गुजरात में पीएम मोदी के हर दौरे पर विपक्षी नेता नजरबंद, उठे संवैधानिक सवाल
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गुजरात में पीएम मोदी के हर दौरे पर विपक्षी नेता नजरबंद, उठे संवैधानिक सवाल

गुजरात में पीएम मोदी के दौरे पर फिर 10 एक्टिविस्ट और विपक्षी नेता बिना वारंट हिरासत में लिए गए थे। पुलिस ने इसे सिक्योरिटी प्रोटोकॉल लेकिन विपक्ष ने उत्पीड़न बताया।


अहमदाबाद, 25 अगस्त 2025 की सुबह। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्धारित दौरे से पहले शहर सजा रहा था। सड़कें साफ की जा रही थीं, सुरक्षा घेरे कस रहे थे। लेकिन इस चकाचौंध के पीछे एक और तैयारी चल रही थी। गुजरात पुलिस की वैनें शहर के अलग-अलग हिस्सों में घूम रही थीं और उन पतों पर पहुंच रही थीं जो लंबे समय से उनकी लिस्ट में दर्ज थे।उस दिन दस एक्टिविस्ट और विपक्षी नेताओं को अचानक उठाया गया। किसी को घर से, किसी को सड़क किनारे से और कुछ को उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया।

वजह वही पुरानी

2015 से ‘प्रिवेंटिव डिटेंशन’ प्रोटोकॉल लागू है। नजरबंद किए जाने वालों में दिक्षित सोनी (दलित अधिकार कार्यकर्ता),जगदीश चावड़ा (AAP, एससी सेल अध्यक्ष),हितेंद्र पिठाडिया (कांग्रेस, एससी सेल चेयरमैन),हेमांग रावल और पृथ्वीराज कथावडिया (कांग्रेस प्रवक्ता),सोनल पटेल (अहमदाबाद जिला कांग्रेस अध्यक्ष) थे। इनमें से किसी ने उस सुबह कोई विरोध नहीं किया था, पर सभी जानते थे कि यह होना तय है।

पुलिस का तर्क और पुराना पैटर्न

अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी ने कहा “हमें राज्य खुफिया विभाग से थ्रेट परसेप्शन रिपोर्ट मिलती है। पीएम के दौरे के दौरान कोई विरोध न हो, इसीलिए हम इन्हें उठाते हैं। 2015 से यह सिक्योरिटी प्रोटोकॉल का हिस्सा है। पीएम के जाने के बाद इन्हें छोड़ दिया जाता है। फोन भी जब्त कर लिए जाते हैं ताकि जमीनी या सोशल मीडिया पर कोई गतिविधि न हो।

दिक्षित सोनी: हर बार वही सिलसिला

40 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता दिक्षित सोनी सुबह 8 बजे घर से उठाए गए और 36 घंटे तक थाने में नजरबंद रखे गए। 2016 से अब तक उन्हें 10 बार रोका गया है कभी किसी जिले के सर्किट हाउस में, तो कभी अंतिम संस्कार से लौटते वक्त।2017 के ‘रेल रोको’ आंदोलन में उन पर दंगा और गैरकानूनी जमावड़े का केस दर्ज हुआ था, लेकिन जनवरी 2024 में सभी 30 दलित एक्टिविस्ट बरी हो गए। इसके बावजूद, हर पीएम विज़िट पर उनकी गिरफ्तारी लगभग तय है।

जगदीश चावड़ा: एक्टिविज़्म से लेकर AAP तक

39 वर्षीय चावड़ा, रिटायर्ड पुलिस कॉन्स्टेबल के बेटे, 2017 में पूर्णकालिक दलित एक्टिविस्ट बने। 2023 में AAP में शामिल हुए और 2024 में एससी सेल के अध्यक्ष बने। इस साल कड़ी उपचुनाव भी लड़ा।25 अगस्त को उन्हें सुबह से दोपहर 1 बजे तक नजरबंद रखा गया, फिर शाम तक पुलिस स्टेशन में बैठाए रखा गया। अब तक 7 बार रोके जा चुके हैं।

हितेंद्र पिठाडिया: राजनीति में आने की कीमत

MBA पास और कभी MNC में रीजनल हेड रह चुके 46 वर्षीय पिठाडिया ने 2014 में नौकरी छोड़ राजनीति जॉइन की। अब कांग्रेस एससी सेल चेयरमैन हैं।उनका कहना है, गिनती भूल चुका हूँ। शायद 12 बार से ज्यादा डिटेन किया गया। एक बार तो मोदी के चुनावी दौरे में मुझे 4 दिन लगातार रोके रखा गया।

सोनल पटेल: कांग्रेस की वरिष्ठ नेता

63 वर्षीय आर्किटेक्ट और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोनल पटेल 2018 से हर मोदी दौरे पर हिरासत में ली जाती रही हैं। इसी साल उन्होंने गांधीनगर से अमित शाह के खिलाफ चुनाव लड़ा था। उनका कहना है,“अब विरोध भी नहीं करती। हर बार यही होना है।”

हेमांग रावल: सोशल मीडिया पोस्ट की सजा

कांग्रेस प्रवक्ता हेमांग रावल ने कुछ दिन पहले एक पोस्ट साझा किया था जिसमें आरोप था कि सरकारी शिक्षकों को पीएम की रैली में अनिवार्य रूप से बुलाया गया। अगले ही दिन तीन लोग घर आए, फोन जब्त कर लिया और बिना वारंट उन्हें क्राइम ब्रांच ले गए। दिनभर नजरबंद रखने के बाद छोड़ दिया गया।

कानून और अधिकारों पर सवाल

पुलिस इन कार्रवाइयों को ‘प्रीवेंटिव’ बताती है, लेकिन एक्टिविस्ट और कानूनी विशेषज्ञ इसे असंवैधानिक कहते हैं। संविधान का अनुच्छेद 22 और CrPC की धारा 167 केवल असाधारण स्थितियों में ही बिना ट्रायल डिटेंशन की अनुमति देता है।सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि यह ‘रूटीन प्रैक्टिस’ नहीं बननी चाहिए। गुजरात का PASA (Prevention of Anti-Social Activities Act) अक्सर दुरुपयोग के लिए कुख्यात है। हाईकोर्ट ने दो साल में 64% डिटेंशन को रद्द किया।

सामाजिक कार्यकर्ता अशोक श्रीमाली कहते हैं, “इनका अपराध क्या है? सिर्फ इतना कि वे विपक्ष में हैं। यह सीधा उत्पीड़न है। वकील गोविंद परमार जोड़ते हैं, गुजरात में पुलिस बिना यूनिफॉर्म, बिना पुलिस वाहन और बिना रिकॉर्ड किसी को भी उठा लेती है। कोर्ट में चुनौती देना असंभव हो जाता है।”

प्रोटोकॉल या सजा?

सोनी, चावड़ा, पिठाडिया, पटेल और रावल जैसे लोगों की कहानियाँ बताती हैं कि गुजरात में विपक्ष और एक्टिविस्ट्स की जिंदगी कैसी है।वे काम जारी रखते हैं कभी राजनीति में, कभी आंदोलनों में, कभी बिज़नेस में पर हर बार प्रधानमंत्री का दौरा उनके लिए हिरासत और सजा का पर्याय बन जाता है।पुलिस के लिए यह सिक्योरिटी प्रोटोकॉल है, लेकिन जिनके लिए यह लागू होता है, उनके लिए यह बिना आरोप की सजा है।

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