केरल फिल्म नीति सम्मेलन के समापन पर विवाद, अडूर की टिप्पणी से गरमाया माहौल
x

केरल फिल्म नीति सम्मेलन के समापन पर विवाद, अडूर की टिप्पणी से गरमाया माहौल

केरल फिल्म नीति सम्मेलन अपने साथ कई सवाल छोड़ गया। क्या फिल्म नीति सच में सांस्कृतिक और सामाजिक समावेशिता लाएगी? क्या आरक्षण विरोधी मानसिकता को चुनौती दी जाएगी? क्या महिला और दलित फिल्मकारों को केवल “प्रशिक्षण” की जरूरत है या समान अवसरों की? इन सवालों के जवाब भविष्य की नीति तय करेंगे। सम्मेलन का समापन हुआ, लेकिन बहस अभी शुरू हुई है।


केरल फिल्म नीति सम्मेलन का समापन समारोह उस समय विवाद का केंद्र बन गया, जब वरिष्ठ फिल्मकार अडूर गोपालकृष्णन ने महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) फिल्मकारों को दी जाने वाली सरकारी वित्तीय सहायता पर सवाल उठाए। उन्होंने सरकार द्वारा प्रस्तावित ₹1.5 करोड़ की प्रत्यक्ष सहायता को घटाकर ₹50 लाख करने और इसकी बजाय अनुभवी पेशेवरों की देखरेख में संरचित प्रशिक्षण देने की सिफारिश की। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी रकम की सीधी फंडिंग से दुरुपयोग और भ्रष्टाचार की आशंका बढ़ सकती हैं।

प्रतिनिधित्व बनाम प्रशिक्षण

हालांकि अडूर ने सीधे तौर पर इस योजना का विरोध नहीं किया और इसके पीछे के उद्देश्य को स्वीकार किया, लेकिन उनका "प्रशिक्षण ज़रूरी है" वाला बयान कई प्रतिभागियों को असहज कर गया। खासकर जब उन्होंने बार-बार SC/ST और महिला फिल्मकारों को निशाना बनाया तो कई दर्शकों ने इसे पूर्वग्रह से प्रेरित माना। विवाद उस समय और बढ़ गया, जब केरल संगीत नाटक अकादमी की उपाध्यक्ष और प्रसिद्ध गायिका पुष्पावती पोयपदथ ने अडूर की टिप्पणियों का सार्वजनिक विरोध किया। जवाब में अडूर ने उन्हें तुच्छ बताते हुए उनकी बातों को खारिज कर दिया। बाद में एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने पुष्पावती को “अज्ञात व्यक्ति” कहकर फिर से अपमानित किया।

विवादित बयान और तीखी प्रतिक्रियाएं

अडूर के इस रवैये की कलाकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और फिल्म समीक्षकों ने कड़ी आलोचना की। उनके बयानों को सवर्ण वर्चस्ववाद का प्रतिबिंब और प्रणालीगत भेदभाव का उदाहरण बताया गया। दलित विचारक और प्रोफेसर मालविका बिन्नी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पूछा कि क्या अडूर को लगता है कि दलितों में कला की प्रतिभा नहीं है? ये पैसा उनकी जेब से नहीं, जनता के टैक्स से आता है। उन्हें यह समझना चाहिए कि हाशिये पर रहने वाले फिल्मकारों के लिए फिल्म बनाना कितना कठिन है।

अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फिल्मकार डॉ. बिजू ने अडूर के दोहरे मानदंडों पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब अन्य फिल्मकार बिना किसी प्रशिक्षण के फिल्म बना सकते हैं तो SC/ST और महिलाएं क्यों नहीं? उन्हें ही प्रशिक्षण की ज़रूरत क्यों?

नीति निर्माण की असली परीक्षा शुरू

सम्मेलन में उठे विवाद के बीच फिल्म नीति को लेकर गंभीर चर्चाएं हुईं। सम्मेलन का उद्देश्य था — केरल फिल्म उद्योग को एक समान, सुरक्षित और सशक्त क्षेत्र बनाना। मुख्यमंत्री द्वारा उद्घाटन सत्र में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की आलोचना से लेकर अडूर की टिप्पणी तक, सम्मेलन में जाति, लिंग और श्रम अधिकारों पर खुलकर चर्चा हुई।

नई फिल्म नीति 3 महीनों में तैयार होगी: मंत्री साजी चेरियन

संस्कृति मंत्री साजी चेरियन ने घोषणा की कि सम्मेलन में सामने आए सुझावों के आधार पर तीन महीनों के भीतर एक समग्र फिल्म नीति तैयार की जाएगी। इसमें 9 मुख्य विषयों और ओपन फोरम चर्चाओं से प्राप्त बिंदुओं को शामिल किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ सिनेमा की बात नहीं है, यह रोज़गार के अधिकार, सुरक्षा और रचनात्मक स्वतंत्रता की बात है।

तत्काल उपाय और घोषणाएं

* ई-टिकटिंग प्रणाली इस साल के अंत तक लागू होगी

* डिजिटल परिवर्तन के लिए ₹5 करोड़ स्वीकृत

* राज्य संचालित सिनेमाघरों में स्वतंत्र फिल्मों के लिए अनिवार्य स्क्रीनिंग

* 100 करोड़ रुपए के सिनेमा कॉम्प्लेक्स का वादा

* डबल टैक्सेशन को खत्म करने के लिए टैक्स छूट

* टीवी और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को भी नीति में शामिल किया जाएगा

सम्मेलन के समापन पर अडूर गोपालकृष्णन, सूर्य कृष्णमूर्ति और श्रीकुमारन थंपी को सम्मानित किया गया। हालांकि, अडूर को सम्मानित किया गया, लेकिन उनके बयानों की गूंज पूरे सम्मेलन पर छाई रही।

Read More
Next Story