Ajmer Dargah : अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर एक बड़ा विवाद गहराता जा रहा है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि दरगाह परिसर की जमीन पर पहले संकट मोचन महादेव मंदिर था। अब इस याचिका पर अजमेर सिविल कोर्ट ने इसे सुनवाई योग्य मानते हुए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर दिया है।
क्या है मामला?
याचिका में दावा किया गया है कि दरगाह की जमीन पर पहले भगवान शिव का मंदिर था, जहां पूजा-अर्चना होती थी। याचिका के समर्थन में 1911 में हरविलास शारदा द्वारा लिखी गई पुस्तक का हवाला दिया गया है। इसमें दावा किया गया है कि दरगाह के 75 फीट ऊँचे बुलंद दरवाजे का निर्माण मंदिर के मलबे से हुआ है। साथ ही परिसर में एक गर्भगृह और शिवलिंग के अवशेष होने का दावा किया गया है।
कौन है वादी
वादी पक्ष की बात करें तो हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की तरफ से ये दावा किया गया है कि दरगाह परिसर की जमीन पर एक प्राचीन मंदिर था, जहां भगवान शिव का पूजन होता था। विष्णु गुप्ता ने 25 सितम्बर को ये याचिका दायर की थी। शुरुआत में अदालत ने अलग अलग तारीख पर इस याचिका में कुछ कमियां पायीं थी, जिसकी वजह से इस मामले में याचिका में सुधर किये गए, उसका अनुवाद किया गया। आज यानी 27 नवम्बर दिन बुधवार को अदालत ने इस याचिका को सुनवाई के लिए अनुकूल मानते हुए मामले से सम्बंधित पार्टियों को नोटिस जारी किये हैं।
अदालत की प्रक्रिया
वादी पक्ष ने कोर्ट में पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की मांग की है। सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने दरगाह कमेटी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय सहित संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने मामले में आगे की सुनवाई के लिए तारीख तय कर दी है।
वादी का तर्क
वादी पक्ष का कहना है कि 1991 पूजा स्थल अधिनियम यहां लागू नहीं होता क्योंकि दरगाह के अंदर पूजा-अर्चना की अनुमति कभी नहीं दी गई। वादी के अनुसार, यह मामला ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण से अलग है और इसे ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर निपटाया जाना चाहिए।
संवेदनशीलता और संभावित प्रभाव
यह मामला धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील है। यदि अदालत पुरातात्विक जांच का आदेश देती है, तो इससे विवाद को नया मोड़ मिल सकता है। यह मामला देश में धार्मिक स्थलों से जुड़े अन्य विवादों को भी प्रभावित कर सकता है।
आगे की प्रक्रिया
अब अदालत में प्रतिवादी पक्ष की दलीलें सुनी जाएंगी। इसके बाद अदालत यह तय करेगी कि पुरातत्व सर्वेक्षण किया जाएगा या नहीं। यह विवाद सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकता है और आने वाले समय में देशव्यापी बहस का विषय बन सकता है।