जेल से बाहर आने के बाद खुलकर बोले आजम खान, संघर्ष जारी, जज्बा नहीं हुआ है कम
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जेल से बाहर आने के बाद खुलकर बोले आजम खान, संघर्ष जारी, जज्बा नहीं हुआ है कम

आज़म खान 23 माह जेल के बाद बाहर आए। उन्होंने अपने समय की नाउम्मीदी, बदलाव और अल्लाह के भरोसे की बात की।


Azam Khan News: बात बहुत पुरानी नहीं है जब यूपी की सियासत में समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान की तूती बोलती थी। सरकार में थे तब चर्चा और जब सरकार के हिस्सा नहीं रहे तो भी चर्चा। यह बात अलग थी सरकार में रहने उनके हनक और सनक की खबरें बनती थी। लेकिन सरकार से बाहर होते ही सिर पर एक एक कर मुकदमे लदते गए और 23 से ज्यादा महीनों तक जेल की चारदीवारी में कैद होना पड़ा। फिलहाल वो जेल से बाहर हैं और अपनी बात रख रहे हैं।

एक साक्षात्कार में उन्होंने अपनी पुरानी यादों, सियासी रिश्ते, सियासी रंजिश, राजनीतिक उतार-चढ़ाव, पीड़ा को बेबाक तरीके से अपने अंदाज में पेश किया। अपनी भावना को उद्गार कुछ ऐसा किया। 'इतने बरसों में मैं आउट ऑफ सीन रहा हूं। यह वाक्य नहीं है। मैं चर्चा में नहीं रहा। चर्चा का अंदाज बदल गया। पहले बाहर रहने की जिंदगी चर्चा में रहती थी। अब कैद में रहने की जिंदगी चर्चा में थी। जिस दिन हम लोग चर्चा, पर्चा, खर्चा इन तीन चीजों से महरूम हो जाएंगे, हम कब्र में होंगे, बाहर नहीं होंगे। अब वो जमाने तो रहे नहीं। जब गुलाम हिंदुस्तान में अंग्रेज बाइज्जत लोगों को बाइज्जक तरीके से जेलों में रखते थे। अब तो दौर वह है कि बाइज्जत को जितना बेइज्जत किया जा सकता हो उतना बेइज्जत किया जाए। तो शिकवा किसी से है ही नहीं। शिकवा तो बदलते हुए जमाने से हो सकता है, तो है बाकी किसी से नहीं। तो एक गिरावट आई है। डिटोरिएशन है। तो उस गिरावट में हम सब गिर गए हैं।

मेरा अल्लाह हमसे...

आजम खान कहते हैं कि दरअसल मेरा अल्लाह हमसे ये कहता है कि तुम्हें हक है इस बात का कि जिसने तुम्हारे साथ ज्यादती की है, तुम अपने साथ होने वाली ज्यादती का बदला लो। ये इजाजत है तुम्हें? लेकिन सबसे बेहतर बात यह है कि वह बदला तुम ना लो। मुझ पर छोड़ दो और यह तुम जानते हो कि मुझसे बेहतर बदला तुम नहीं ले सकते। मैंने अपने अल्लाह पर छोड़ दिया है। वो दिन भी उसी की वजह से देखे। उसका हुकुम था यह दिन भी उसी की वजह से देख रहा हूं। और लोग भी जो कुछ देखेंगे उसमें मालिक का दखल होगा और मालिक एक है।

'हिसाब तो सबका होगा'

आजम खान कहते हैं कि अगर आसमान पर मालिक दो होते तो न जाने कितनी बार आसमान से खून बरसा होता। मालिक एक है। हिसाब तो सबका होगा। जिन्होंने अच्छा किया है उनका अच्छा हिसाब होगा। जिन्होंने बुरा किया है उनका बुरा हिसाब होगा और सिर्फ यही थोड़ा ही होगा। पूरे आलम में होगा। जब से दुनिया बनी है उस दिन से लेकर जब आखिरी दिन होगा उस दिन तक होगा। हिसाब से तो बच ही नहीं सकता। क्योंकि अगर हिसाब ना हो तो कोई भलाई करेगा ही नहीं। हिसाब का डर ही तो है जो इंसान को बुराई से रोकता है कि मुझे कहीं जवाब देना है। अपनी बुराइयों के लिए सजा पानी है। और अच्छाई इसलिए करता है कि सच्चाई के अवज़ मुझे इसका रिवार्ड मिलता है। बदला मिलता है।

मैं बहुत छोटा आदमी

सवाल और जवाब के क्रम में आजम खान कहते हैं कि वो तो बहुत छोटा आदमी हैं। इस छोटे से शहर में एक मामूली सा गली में रहने वाला जिसके घर में दो महीने तक ढाई ढाई फीट पानी खड़ा रहता है। जिसके पास जनरेटर नहीं है। रहा ही नहीं कभी। तेल के पैसे ही नहीं हुए। तो हवा का गुजर भी नहीं है। इतनी लंबी सियासत में एक आरामदेह घर जो शख्स नहीं बना सका उसे कहां इतने बड़े नामों से जोड़ रहे हैं आप। मैं तो मुर्गी चोर हूं बकरी चोर हूं भैंस चोर हूं फर्नीचर चोर हूं किताब चोर हूं।

चोर से कहां आप इतने बड़े लोगों को हां ये बात अलग है कि मैं चोर इस तरह का हूं कि मैंने कहा कि जाओ ये चोरी कर लाओ 120 बी का मुलजिम धारा डकैती की लगी लगी है। धारा, चोरी की नहीं है। क्योंकि चोरी की धाराएं होती तो तीन साल में मैं सारे मुकदमों से बरी हो गया होता। काट लेता सजा काट ही ली पांच साल। लेकिन एक मुकदमे में 19 साल की सजा है। एक में सिर्फ और 114 में फैसला होना बाकी है। और पूरे घर पर लगभग 350 मुकदमे हैं। मरी हुई मां पर है। परेशान हूं कि कब्र से कैसे निकाल कर लाऊं। उनकी गवाही कैसे होगी? तो इतना आजाद हिंदुस्तान में इतनी मोहब्बत किसी परिवार किसी शहर मेरे साथ और मेरों के साथ इतनी मोहब्बत किसी ने नहीं की होगी शायद नाजियों ने भी नहीं की होगी।

125 करोड़ के हिंदुस्तान में...

मैं 125 करोड़ के हिंदुस्तान में इतना टारगेटेड हूं। यही मेरा मेडल है। और यही सदियों मुझे याद रखाएगा। बहुत सुकून रहते थे। पुरसुकून कुछ ये कि मालूम ही नहीं था कभी निकलेंगे जब यह एहसास हो गया कि शायद निकलेंगे ही नहीं तो फिर पुर सुकून हो गए। देखिए जीने की ख्वाहिश किसकी होती है? जिसके पास जिंदगी होती है और जब जिंदगी ही नहीं हुई तो जीने की ख्वाहिश क्या होगी तो वहां जिंदगी कहां थी तो एहसास भी नहीं था. क्या मालूम कब तक बाहर पौने साल तीन साल रहने के बाद भी तो बाहर दो तीन महीने रहे थे फिर चले गए थे अंदर. देखिए जिंदा रहेंगे तो गाजी कहलाएंगे। मर जाएंगे तो शहीद कहलाएंगे।

जनता की अदालत से तो इन चीजों का कोई मतलब है ही नहीं। जनता की अदालत में तो मैं हमेशा कामयाब रहा। अब बाकी अदालतों के लिए कोशिश कर रहा हूं। तो कोई उसे किसी से अफसोस यह है कि इल्जाम लगाने वाले ने जिस तरह के घटिया इल्जाम लगाए। उसने पता नहीं अपने स्तर को कहां रखा था। वो कहां खड़ा था। इल्जाम का भी एक मयार होना चाहिए था। एक स्टैंडर्ड होना चाहिए था। मगर उसने तो इल्जाम भी अपने स्टैंडर्ड के लगाए। ये थोड़ी सी शिकायत है। और जहां तक पैन कार्ड और डेट ऑफ बर्थ का सवाल है।


आप किस चीज को मानेंगे? क्वींस मैरी हॉस्पिटल का सर्टिफिकेट नहीं माना। नगर निगम का बर्थ सर्टिफिकेट नहीं माना और जो सबसे बड़ा सबूत होता है क्योंकि गवर्नमेंट सर्विस में थी मेरी बीवी एसोसिएट प्रोफेसर थी उस वक्त तो कौन सी लीव होती है जब बच्चा होने वाला होता है मैटरनिटी लीव। लीव वो नहीं माना और इन सबको जाने दीजिए मेरे पास से एक वीडियो निकल आया। मेरे साले की शादी का मंत्री था। मैं पहली बार हुआ था। लखनऊ में था। मेरी कोठी पर पूरा खानदान मौजूद है। बीवी की गोद में अब्दुल्ला है। बराबर अदीब खड़ा है। मेरी बहनें, मेरी सास, मेरी साली सब
एक ग्रुप फोटोग्राफ है। और अब्दुल्ला जब कुछ बोलता है तो मां कहती है देखो अब्दुल्ला बोला।

अब्दुल्ला नाम क्यों था उसका?

जब मेरी बीवी प्रेग्नेंट थी, हमारे कई बच्चे जाया हो गए। पेट में ही मर जाते थे। ड्यू टू नेग्लिजेंस ऑफ डॉक्टर्स। तो उसने ये मन्नत की थी कि अगर बेटा हुआ तो मैं उसका नाम अब्दुल्लाह रखूंगी। अब्दुल्लाह तो पेट में भी अब्दुल्ला ही था। तो जब उस रिकॉर्ड को भी नहीं माना ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग पर 302 का मुलजिम फांसी के तख्ते से बरी हो जाता है और बरी आदमी को फांसी हो जाती है। वो एविडेंस भी नहीं मानी।कहां जाएं? बताइए आप कहां जाएं?

मैं कितना और जिऊंगा। इसी समाज के लिए छोड़कर जाऊंगा। इसी देश के लिए छोड़कर जाऊंगा। मेरा घर देख लीजिए और मेरी यूनिवर्सिटी देख लीजिए। मैंने अपने लिए कुछ नहीं बनाया। ना अपने लिए कुछ मांगा। कहता हूं कि सोने चांदी के कंगन मैंने नहीं मांगे किसी से। लेकिन हां कलम मांगा था।

अब इससे ज्यादा बदनसीबी क्या होगी

ये रामपुर किस लिए जाना जाता था? नवाबों के लिए चाकू के लिए। चाकू रामपुरी चाकू। फिल्मों में भी नाम आज तक भी अगर आता है तो रामपुरी चाकू से मार देंगे आपको। मैं रामपुर वालों की उस पहचान को बदलना चाहता था और मैंने बदला उस पहचान को कलम से उनकी पहचान कराई। आप देख लीजिए आज कैसा रामपुर है। जबकि बर्बाद हो गया इन 10 सालों में। उसके बावजूद देख लीजिए कैसा रामपुर है। वो कौन बदनसीब है और वह कौन दुश्मन है इस समाज का और इस देश का, इस शहर का जिसने चौराहे पर कलम नहीं लगाया।

'इतनी नफरत है हमसे'

आजम खान कहते हैं कि 80 लाख का चाकू बनाकर केस लगाया। यह नफरत हमसे है। ताकि इतिहास से इनके नाम की ये जिल्लत मिट ना जाए। आने वाला जमाना याद रखे कि इस शहर के लोग चाकू से पहचाने जाते हैं। इतनी इतनी गिरकर सोच, इतना जुल्म क्या कुदरत हिसाब नहीं लेगी? देर लग सकती है। कहते हैं ना देर है अंधेर नहीं है। मैं कहता हूं ये भी अल्लाह पर माज़ अल्लाह इल्जाम है कि देर है अल्लाह की या ना वो उसने उसकी हिकमत है कि वो क्यों देर लगा रहा है। उसके पीछे भी कोई कारण होगा वजह होगी। उस देर के पीछे भी कोई वजह होगी।

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