आतिशी को जब थमा दी कमान, क्या केजरीवाल को भी एंटी इंकंबेंसी का डर?
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आतिशी को जब थमा दी कमान, क्या केजरीवाल को भी एंटी इंकंबेंसी का डर?

जेल में रहते हुए सरकार चलाने वाले अरविंद केजरीवाल ने जमानत मिलने के बाद सीएम पद से इस्तीफा क्यों दे दिया। क्या उन्हें एंटी इंकंबेसी का डर सता रहा था।


Arvind Kejriwal News: सत्ता में कोई भी राजनीतिक दल अनंतकाल तक नहीं रह सकता। उसके कुछ उदाहरण हम सबके सामने है। आजादी मिलने से लेकर करीब 29 साल तक केंद्र की गद्दी पर कांग्रेस काबिज रही। लेकिन जनता ने तख्त से कांग्रेस को उतार दिया था और मौका जनता पार्टी को दिया। पसंद नहीं आने पर उन्हें भी बदल दिया। यानी कि तख्त पर चेहरे बदलते रहे। इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं लेकिन सामान्य वजह हम जनता की नाराजगी को मान सकते हैं। यहां हम बात दिल्ली की करेंगे। साल 2014 में आम आदमी पार्टी नाम की एक सरकार दिल्ली की गद्दी पर काबिज होती है और पिछले 10 सालों से प्रचंड बहुमत बना हुआ है। सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल हुआ करते थे। लेकिन अब उनकी जगह चार महीने के लिए आतिशी सीएम बनी हैं। बता दें कि आतिशी ने खुद सोमवार को पदभार संभालने के बाद यह बात कही थी। अब सवाल यह है कि केजरीवाल जो जेल में रहते हुए सरकार चला रहे थे उन्होंने जमानत मिलने के बाद गद्दी क्यों छोड़ दी।

फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री हेल्थ तब डर कैसा
दिल्ली की जनता को आम आदमी पार्टी की सरकार फ्री में बिजली, फ्री पानी , महिलाओं के लिए फ्री यात्रा, मोहल्ला क्लिनिक की सौगात और बेहतर एजुकेशन की सुविधा दी है। यही तो जनता की जरूरत होती है। अब ऐसे में केजरीवाल के पीछे की वजह क्या हो सकती है। एंटी इंकंबेंसी के लिए तो यही चीजें जिम्मेदार मानी जाती है। इस विषय पर जानकार कहते हैं कि यह बात सच है कि सुविधा मिली है। लेकिन दिल्ली एक्साइज स्कैम में जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया उससे केजरीवाल के ऊपर नैतिक दवाब अधिक था। यह सवाल तो उठता है कि जो सीएम अपने दफ्तर नहीं जा सकता, फाइल पर दस्तखत नहीं कर सकता आखिर वो क्या कर रहा है। टैक्स पेयर की रकम पर मौज कर रहा है। अब निश्चित तौर पर जब इस तरह की बात बार बार कही जाती है तो जनता का मिजाज भी बदलने लगता है।

2020 में किए गए वो वादे

इसके साथ ही आप 2020 के कुछ वादों को याद करिए। गाजीपुर के लैंडफिल साइट का मामला सुलझा लेंगे। डीटीसी की बसों में बढ़ोतरी करेंगे। यमुना के पानी को आचमन के लायक बना देंगे। आखिर ये सब वादे आम की तरफ से किए गए थे। लेकिन आप का संयोजक और सरकार का मुखिया पिछले चार साल से कौन था। यह विषय तो उठेगा कि हर साल आप दिवाली के मौके पर दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने का दावा करते हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है। दिल्ली की सरकार पड़ोसी राज्यों को कोस कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती। यही नहीं यह बात सच है कि एमसीडी में आप का राज है। लेकिन 20 साल के शासन के बाद भी बीजेपी की उतनी बड़ी पराजय नहीं हुई। स्टैंडिंग कमेटी से लेकर कई वार्ड जोन में बीजेपी का दबदबा है। पहले तो आप एमसीडी को लेकर बीजेपी पर दोषारोपण करते थे। लेकिन अब किसे जिम्मेदार ठहराएंगे।

केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व

केजरीवाल जिस तरह से हनुमान मंदिर जाते हैं उसे सॉप्ट हिंदुत्व की तरह देखा जाता है। इसे भी लेकर वो निशाने पर रहे हैं। दिल्ली की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि इससे समाज एक वर्ग में संदेह की स्थिति उत्पन्न हो रही है कि आखिर वो क्या चाहते हैं। ऐसे में अगर उनके विरोधी दल इसे तूल देना शुरू करें तो बात खराब हो। यही नहीं हाल ही में हरियाणा में जब सीट समझौते को लेकर बात नहीं बनी तो आम आदमी पार्टी ने सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए। जानकार कहते हैं कि अगर हरियाणा में कांग्रेस ने खुद को ताकतवर मानते हुए इस तरह का फैसला किया तो इस बात से कैसे इनकार किया जा सकता है कि आप का अड़ियल रुख यहां ना दिखाई। ऐसे में कांग्रेस के निशाने पर सबसे अधिक अरविंद केजरीवाल रहेंगे। कांग्रेस की यह कोशिश है कि जिस वोट बैंक के सहारे दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुए उसे किसी तरह अपने पाले में किया जाए। ऐसे में केजरीवाल की यह कोशिश होगी कि जमीन पर उतर कर उन वर्गों से सीधा संबंध स्थापित कर उन्हें इधर उधर होने से रोका जाए।

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