ड्रोन के बाद अब रंग बिरंगी गुड़ियाँ पकड़ेंगी भेड़िये ! बहराइच में भेड़ियों का आतंक
वन विभाग का कहना है कि भेड़िये बच्चों को निशाना बना रहे हैं इसलिए बच्चों के आकार की बड़ी गुड़ियाँ तैयार करवाई गयी हैं और उन्हें अलग अलग जगहों पर लगाया गया है ताकि भेड़िये जाल में फंस सकें.
The Wolf Attack: उत्तरप्रदेश के बहराइच में भेड़ियों का आतंक ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है. वन विभाग के लिए भेड़ियों को पकड़ना इतना कठिन काम हो गया है कि अब ड्रोन के बाद वन वभाग बच्चों के आकार वाली गुड़िया का सहारा ले रहा है. बच्चों के आकार वाली बड़ी सी टेडी गुड़िया को भेदियों को फंसाने के लिए कई संभावित जगहों पर लगाया गया है, जिससे भेदिया इन गुड़िया को बच्चा समझ कर आयें और पकड़े जाएँ. इंसानी गंध के लिए इन गुड़ियों पर बच्चों के मूत्र का छिड़काव भी किया है.
बच्चों का रूप दिया गया है गुड़िया को
वन विभाग के अधिकारी का कहना है कि भेदिये बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं और उनको उठा कर ले जा रहे हैं. इसे देखते हुए टेडी गुड़िया को बच्चों ( 4 से 6 साल तक के ) का आकर दिया गया है. इसके अलावा उन्हें रंग बिरंगे कपड़े पहनाये गए हैं, जिससे वो बच्चे ही लगें. जाल के पास व पिंजरों के अंदर इस तरह से गुड़िया रखी गयीं हैं कि देखने से भेड़िये को इनसानी बच्चा बैठा होने या सोता होने का भ्रम हो.
ऐसा इसलिए भी किया गया है क्योंकि पिछले डेढ़ महीने में भेड़िये 5 बच्चों को उठा कर ले जा चुके हैं. अभी तक 4 भेड़िये पकड़े जा चुके हैं और दो अभी फरार हैं.
भेड़िये लगातार बदल रहे हैं जगह
प्रभागीय वनाधिकारी अजीत प्रताप सिंह का कहना है कि 'हमलावर भेड़िये लगातार अपनी जगह बदल रहे हैं. वे अधिकतर रात के समय शिकार के लिए निकलते हैं और सुबह होते-होते अपनी मांद में लौट जाते हैं. इसी वजह से इन गुड़िया का सहारा लिया गया है. हमारी रणनीति है कि भेड़ियों को भ्रमित कर रिहायशी इलाकों से दूर किसी तरह इनकी मांद के पास लगाए गए जाल या पिंजरे में फंसाया जा सके. इसके लिए हम थर्मल ड्रोन से भेड़ियों की लोकेशन के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं. इसके अलावा पटाखे जलाकर, शोर मचाकर या अन्य तरीकों से भेड़ियों को रिहायशी गांव से दूर सुनसान जगह ले जाकर जाल के नजदीक लाने की कोशिश की जा रही है.
अंग्रेजों के जमाने भेड़िये के आतंक को ख़त्म करने के लिए रखा गया था 50 पैसे से एक रुपया तक का इनाम
वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी रमेश कुमार पाण्डेय फिलहाल भारत सरकार के वन मंत्रालय में महानिरीक्षक ( वन ) के पद पर तैनात हैं. उनका कहना है कि 'भेड़िये, सियार, लोमड़ी, पालतू व जंगली कुत्ते आदि जानवर कैनिड नस्ल के जानवर होते हैं. भेड़ियों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि ब्रिटिश काल में ये इलाका ( बहराइच ) कैनिड प्रजाति में शामिल इन भेड़ियों का इलाका हुआ करता था. भेड़िये की खासियत ये है कि वो आबादी में खुद को आसानी से छिपा लेता है. अंग्रेजों के ज़माने में भेड़ियों को बड़ी संख्या में मारा भी गया था. इन्हें मारने पर उस समय सरकार से 50 पैसे से लेकर एक रुपये तक का इनाम मिलता था.
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