
अदानी के प्लांट को मिली ज़मीन, असम के आदिवासी बोले-हक नहीं छीनने देंगे
यह लड़ाई बोडो आदिवासियों के मूल भूमि अधिकारों को बहाल करने के लिए है। थर्मल प्लांट आंशिक रूप से वन क्षेत्र के रूप में चिह्नित क्षेत्र में स्थापित किया गया है।
असम के कोकराझार जिले के बग्रिबाड़ी रेवेन्यू सर्कल के तहत आने वाले छह बोडो-बहुल गांवों में ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। वजह है असम सरकार और बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (BTC) द्वारा अदानी समूह के साथ साझेदारी में असम पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (APDCL) को 3,600 बीघा जमीन का आवंटन जो कि एक संरक्षित वन क्षेत्र का हिस्सा है। इस जमीन पर एक थर्मल पावर प्लांट स्थापित किया जाना प्रस्तावित है।
वन अधिकारों की अनदेखी
यह परियोजना बशबाड़ी में प्रस्तावित रिज़र्व फ़ॉरेस्ट (Paglijhora PRF) क्षेत्र में स्थित है, जो भारतीय संविधान की छठी अनुसूची द्वारा मान्यता प्राप्त स्वायत्त आदिवासी क्षेत्र है। प्रभावित गांवों में डुकिसुकिजार पार्ट दो और तीन पगलिजोरा पार्ट एक और दो और मवमारीझार शामिल हैं।
अप्रैल 2025 में इन गांवों के 280 हेक्टेयर क्षेत्र को वन अधिकार अधिनियम (FRA) 2006 के तहत राजस्व गांव के रूप में मान्यता दी गई थी। बावजूद इसके, जमीन की 'फॉरेस्ट क्लासिफिकेशन' कानूनी रूप से अब भी बरकरार है, जिससे स्पष्ट है कि परियोजना के लिए वन संरक्षण अधिनियम की धारा 2 के तहत अनिवार्य पर्यावरणीय स्वीकृति आवश्यक है जो प्राप्त नहीं की गई है।
बशबाड़ी लैंड राइट प्रोटेक्शन कमेटी के सलाहकार दौराओ देखरेब नारजारी ने कहा कि यह वन अधिकार अधिनियम और वन संरक्षण अधिनियम दोनों का खुला उल्लंघन है। उन्होंने बताया कि लगभग 80 प्रतिशत भूमि पर बोडो समुदाय के स्थानीय लोग वर्षों से कृषि, पशुपालन और आवास के लिए निर्भर हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि शेष 20 प्रतिशत भूमि में सघन साल वृक्ष हैं, जो पर्यावरणीय और आजीविका की दृष्टि से बेहद अहम हैं।
सवालों में उलझी स्वीकृति प्रक्रिया
एक बड़ा विवाद सब डिविजनल लैंड एडवाइजरी कमेटी (SDLAC) की मंजूरी की टाइमलाइन को लेकर है। कथित रूप से इस समिति ने 9 अप्रैल 2025 को ही इस भूमि आवंटन को मंजूरी दे दी थी, जबकि असम कैबिनेट ने इसे 4 मई को औपचारिक रूप से पारित किया। स्थानीय आदिवासी नेताओं का आरोप है कि राजनीतिक दबाव में बैठक की प्रक्रिया को मोड़ा गया ताकि अदानी-APDCL की परियोजना को मंजूरी मिल सके।
ऑल असम ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (AATSU) के अध्यक्ष हरिश्वर ब्रह्मा ने कहा कि छठी अनुसूची वाले स्वायत्त क्षेत्र में राज्य सरकार द्वारा भूमि आवंटन करना असंवैधानिक है। BTC ही इस क्षेत्र का संवैधानिक शासक निकाय है,असम कैबिनेट नहीं।
सरकारी दलील
राज्य सरकार इस परियोजना को "असम थर्मल पावर जनरेशन प्रोडक्ट प्रमोशन पॉलिसी 2025" के तहत एक ऊर्जा हब बनाने की दिशा में कदम बता रही है। 20,000 करोड़ रुपये की इस परियोजना से 1,800 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने का लक्ष्य है। APDCL इसमें 27% हिस्सेदारी रखेगा और बाकी निवेश अदानी समूह द्वारा किया जाएगा। BTC प्रमुख प्रमोद बोरों ने इस परियोजना को रोजगार सृजन और भविष्य में बढ़ती बिजली मांग (5,000 MW तक) को पूरा करने का जरिया बताया।
प्रदर्शनकारियों की चिंता और गुस्सा
स्थानीय ग्रामीणों को तब जाकर पूरी जानकारी हुई जब मार्च 2025 में अदानी समूह के निदेशक जीत अदानी प्रस्तावित स्थल पर दौरे पर पहुंचे। इसके बाद सरकार की ओर से अचानक सर्वे कार्य शुरू हो गया, जिससे संदेह और आक्रोश पैदा हुआ।11 जून को एक सरकारी सर्वेक्षण टीम को गांववासियों के विरोध के कारण वापस लौटना पड़ा। अगले दिन एक पुलिस सुरक्षा दल के साथ आई टीम को महिलाओं के आत्मदाह की धमकी का सामना करना पड़ा।
नारजारी ने कहा कि झारखंड के गोड्डा में अदानी का थर्मल प्लांट केवल 315 लोगों को रोजगार देता है। तो यहां हजारों लोगों की ज़मीन, जंगल और जीवन एक झूठे वादे के नाम पर क्यों छीना जा रहा है? पर्यावरण क्षरण, स्वास्थ्य खतरे और कृषि हानि की आशंकाएं भी विरोध का हिस्सा हैं।
राजनीतिक तापमान चढ़ा
असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने कहा कि BJP सरकार ने बोडो जनजातियों के आत्मिक और संवैधानिक अधिकारों को कुचला है। लोग सड़कों पर रातें बिता रहे हैं यह विकास नहीं बल्कि विस्थापन है।सितंबर में BTC चुनावों से पहले यह भूमि आवंटन और परियोजना को आगे बढ़ाने का प्रयास गहरे राजनीतिक और नैतिक सवाल खड़े कर रहा है। भूमि अधिग्रहण रद्द करने और आदिवासी अधिकारों की बहाली की मांग अब आंदोलन में तब्दील हो चुकी है।