मायावती की रैली से ठीक एक दिन पहले, क्यों खास है आजम-अखिलेश की रामपुर बैठक?
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मायावती की रैली से ठीक एक दिन पहले, क्यों खास है आजम-अखिलेश की रामपुर बैठक?

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान से राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव मुलाकात करने वाले हैं। इस मुलाकात के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।


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Akhilesh Yadav- Azam Khan Meeting: समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव और वरिष्ठ मुस्लिम नेता आज़म खान अब 23 महीने की जेल की सजा के बाद रिहा हो चुके हैं। सीतापुर जेल से बाहर आने पर उनका स्वागत करने के लिए सपा का कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं था, जिसका मलाल आज़म खान ने मीडिया के सामने जाहिर किया।

इस नाराज़गी को देखते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 8 अक्टूबर को रामपुर जाकर आज़म खान से मिलने का फैसला किया है। यह मुलाकात मायावती की 9 अक्टूबर को लखनऊ में होने वाली रैली से ठीक एक दिन पहले तय की गई है। मुलाकात का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत रिश्तों को मजबूत करना है, बल्कि सियासी संदेश देना भी है कि सपा आज़म खान और उनके समर्थकों के साथ मजबूती से खड़ी है।

आज़म खान के साथ लगभग एक घंटे तक बातचीत के बाद अखिलेश वापस लखनऊ लौटेंगे। यह एक घंटे की मुलाकात उत्तर प्रदेश में सपा की मुस्लिम सियासत के लिए बेहद अहम मानी जा रही है।

आज़म-अखिलेश मुलाकात की पृष्ठभूमि

अखिलेश यादव मुलाकात से पहले आज़म खान के मूड का अनुमान लगाना चाहते थे, क्योंकि जेल में आज़म खान ने कई नेताओं से मिलने से मना कर दिया था। जेल से रिहाई के बाद मंगलवार को आज़म खान ने अखिलेश यादव के नाम पर चुप्पी साध रखी थी, लेकिन अगले दिन उनका तेवर नरम नजर आया।

आज़म खान ने कहा कि अगर वह बड़े नेता होते तो उनका स्वागत करने कोई बड़ा नेता जरूर आता। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे किसी भी सूरत में सपा नहीं छोड़ेंगे। इसके बाद सपा के एक पूर्व विधायक मदद से दोनों नेताओं के बीच लगभग 40 मिनट की लंबी फोन बातचीत हुई। इसी बातचीत के बाद रामपुर में मुलाकात तय हुई।

सियासी मायने

अखिलेश यादव की यह मुलाकात सियासी तौर पर बेहद अहम मानी जा रही है। आज़म खान और उनका परिवार सपा से इसलिए नाराज थे क्योंकि उनके संघर्ष के समय उन्हें अकेला छोड़ दिया गया था। 23 महीने जेल में रहने और लगभग 104 मुकदमे दर्ज होने के बावजूद सपा ने उनकी रिहाई के लिए कोई आंदोलन नहीं किया।

2024 के लोकसभा चुनाव में आज़म खान को कोई अहमियत नहीं दी गई और उनके समर्थकों में से कई को टिकट नहीं मिला। रामपुर सीट पर आज़म की इच्छा के खिलाफ प्रत्याशी उतारा गया, जिसका दर्द उन्होंने जेल से बाहर आने के बाद बयाँ किया। यह मुलाकात मुस्लिम वोट बैंक को साधे रखने और आज़म खान के प्रभाव को बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है।

मायावती रैली से पहले रणनीति

अखिलेश यादव ने यह मुलाकात बसपा की लखनऊ रैली से ठीक एक दिन पहले तय की। इससे आज़म खान के बसपा में शामिल होने की अटकलों पर विराम लगेगा और सपा उनके सियासी प्रभाव क्षेत्र में सेंध नहीं लगने देगी।इस तरह 8 अक्टूबर को होने वाली मुलाकात केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि सियासी रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह कदम सपा के लिए मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने और आज़म खान और उनके समर्थकों को पार्टी से जोड़कर रखने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

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