एंजेल चकमा के आखिरी शब्द: ‘इंडियन हूं’, राहुल बोले— नफरत ने ली जान
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एंजेल चकमा के आखिरी शब्द: ‘इंडियन हूं’, राहुल बोले— नफरत ने ली जान

देहरादून में एंजेल चकमा की मौत को राहुल गांधी ने नफरत की राजनीति का नतीजा बताया। आख़िरी शब्द मैं इंडियन हूं समाज को झकझोरते हैं।


Anjel Chakma News: देहरादून में एंजेल चकमा और उनके भाई माइकल चकमा के साथ जो घटना घटी घृणा में होने वाले अपराध का सबसे भयावह रूप है। लेकिन यह घृणा एकाएक नहीं पनपी, वर्षों से हमारे युवाओं के दिल और दिमाग में जहर घोला जा रहा है। इस तरह से नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने बीजेपी (BJP) पर निशाना साधा। यहां बता दें कि देहरादून की पुलिस इस पूरे मामले को नस्लीय हमला मानने से इनकार कर रही है।

देहरादून पुलिस (Dehradun Police) का कहना है आरोपियों में से एक का नाता पूर्वोत्तर राज्य और मुख्य आरोपी का रिश्ता नेपाल से है। पांच की गिरफ्तारी के साथ मुख्य आरोपी को पकड़ने की दबिश दी जा रही है। इन सबके बीच एक ऐसी जानकारी सामने आई है जो आपके दिल और दिमाग दोनों को झकझोर कर रख दे। मौत से ठीक पहले एंजेल ने कहा कि वो चीनी नहीं इंडियन है।

9 दिसंबर की काली तारीख

24 साल का एंजेल चकमा एमबीए का छात्र था। देहरादून में अपने भाई माइकल चकमा के साथ रह रहा था। प्रेम नगर में वो एक दुकान पर जाता नॉनवेज की खरीद के लिए। वहां पर कुछ पहले से मौजूद युवा कहते हैं कि ओय चाइनीज पोर्क लेने आ गया। इस कमेंट पर वादविवाद इस कदर बढ़ा कि आरोपियों में से एक ने पहले ब्रैसलेट से हमला किया और बाद में एंजेल को चाकू मार दी। एंजेल को अस्पताल में भर्ती कराया गया। 14 दिन तक जिंदगी और मौत की जंग में उसकी सांसें उखड़ गईं। उस घटना में एंजेल का भाई माइकल भी घायल है और अभी भी उसकी हालत गंभीर है।

छात्र संगठन टिपरा (TIPRA) का कहना है कि जो लोग नस्लभेदी बातें करते हैं, वे भूल जाते हैं कि यह नॉर्थ-ईस्ट के बहादुर लोगों की वजह से ही है कि चीन देश में घुस नहीं पाता। ये घटनाएं सिर्फ परिवारों को ही दुख नहीं पहुँचातीं। ये हमारे लोगों को बांटती हैं। और जब हम बंट जाते हैं, तो हम कमज़ोर हो जाते हैं। हम ऐसा नहीं चाहते। हम न्याय चाहते हैं।

टिपरा मोथा की युवा शाखा, यूथ टिपरा फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष सूरज देबबर्मा, जिन्होंने एंजेल के अंतिम संस्कार में मदद की, ने कहा कि नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को उत्तर में नियमित रूप से नस्लीय गालियों और जेनोफोबिक हमलों का सामना करना पड़ता है। लेकिन जब उत्तर भारतीय राज्यों के छात्र नॉर्थ-ईस्ट के केंद्रीय संस्थानों में आते हैं तो उनका स्वागत देशवासियों की तरह किया जाता है। हमने नफरत भरे अपराध में एक मासूम जान खो दी।

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