7 साल में एक भी सांप्रदायिक हिंसा नहीं, बहराइच ने खोली योगी सरकार की पोल
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'7 साल में एक भी सांप्रदायिक हिंसा नहीं', बहराइच ने खोली योगी सरकार की पोल

योगी आदित्यनाथ सरकार का दावा रहा है कि पिछले सात साल में यूपी में एक भी सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई। लेकिन बहराइच की घटना सरकार के माथे पर दाग की तरह है।


Bahraich Violence: बहराइच, यूपी के पिछड़े जिलों में से एक। विकास की बांट जोहते इलाके। शनिवार को जिस महसी इलाके के महाराजगंज में हिंसा भड़की वो योगी आदित्यनाथ सरकार पर सवालिया निशान खड़ा करने के लिए काफी है। विपक्ष अपने फर्ज को निभा रहा है यानी सरकार की आलोचना कर रहा है। पुलिसिया तैनाती, प्रशासनिक अफसरों की लापरवाही, वोट की भूख जैसे शब्दों के जरिए सीधे योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधने का काम। यहां बड़ा सवाल यही है कि यूपी की योगी सरकार जो एक भी सांप्रदायिक हिंसा ना होने का दावा करती रही, उस राज में इतनी बड़ी घटना कैसे हो गई। उपद्रवियों ने एक तरह से सिस्टम को हाइजैक कर लिया। इस बात को इस तरह से समझ सकते हैं कि एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अमिताभ यश को खुद जमीन पर उतरना पड़ा। हाथ में पिस्टल लेकर दंगायइयों को चेतावनी देनी पड़ी। सवाल यहां है कि इसे पूरी तरह से प्रशासनिक लापरवाही माना जाए या यूपी विधानसभा के होने वाले उपचुनाव से भी कनेक्शन हो सकता है।

क्या है पूरा मामला
सबसे पहले यह समझिए कि बहराइच के महाराजगंज कस्बे में क्या हुआ था। दरअसल दुर्गा पूजा विसर्जन के लिए लोग जा रहे थे। लोगो का मजमा मुस्लिम बहुल इलाके से गुजर था। इस तरह का आरोप है कि डीजे पर कुछ आपत्तिजनक गाने बजाए जा रहे थे और उसके बाद माहौल गरमा गया। राम गोपाल मिश्रा नाम का एक युवक एक घर में दाखिल हुआ जो किसी मुस्लिम परिवार से संबंधित था। मकान के ऊपर हरे रंग का झंडा फहर रहा उसे उतार कर भगवा झंडा फहराया। इसके बाद ही उसे गोली मार दी गई। मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। राम गोपाल मिश्रा के शव को लेकर रात में भीड़ अस्पताल में जमी रही। खुद स्थानीय विधायक सुरेश्वर सिंह का दावा है कि उनकी गाड़ी पर भी गोलीबारी की गई थी। हालांकि कुछ लोग विधायक के दावे को गलत बताते हैं। हालांकि सोमवार को जो तस्वीर सामने आई वो दिल दहलाने वाली थी। उग्र भीड़ को रास्ते में जो कुछ मिला उसमें तोड़फोड़ और आगजनी करते गए। खुद यूपी के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर को उतरना पड़ा।

कई सवाल
इलाके के लोगों का कहना है कि पुलिस को पहले से पता था कि इस जगह पर कुछ विवाद हो सकता है। लेकिन सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे। सबसे बड़ी बात यह कि जिस शख्स की मौत हुई है उसका शीबू नाम के एक शख्स से कुछ दिनों पहले महाराजगंज कस्बे में कहासुनी हुई थी। दोनों को हिसाब किताब करने के लिए मौके की तलाश थी और जो कुछ हुआ उसके बारे में कोई इस हद तक नहीं सोचा था। ऐसा बताया जा रहा है कि एडीजी लॉ एंड ऑर्डर, गोरखपुर जोन के आईजी जब मौके पर थे उस वक्त भी स्थानीय पुलिस की भूमिका लचर नजर आई। जब ये दोनों अफसर एक्टिव हुए तब कहीं जाकर हालात नियंत्रण में आने लगा। यहीं सवाल है क्या इसके जरिए योगी आदित्यनाथ सरकार को बदनाम करने की कोशिश की गई है, या सही मायने में पुलिस हालात को भांप नहीं सकी।

इस विषय में जानकार कहते हैं कि लोकल पुलिस को हर एक घटना की जानकारी होती है, लिहाजा यह कहना कि उन्हें पता नहीं रहा होगा ठीक बात नहीं होगी। जहां तक चुनाव से इसका संबंध है तो सियासी दल अपनी बात रखने के लिए आजाद होते हैं। यूपी की राजनीति में सांप्रदायिकता या धर्मनिरपेक्षता मुद्दा नया नहीं है। समाजवादी पार्टी के नेता या दूसरे दल के नेता बीजेपी पर समाज को बांटकर राजनीतिक का आरोप लगाते हैं, वहीं बीजेपी भी मुस्लिम वोट बैंक की बात करती है। इस घटना के लिए कौन से हालात जिम्मेदार उसकी जांच हो रही है। लेकिन सच यह भी है कि योगी सरकार का सात साल तक सांप्रदायिक हिंसा रहित के दावे पर सवाल उठ खड़ा हुआ है।

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