क्या अब अजित पवार का बदल रहा है दिल, शरद पवार की तारीफ के मायने समझिए
x

क्या अब अजित पवार का बदल रहा है दिल, शरद पवार की तारीफ के मायने समझिए

शरद पवार- अजित पवार रिश्ते में चाचा और भतीजा है. लेकिन सियासी रास्ते पिछले साल अलग हो गए. ये बात अलग है कि मोदी कैबिनेट में विभाग बंटवारे के बाद भतीजे ने चाचा की तारीफ की है.


Ajit Pawar News: कहते हैं कि सियासी फायदे के लिए आप पाला तो बदल सकते हैं. लेकिन कम से कम हर पांच साल बाद जनका की अदालत में जाना होगा. जनता किसी को इनाम तो किसी को दुत्कारती भी है. भारत के राजनीतिक इतिहास में राजनेता अपनी सुविधा के मुताबिक जनता का हवाला देकर जनता को धोखा देते रहे हैं.मसलन किसी को विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला तो वो सरकार के साथ हो चला.बेहतर तर्क भी यह सब तो जनता के लिए ही किया है. यहां हम जिस शख्स की बात करेंगे उनका नाता महाराष्ट्र के ऐसे राजनीतिक परिवार से है जिसे अजातशत्रु भी कहा जाता है.

2023 में अजित पवार हुए थे अलग
बात शरद पवार और अजित पवार की करेंगे. रिश्ते में ये दोनों चाचा- भतीजा हैं.भतीजा 2023 में चाचा से अलग हो गया. हालांकि पहली बार सीधे तौर पर 2019 में नाकाम आंख दिखाई. हालांकि उसका नतीजा रहा कि महाराष्ट्र में विचारधारा बेमेल गठबंधन सत्ता के लिए बना जिसे महाविकास अघाड़ी कहते हैं. बता दें कि 2023 में चाचा शरद पवार से अलग होने के बाद अजित पवार ने पहली बार उनके नेतृत्व क्षमता को लेकर तारीफ की है. लेकिन यह तारीफ जिस समय आई है उस पर गौर करना जरूरी है.

चार जून को जब आम चुनाव 2024 के नतीजे सामने आए तो हर कोई हैरान था. हैरानी इस बात की सरकार एनडीए की तो बन रही थी.लेकिन बीजेपी जादुई आंकड़े से काफी नीचे आ चुकी थी. शुरुआती दौर में आंकड़ों को देखने के बाद यूपी और महाराष्ट्र को जिम्मेदार ठहराया गया तो उसके पीछे वजह थी. जिस एनडीए ने 2019 में यूपी में 64 सीटें जीती थीं. वो इस दफा आधे के आंकड़े को नहीं पार कर सकी. वहीं महाराष्ट्र में भी महायुति के खाते में महज 17 सीट आई. अब जब महायुति की तो बता दें कि अजित पवार उसी महायुति का हिस्सा हैं जिसकी सरकार इस समय चल रही है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि अगर आप महायुति के नतीजों को देखें तो अजित पवार कमजोर कड़ी निकले. अब उनकी उपयोगिता बीजेपी के लिए कितनी है उसका फैसला तो हाइकमान को करना है. इसी तरह महाविकास अघाड़ी में शरद पवार की अगुवाई वाली पार्टी विशेष प्रदर्शन नहीं कर सकी. लेकिन भतीजे अजित पवार की तुलना में तीन सीटों पर जीत दर्ज की.

अजित पवार ने क्यों की तारीफ
अब सवाल यह है कि अजित पवार द्वारा शरद पवार की तारीफ का क्या मतलब है. दरअसल आपने देखा होगा कि मंत्रिमंडल गठन की तस्वीर सामने आई तो अजित पवार के खेमे में दो लोगों ने नाराजगी जताई. पहले सुनील तटकरे ने कहा कि वो रायगढ़ से चुनाव जीत कर आए हैं लिहाजा मौका उन्हें मिलना चाहिए. हालांकि नाम प्रफुल्ल पटेल का जा चुका था. मंत्रिमंडल की लिस्ट आने पर पता चला कि मोदी सरकार ने राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार का पद ऑफर किया है और यह बात उन्हें नागवार लगी. बाकायदा पत्रकारों से कहा कि वो तो पहले ही कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. इन सबके बीच आप को यह भी याद होगा कि मतगणना के बाद अजित पवार ने बैठक बुलाई थी. लेकिन उसमें उनके गुट के कुछ विधायक नहीं पहुंचे थे. ऐसे में अजित पवार के सामने किस तरह की मुश्किल है उसे समझने की कोशिश करेंगे.

वजह यह तो नहीं
आम चुनाव 2024 में भले ही शरद पवार की पार्टी ने महाविकास अघाड़ी के नंबर में अधिक इजाफा करने में नाकाम रहे हों. लेकिन जिस तरह से बारामती में सुप्रिया सुले जीत हासिल करने में कामयाब रहीं उसके मायने बड़े हैं. अजित पवार को अब यह बात समझ में आ रही है कि सरकार बनाने के लिए या बने रहने के लिए विधायकों के साथ पाला बदल तो कर सकते हैं. लेकिन कभी ना कभी तो जनता की अदालत में जाना होगा और जनता का मिजाज शरद पवार के पक्ष में दिखाई दे रहा है. इसके अलावा मोदी मंत्रिमंडल में उनके गुट से कोई नहीं है इसका अर्थ यह है कि मोदी रिजीम में वो अपनी बात को दमदार ढंग से शायद नहीं उठा पाएंगे. लेकिन सवाल यह है कि किसी भी ऐसी सूरत में जब अजित पवार घर वापसी करें तो क्या वो कर पाएंगे.इस सवाल के जवाब में सियासी पंडित कहते हैं कि देखिए राजनीति का असली मकसद सत्ता की प्राप्ति ही तो है.अगर ऐसा ना होता तो शायद बेमेल गठबंधन नहीं होते.

Read More
Next Story