओर है. जैसे अब ये पार्टी राम का सहारा लेने में भी गुरेज नहीं कर रही है, जबकि यही आप पार्टी राम के नाम का इस्तेमाल करने पर भाजपा को लगातार कोसती आई है. आज इस पार्टी के नेता को अपने मुख्यमंत्री का इस्तीफा देना राम के त्याग के बराबर लग रहा है, लेकिन पार्टी ये नहीं कह रही है कि क्या अरविन्द केजरीवाल भी 14 वर्ष का वनवास भोगेंगे या फिर केजरीवाल ने 177 दिन की जेल को ही 14 साल के वनवास के बराबर मान लिया है? क्या वो जब तक पूरी तरह से बरी नहीं हो जाते तब तक सत्ता से दूर रहेंगे? ऐसे कई सवाल हैं जो उनकी राम की छवि को उकारने के प्रयास करने वालों से पूछे जाने हैं.

काम पर नहीं बल्कि 10 साल पुराने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग के मुद्दे पर जा रहे हैं जनता के बीच

आम आदमी पार्टी की बात करें तो उसे 10 साल बाद जहाँ अपने काम को लेकर जनता के बीच जाना चाहिए था लेकिन वो इस बार भी दो दशक पुराने भ्रष्टाचार के खिलाफ की लड़ाई को ही मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है, वो भी तब जब दिल्ली सरकार में शामिल मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और इन्हीं आरोपों के चलते उन्हें जेल में भी रह कर आना पड़ा. भ्रष्टाचार के आरोप भर से दूसरे दल के नेताओं को भ्रष्ट घोषित कर देने वाली आम आदमी पार्टी ने अपने ऊपर ऐसे आरोप लगने के बाद भ्रष्टाचार की परिभाषा ही बदल दी. इसे राजनितिक षड्यंत्र बताया जाने लगा है और लोगों के सामने यही बात दोहराई जा रही है ताकि वे इसे ही सच माने और अदालत के फैसले का इंतजार न करें. लेकिन आम आदमी पार्टी के सामने दिल्ली की दिवंगत मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर लगाए गए आरोपों की फेहरिस्त भी आ जाती है.

अब राम और हनुमान का लिया जा रहा है सहारा

आम आदमी पार्टी ने राजनीती में आने पर भ्रष्टाचार के साथ साथ ये दावा भी किया था कि किसी प्रकार की धर्म आधारित राजनीती नहीं करेंगे. लेकिन पहले इस पार्टी पर मुस्लिमों को लाभ देने से सम्बंधित आरोप लगे और फिर जैसे ही केंद्र में बीजेपी की सरकार आई और लगातार तीन बार से लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने आप को खाता भी नहीं खोलने दिया तो राम के नाम का इस्तेमाल करने के लिए बीजेपी को कोसने वाली इसी आम आदमी पार्टी ने भी राम नाम का सहारा लेना शुरू कर दिया. मसलन अभी जब केजरीवाल की जमानत पर फैसला आना बाकी था तो दिल्ली में पोस्टर लगवाए गए केजरीवाल आयेंगे, ये ठीक वैसा ही था, जैस राम मंदिर में श्रीराम की मूर्ति स्थापना से पहले राम आयेंगे के पोस्टर देश भर में लगाये गए थे. इतना ही नहीं इससे पहले ही आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में जगह जगह हनुमान चालीसा पाठ भी शुरू कराया. केजरीवाल को श्री राम भक्त हनुमान का भक्त भी घोषित कर दिया गया अरु अब जब भी केजरीवाल हनुमान मंदिर जाते हैं. मीडिया को भी साथ ले जाते हैं.

शीला दीक्षित को बगैर एफआईआर के ही कर दिया था भ्रष्ट करार

शीला दीक्षित जिन्हें दिल्ली की कायापलट करने का श्रेय दिया जाता है. वो लगातार 15 साल दिल्ली की सत्ता में काबिज रहीं. वो 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी और 2013 तक इस पद पर काबिज रहीं. आन्दोलन से कड़ी हुई आम आदमी पार्टी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जब बिगुल फूंका तो सबसे पहले शीला दीक्षित को ही निशाने पर लिया. वजह थी कि सत्ता विरोधी लहर. हैरानी की बात ये है कि शीला दीक्षित के खिलाफ सीधे तौर पर कोई एफआईआर भी दर्ज नहीं थी और न ही वो किसी मामले में गिरफ्तार हुई थीं, फिर भी केजरीवाल व उनकी पार्टी ने शोर मचा मचा कर शीला दीक्षित को एक सिरे से भरष्ट घोषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इससे भी बड़ा ताज्जुब उस समय हुआ जब दिल्ली की सत्ता हासिल करने के बाद इसी आम आदमी पार्टी ने शीला दीक्षित पर लगाये आरोपों को लेकर कोई कार्रवाई तक नहीं की.


आरोपों को लेकर लिखित में माफ़ी मांगने वाले नेता और पार्टी

आम आदमी पार्टी की एक और उपलब्धि है, वो है अपने अनर्गल आरोपों को लेकर अलग अलग नेताओं से लिखित में माफ़ी माँगना, वो भी अदालत के सामने. इस कड़ी में आप के संयोजक अरविन्द केजरीवाल समेत अन्य तमाम नेता शामिल हैं. आम आदमी पार्टी ने जनता के बीच में अपनी जगह बनाने के लिए तमाम पार्टियों के तमाम नेताओं पर भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोप लगाये, वो भी बगैर किसी ठोस सबूत के. जिसका नतीजा ये हुआ कि जब आप के नेताओं पर मानहानि का दावा किया गया तो आप के इन्हीं नेताओं ने अदालत के सामने अपनी गलती मानते हुए लिखित में उस नेता व पार्टी से माफ़ी भी मांगी है.

अब सवाल ये कि राम के नजदीक आने और मुख्यमंत्री बदलने के फोर्मुले को अपनाने से क्या आप को फायदा मिल पायेगा

अगर हम राम और मुख्यमंत्री बदलने पर गौर करें तो इस काम में बीजेपी ही ऐसी पार्टी है, जिसने अधिकतर प्रयोग किये हैं. बीजेपी की राजनीती ही राम से शुरू हुई और चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री बदलने में भी बीजेपी ने ही प्रयोग किया. अब कुछ ऐसा ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने भी किया है. भ्रष्टाचार के दाग छुड़ाने के नाम पर अरविन्द केजरीवाल ने जिस तरह से अपनी कुर्सी को छोड़ कर नए चेहरे को कुछ समय के लिए पद देने की बात की है, जो बीजेपी की तरह ही सत्ता विरोधी लहर या गुस्से को कम करने के प्रयास की तरह ही देखा जा रहा है. लेकिन ऐसा जरुरी नहीं की ये प्रयास हर बार सफल हो. बीजेपी ने कई बार कई राज्यों में ये फार्मूला अपनाया है, लेकिन कहीं पास तो कहीं फेल वाली बात निकल कर आई है. हरियाणा में हाल ही में बीजेपी ने मुख्यमंत्री को बदला, लेकिन उसके तुरंत बाद ही लोकसभा चुनाव आ गए. बीजेपी और कांग्रेस 5 - 5 सीट पर जीतीं. अब विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसका परिणाम 8 अक्टूबर को आएगा, तब पता चलेगा कि क्या मुख्यमंत्री बदलने वाला ये दाव फायदेमंद रहा या नहीं.

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