आंध्र वक्फ बोर्ड अतिक्रमण से जूझ रहा है, क्या नया कानून राहत लाएगा?
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आंध्र वक्फ बोर्ड अतिक्रमण से जूझ रहा है, क्या नया कानून राहत लाएगा?

अतिक्रमण की सीमा पर कोई स्पष्ट डेटा नहीं. जबकि वक्फ बोर्ड का कहना है कि 31,594 एकड़ पर अतिक्रमण है, राज्य सरकार का कहना है कि यह आंकड़ा 14,000 एकड़ है.


Andhra Pradesh's Waqf Board's Encroachment Problem: केंद्र सरकार का दावा – वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 से वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन होगा आसान, लेकिन आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में वक्फ बोर्ड वर्षों से अवैध अतिक्रमण से जूझ रहे हैं। विधेयक कानून बनने के कगार पर है, लेकिन यह अब भी स्पष्ट नहीं है कि क्या यह वाकई अतिक्रमण की समस्या को सुलझा पाएगा।

आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष एस.के. अजीज ने द फेडरल को बताया कि राज्य में लगभग 50 प्रतिशत वक्फ संपत्ति अवैध अतिक्रमण की चपेट में है।

उन्होंने कहा, “बोर्ड 3,502 वक्फ संस्थानों की निगरानी करता है, जो कुल 65,783.88 एकड़ भूमि का प्रबंधन कर रहे हैं। इसमें से 31,594.20 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है। हमने इसे वापस लेने की कार्रवाई शुरू कर दी है।”


स्पष्ट डेटा का अभाव

उनके अनुसार, लगभग 15,000 धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाएं, जिनमें मस्जिदें और दरगाहें शामिल हैं, वक्फ की भूमि पर स्थित हैं। वक्फ बोर्ड ने अतिक्रमण की पहचान के लिए सर्वेक्षण किए हैं, लेकिन अभी तक सारी संपत्ति को पुनः प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाया है।

कुछ मामलों में कानूनी केस दायर किए गए हैं, परंतु विवाद जारी हैं। कानूनी जटिलताओं और राजनीतिक दबाव के कारण अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई सीमित रही है।

अतिक्रमण की कुल सीमा को लेकर भी स्पष्ट डेटा की कमी है। हाल ही में राज्य के अल्पसंख्यक मंत्री एनएमडी फारूख ने बताया कि 14,000 एकड़ वक्फ भूमि पर अवैध कब्जा है और सरकार ने उसे वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की है। वहीं, अजीज ने उपरोक्त आंकड़े से कहीं अधिक भूमि पर अतिक्रमण बताया और कहा कि बोर्ड लगभग 30,000 एकड़ भूमि को नीलामी के ज़रिए लीज़ पर देने की योजना बना रहा है।


नायडू को सौंपेंगे एक लाख मुस्लिमों की याचिका

जहाँ केंद्र सरकार दावा कर रही है कि वक्फ विधेयक वक्फ बोर्डों के प्रशासन को बेहतर बनाएगा, संपत्तियों का प्रबंधन सुधारेगा, पारदर्शिता बढ़ाएगा और अतिक्रमण रोकेगा — वहीं राज्य व देश भर के मुसलमान इसको लेकर आशावान नहीं हैं।

आंध्र प्रदेश के अल्पसंख्यक अधिकार कार्यकर्ता और वकील बशीर अहमद ने इस विधेयक की आलोचना करते हुए इसे असंवैधानिक बताया। उन्होंने कहा कि यह धार्मिक समुदाय के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है और केंद्र सरकार से इसे वापस लेने की मांग की।

4 अप्रैल (शुक्रवार) को गुंटूर में बोलते हुए उन्होंने बताया कि विभिन्न मुस्लिम संगठनों और धार्मिक नेताओं के प्रतिनिधियों ने इस विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। बैठक में निर्णय लिया गया कि जल्द ही एक लाख मुस्लिम मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से मिलकर विधेयक के खिलाफ याचिका सौंपेंगे।

बशीर अहमद ने कहा, “चंद्रबाबू नायडू के पास इस विधेयक को कानून बनने से रोकने की शक्ति है। यदि वे चाहें, तो इसे रोका जा सकता है। इसी कारण एक लाख मुस्लिम प्रतिनिधि उनसे मिलने जा रहे हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि बैठक की तिथि जल्द घोषित की जाएगी।


आंध्र की पार्टियों में मतभेद

यह विधेयक आंध्र प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के बीच मतभेद का कारण बना हुआ है।

जहां वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) ने इस विधेयक का खुलकर विरोध किया है, वहीं चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और उसकी एनडीए व राज्य सरकार की सहयोगी जनसेना पार्टी (जेएसपी) ने इसका समर्थन किया है — हालांकि टीडीपी ने इसके कुछ प्रावधानों पर आपत्ति भी जताई थी।

पूर्व उप मुख्यमंत्री अनम अमजद बाशा ने टीडीपी द्वारा इस विवादास्पद विधेयक का समर्थन करने पर तीखा हमला किया।

वाईएसआर कडप्पा जिला कैंप कार्यालय में उन्होंने टीडीपी पर “चुनावी लाभ के लिए मुसलमानों का इस्तेमाल कर अब उन्हें धोखा देने” का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा कि लोकसभा में विधेयक का समर्थन कर टीडीपी और जेएसपी ने मुस्लिम समुदाय के साथ अक्षम्य विश्वासघात किया है।

“2014 में टीडीपी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया, जो मुस्लिम विरोधी पार्टी मानी जाती है, सिर्फ सत्ता के लिए। उन्होंने एक भी मुस्लिम मंत्री नियुक्त नहीं किया। अब 2024 में फिर भाजपा से हाथ मिला लिया और वक्फ विधेयक का समर्थन कर दिया,” उन्होंने कहा।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि नायडू ने मुस्लिम नेताओं को साथ देने का आश्वासन दिया था, पर बाद में भरोसा तोड़ दिया।


टीडीपी का पक्ष

हालांकि, टीडीपी के गुंटूर ईस्ट के विधायक नसीर अहमद का कहना है कि नायडू का वक्फ विधेयक पर रुख स्पष्ट है और वे “राज्य में मुसलमानों की सुरक्षा व कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

गुरुवार को टीडीपी केंद्रीय कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, “टीडीपी एनडीए की इकलौती पार्टी है जिसने वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सामने औपचारिक आपत्तियां दर्ज कराईं।”

उन्होंने वाईएसआरसीपी पर इस मुद्दे पर चुप्पी साधने का आरोप लगाया। “एक भी वाईएसआरसीपी सांसद ने वक्फ विधेयक पर कुछ नहीं कहा। अगर जगन मोहन रेड्डी मुसलमानों की परवाह करते, तो उनके सांसद चुप क्यों रहे?” उन्होंने कहा।

टीडीपी ने जो प्रमुख संशोधन प्रस्तावित किए, उनमें वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति न करने, वक्फ विवादों को कलेक्टर स्तर से ऊपर के अधिकारियों को सौंपने, और वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए कड़े प्रावधान शामिल हैं।


वक्फ (संशोधन) विधेयक का इतिहास

वक्फ विधेयक पहली बार 2024 में पेश किया गया था, लेकिन विभिन्न दलों के विरोध के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया।

जेपीसी की सिफारिशों — जिनमें अधिकांश विपक्ष की थीं — को अस्वीकार करते हुए, विधेयक 2 अप्रैल को लोकसभा और दो दिन बाद राज्यसभा में पारित कर दिया गया।


नए कानून के प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं:

केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों, महिलाओं, और शिया, सुन्नी, बोहरा व पिछड़े मुस्लिम समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करना

वक्फ संपत्तियों का ज़िला कलेक्टरों के पास अनिवार्य पंजीकरण

सरकारी ऑडिटरों द्वारा संपत्तियों की ऑडिटिंग

वक्फ बोर्डों की एकतरफा तौर पर किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने की शक्ति को समाप्त करना

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस कानून को असंवैधानिक बताया है और इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण बताया है।

वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति को धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप माना जा रहा है।


विपक्ष की कड़ी आलोचना

कांग्रेस, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और एआईएमआईएम जैसी विपक्षी पार्टियों ने इस विधेयक का विरोध किया है।

उनका कहना है कि यह विधेयक अल्पसंख्यक विरोधी है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है — हालांकि केंद्र ने इन आरोपों से इनकार किया है।



(यह लेख पहली बार द फेडरल आंध्र प्रदेश में प्रकाशित हुआ था)

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