वोटर अधिकार यात्रा का जोश उतरा, अब सीटों पर INDIA गठबंधन में टकराव
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वोटर अधिकार यात्रा का जोश उतरा, अब सीटों पर INDIA गठबंधन में टकराव

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 1,300 किलोमीटर लंबी “वोटर अधिकार यात्रा” के कुछ हफ्तों बाद विपक्षी गठबंधन के अंदर सीट‑बंटवारे की बातचीत से असहमति और तनाव सामने आ रहे हैं।


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कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 1,300 किलोमीटर लंबी “वोटर अधिकार यात्रा” के कुछ हफ्तों बाद विपक्षी गठबंधन के अंदर सीट‑बंटवारे की बातचीत से असहमति और तनाव सामने आ रहे हैं। बता दें कि इस यात्रा ने ग्रैंड अलायंस के नेताओं के बीच आपसी एकजुटता की छवि पेश की थी।

ग्रैंड अलायंस के नेता मानते हैं कि गठबंधन के सदस्यों के बीच सीट बंटवारे को लेकर कुछ झगड़े “सामान्य” हैं और उनका ब्लॉक की राजनीतिक स्थिरता पर नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा। लेकिन पिछले कुछ दिनों की बातचीत से यह पता चला है कि राज्य के अधिकांश हल्कों (constituencies) को विभाजित करने में अधिक से अधिक एक दर्जन सीटें ही विवादों का केंद्र बनी हुई हैं। सूत्र बताते हैं कि आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियां और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के बीच अंतिम सीट‑बंटवारे का नक्शा तैयार करना और विशेष विधानसभा हल्कों की जिम्मेदारी तय करना महीन के अंत तक टल सकता है। इस बीच चुनाव आयोग भी बिहार में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने वाला है।

राहत की बात

वहीं, विपक्षी गठबंधन को एक सकरात्मक तथ्य यह है कि मौजूदा समय में रुलिंग NDA गठबंधन में सीट‑बंटवारे की लड़ाई कहीं ज़्यादा तीव्र है। JD(U) जिद कर रही है कि उसे “सीनियर अलाय” का दर्जा बरकरार रखना चाहिए और वह BJP से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है। दूसरी ओर छोटे गठजोड़ सहयोगी जैसे लोक जनशक्ति पार्टी‑राम विलास, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और संयुक्त राज्य मंत्री चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा आदि भी JD(U) को मिले हिस्से‑सीटों से अधिक की मांग कर रहे हैं।

ग्रैंड अलायंस के वरिष्ठ नेता पहले मध्य‑सितंबर तक सीट बंटवारे का प्रारूप तैयार करना चाहते थे, ताकि राहुल गांधी की यात्रा से मिली चुनावी लहर का फायदा उठाया जा सके और NDA गणों से पहले शुरुआत की जा सके। लेकिन अब यह संभव नहीं लगता, ऐसा विपक्ष के सूत्र The Federal को बता रहे हैं। सीट‑बंटवारे की बातचीत को तेज़ी से हल करने के लिए इस बात पर सहमति बनी थी कि बिहार विधानसभा की वे सीटें जो वर्तमान में कांग्रेस और अन्य पार्टियों के पास हैं, वे उन्हीं को दी जाएं। बाकी की 129 सीटों पर—जो NDA गठबंधन के अधीन हैं—उनकी बंटवारे की प्रक्रिया होगी। लेकिन इस फार्मूले में भी दरारें दिखने लगी हैं।

आरजेडी ने कांग्रेस से वैशाली जिले की राजा पोखर सीट छोड़ने की मांग की है, जो कांग्रेस ने 2020 में जीती थी। VIP ने सियौन जिले की महाराजगंज सीट की मांग की है, जो कांग्रेस की “सीटिंग सीट” है। कांग्रेस को आरजेडी और VIP की ये मांगें अप्रत्याशित लगी हैं, क्योंकि पार्टी चुनाव से पहले अपनी जीत की संभावनाओं को लेकर आत्मविश्वासी थी, खासकर राहुल गांधी की यात्रा की सार्वजनिक प्रतिक्रिया के बाद। कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, पार्टी उम्मीद कर रही थी कि वह 2020 में जीती हुई 19 सीटों को बरकरार रखेगी और आरजेडी कोई ऐसी मांग नहीं करेगा कि कांग्रेस को पिछली बार मिले कुल 70 सीटों में कमी हो।

सीटों की मांग वाले कारक

पक्षों के बीच सीटों की होड़ को बढ़ाने वाले मुख्य तीन कारण सामने आ रहे हैं:-

1. राहुल गांधी की यात्रा से कांग्रेस को इस चुनाव में बेहतर स्थिति बनने की प्रत्याशा।

2. आरजेडी का दृढ़ विश्वास कि तेजस्वी यादव राज्य में मतदाताओं को खींचने वाले नेता होंगे।

3. नई साथी पार्टी VIP का शामिल होना और जोड़ने की कोशिशें जैसे कि चिराग पासवान के रिश्तेदारों या झारखंड की JMM के साथ गठजोड़ आदि, जो गठबंधन में और दायरा बढ़ाने की रणनीति से जुड़ी हैं।

भा­­गलपुर का जटिल मामला

भा­­गलपुर जिले में सीट‑बंटवारे की स्थिति विशेषकर जटिल है। 2020 में आरजेडी ने Kahalgaon, Sultanganj, Bhagalpur (town) भाजपा‑BJP के विरुद्ध कांग्रेस को सौंपे थे। Bihpur, Gopalpur, Pirpainti, Nathnagar जैसी चार सीटें आरजेडी के कब्जे में थीं। इस चुनाव में कांग्रेस का लक्ष्य है कि Kahalgaon उसकी झोली में रहे, लेकिन Sultanganj सीट आरजेडी को दे दी जाए, जबकि पिछली बार कांग्रेस वहां हार गई थी।

जाति‑आधारित टकराव वर्तमान

वैशाली विधानसभा क्षेत्र में संघर्ष इसलिए गहरा है। क्योंकि कांग्रेस ने इंजीनियर संजीव नामक युवा भूमिहार नेता को टिकट दिलवाने का प्रयास किया है, जबकि आरजेडी अपना पिछड़ी जाति का नेता अजय कुशवाहा उतारना चाहता है। पिछली बार संजीव सिर्फ लगभग 7,400 वोटों से हार गए थे।

कांग्रेस का पूरा ध्यान जीतने‑वाले सीटों पर

कांग्रेस सूत्र यह कहते हैं कि पार्टी ऐसी सीटें चाहती है, जहां उसे जीत की वास्तविक संभावना हो — न कि केवल ऐसी सीटें जिन्हें कोई अन्य साथी पार्टी नहीं रखना चाहता। बिहार में कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने स्पष्ट कहा है कि “विकीये जा सकने वाली सीटें और न जीत सकने वाली सीटों” के बीच फर्क होना चाहिए और किसी को ऐसा नहीं होना चाहिए कि उसे सिर्फ ऐसे हल्के दिए जाएं, जिन्हें जीतना कठिन हो। अल्लावरू ने यह भी कहा है कि सभी दलों को कुछ ना कुछ सीटें दान करनी पड़ेंगी, ताकि एक उचित, संतुलित सीट‑बंटवारा स्वरूप तैयार हो सके। अगर नया राजनीतिक दल गठबंधन में शामिल हो रहा है, तो प्रत्येक साथी को अपने हिस्से से योगदान देना होगा।

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