आतिशी बतौर मुख्यमंत्री; कार्यकाल छोटा लेकिन चुनौती बड़ी, कैसे पूरा होगा काम
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आतिशी बतौर मुख्यमंत्री; कार्यकाल छोटा लेकिन चुनौती बड़ी, कैसे पूरा होगा काम

आतिशी के दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके सामने चुनौती इस बात की है कि वो पार्टी के चुनावी अजेंडे को ध्यान में रखते हुए उन निर्णयों को पूरा करें, जिससे जनता का मत उन्हें मिल पाए. लेकिन ऐसे में एलजी और सरकारी कर्मचारियों से टकराव व विपक्ष के सवाल जवाब बड़ी चुनौती होगी.


Delhi Politics: आतिशी ने दिल्ली के नए मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार ग्रहण कर लिया है. आतिशी का कार्यकाल बेशक छोटा रहे लेकिन उनके सामने चुनौती बड़ी रहेंगी. सबसे बड़ी चुनौती रहेगी ऐसे कामों को पूरा करना जो चुनाव के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण होंगे. दूसरी चुनौती रहेगी विपक्ष के हमलों का सामना करना, जिन्होंने आतिशी की ताजपोशी होने के साथ ही उन पर निशाना साधना शुरू कर दिया है.

आतिशी ने शनिवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री की शपथ ले ली है. अब उन्हें काम शुरू करना है. यूँ तो आतिशी दिल्ली सरकार में रह कर काम करना है और कैसे करवाना है, इन सब से ही भलीभांति परिचित हैं क्यूंकि वो दिल्ली सरकार में मंत्री रह चुकी हैं.

केजरीवाल के जाने के बाद अपने ही विधयाकों को संभालना
बेशक ये जताया और बताया गया है कि आतिशी को विधायक दल का नेता सर्वसम्मति से चुना गया है लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि सभी विधायक आतिशी के मुख्यमंत्री बनाये जाने के मत में नहीं थे. लेकिन जब केजरीवाल ने बैठक में खुद इस बात पर जोर दिया तो सबको इस नाम पर हाँ करना ही पड़ा. तो सवाल ये भी उठता है कि आखिर सभी विधायकों ख़ास तौर से उनसे ( जो आतिशी के नाम पर हाँ नहीं करना चाहते थे) के साथ किस तरह से तालमेल बैठाया जाए. हालाँकि जानकारों का ये कहना है कि ये कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं है, पार्टी के आलानेताओं के सामने ऐसे विधायकों को चुप होना ही पड़ेगा.

दूसरी बड़ी चुनौती है सरकारी अधिकारीयों और एलजी के साथ तालमेल कैसे बनाया जाए और काम कैसे किया जाए
ये बात दीगर है कि दिल्ली की आप सरकार और एलजी के बीच आपसी सहमति नहीं रही है, बल्कि उनके बीच गतिरोध हमेशा रहा है. यहाँ तक की बात अदालत तक भी पहुंची है. अब भी आप सरकार के मंत्री अक्सर यही कहते मिलते हैं कि एलजी ने फाइल पर साइन नहीं किये या फाइल अटका दी है. वहीँ आप के मंत्री लगातार ये भी आरोप लगाते रहे हैं कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं हैं.
ये गतिरोध आतिशी के लिए भी चुनौती रहेगा, वो भी तब जब उन्हें चुनाव को देखते हुए काम पूरे करने हैं.
हालांकि आम आदमी की राजनीती से भलीभांति परिचित लोगों का कहना है कि इस गतिरोध से आप फायदा ही उठाना चाहेगी. असल में आप जनता को रिझाने के लिए ऐसे ऐसे निर्णय ले सकती है, जो वास्तविकता से परे हों और एलजी या सरकारी अधिकारी उस पर रूकावट लगाएं. ऐसा होने पर आप सारा दोष एलजी और सरकारी अधिकारियों पर डालते हुए बीजेपी पर निशाना साधने का काम करेगी.

विपक्ष के आरोपों का सामना करना - आतिशी के सामने तीसरी बड़ी चुनौती है, विपक्ष. विपक्ष ने अरविन्द केजरीवाल के इस्तीफा देने और आतिशी के मुख्यमंत्री बनने के मुद्दे को ही सीधे सीधे कटपुतली मुख्यमंत्री से जोड़ दिया. साथ ही ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अरविन्द केजरीवाल को जमानत देते हुए कई शर्ते लगायीं, जिनमें ये भी था कि वो मुख्यमंत्री के तौर पर कोई फाइल साइन नहीं कर सकते न ही कोई निर्णय ले सकते हैं. इसके अलावा आतिशी पर लेफ्ट माइंडसेट का होने का मुद्दा भी लगातार बीजेपी उठा रही है.


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