ठाकरे वंश की जड़ें मगध में, बिहार से जुड़ा है ऐतिहासिक रिश्ता
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20 साल बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मुंबई में मंच साझा किया।

ठाकरे वंश की जड़ें मगध में, बिहार से जुड़ा है ऐतिहासिक रिश्ता

राज और उद्धव ठाकरे दो दशक बाद मंच पर साथ आए, जिससे महाराष्ट्र की राजनीति में बदलाव की अटकलें तेज़ हुईं। बाल ठाकरे के बिहार लिंक पर भी चर्चा गर्माई।


Raj Thackeray Udhav Thackeray News: मुंबई में भाषा नीति को लेकर हुए एक विशाल सार्वजनिक कार्यक्रम में महाराष्ट्र की राजनीति का एक भावनात्मक दृश्य सामने आया, जब दो दशक से अलग चल रहे चचेरे भाई राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे से मिले। राज ठाकरे ने इस मौके पर चुटकी लेते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर कटाक्ष किया और कहाआज बीस साल बाद उद्धव और मैं एक मंच पर आए हैं, जो काम बालासाहेब नहीं कर पाए, वो फडणवीस ने कर दिया। लेकिन इस कहानी का एक पहलू और है जो बिहार से जुड़ा है।

ठाकरे वंश की जड़ें और बिहार विवाद

यह पुनर्मिलन एक बार फिर ठाकरे परिवार की उत्पत्ति पर राजनीतिक बहस को सामने ले आया है। 2012 में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने दावा किया था कि शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के पूर्वज बिहार से महाराष्ट्र आए थे। यह दावा उन्होंने बाल ठाकरे के पिता केशव सीताराम ठाकरे (प्रबोधनकर ठाकरे) की आत्मकथा 'माझी जीवनगाथा' के आधार पर किया था।

उद्धव ठाकरे ने उस समय इस दावे पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने पत्रकारों से कहा था, “वो आदमी (दिग्विजय सिंह) पागल है।” हालांकि उद्धव ने स्वीकार किया कि उनके दादा की किताब में ठाकरे समुदाय की बिहार से उत्पत्ति का जिक्र है, लेकिन वह उनके "परिवार विशेष" के बारे में नहीं, बल्कि पूरे ठाकरे समुदाय के बारे में था।

बिहार कनेक्शन और ऐतिहासिक संदर्भ

केशव ठाकरे की किताबों में उल्लेख है कि ठाकरे परिवार चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु (CKP) समुदाय से संबंध रखता है, जो प्राचीन मगध (वर्तमान बिहार) से महापद्म नंद के शासनकाल में (ईसा पूर्व तीसरी या चौथी सदी) महाराष्ट्र की ओर आया था। यह प्रवासन नंद वंश द्वारा सूदखोरी के चलते हुआ था। बाद में यह समुदाय योद्धाओं और लेखकों के रूप में जीविकोपार्जन करने लगा।धवल कुलकर्णी की किताब 'द कज़िन्स ठाकरे: उद्धव, राज एंड द शैडो ऑफ देयर सेना' में भी इस प्रवास का उल्लेख मिलता है।

'ठाकरे' से 'Thackeray' बनने तक

प्रबोधनकर ठाकरे की आत्मकथा के अनुसार, ठाकरे परिवार का मूल नाम ठाकरे था। उनके एक पूर्वज मराठा काल में धोडप किले के किलेदार थे। उनके परदादा कृष्णाजी माधव (अप्पासाहेब) रायगढ़ के पाली में रहते थे। उनके दादा सीताराम बाद में पनवेल चले गए और पनवेलकर उपनाम अपनाया।

बाद में जब सीताराम ने केशव को स्कूल में दाखिल कराया, तो उन्होंने ठाकरे नाम का उपयोग किया। खुद केशव ने बाद में अंग्रेज लेखक विलियम मेकपीस ठाकरे से प्रभावित होकर इसका अंग्रेज़ीकरण कर Thackeray लिखना शुरू किया, जो अब तक चला आ रहा है।

उद्धव और राज ठाकरे में दूरी क्यों आई?

उद्धव और राज ठाकरे चचेरे भाई ही नहीं, बल्कि दोहरा पारिवारिक संबंध रखते हैं। उनके पिता बाल ठाकरे और श्रीकांत ठाकरे भाई थे, और माताएं मीनाताई और कुंदाताई बहनें थीं।शुरुआती दौर में राज ठाकरे हमेशा बालासाहेब के साथ मंचों पर सक्रिय दिखते थे, जबकि उद्धव पृष्ठभूमि में संगठनात्मक कार्यों में लगे रहते थे। लेकिन 2003 में महाबलेश्वर में शिवसेना अधिवेशन के दौरान जब उद्धव को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया, तो यह संकेत मिला कि उन्हें राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना गया है।

राज ठाकरे, जिन्हें लंबे समय से शिवसेना का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जाता था, इससे आहत हुए। उनके समर्थकों का आरोप था कि पार्टी में उन्हें और उनके गुट को दरकिनार किया जा रहा है। नवम्बर 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना से इस्तीफा दे दिया। अपने विदाई भाषण में उन्होंने कहा, “मैंने सिर्फ सम्मान मांगा था, बदले में अपमान और तिरस्कार मिला। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें लगता है कि किसी और का प्रभाव बालासाहेब पर बढ़ गया है, लेकिन उन्होंने अपने चाचा को भगवान-तुल्य बताया।

क्या राजनीति में ठाकरे बनेंगे एक?

मुंबई के मंच पर हाथ मिलाते और गले लगते राज और उद्धव को देखकर अटकलें तेज़ हो गई हैं कि क्या अब महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे एकजुट होंगे? भले ही औपचारिक गठबंधन न हो, लेकिन दोनों के संयुक्त मंच पर आना अपने-आप में राजनीतिक संकेत से कम नहीं।भविष्य क्या होगा, ये तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि ठाकरे बनाम ठाकरे की राजनीति में अब ठाकरे + ठाकरे की संभावनाएं जाग चुकी हैं।

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