बंगाल में भाषा की जंग, प्राइम टाइम से सड़कों तक बंगाली हक़
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कोलकाता में बांग्ला पोक्को रैली, भूमिपुत्रों के लिए नौकरियों में आरक्षण की मांग हुई तेज। फोटो: बांग्ला पोक्को

बंगाल में भाषा की जंग, प्राइम टाइम से सड़कों तक बंगाली हक़

राज्य सरकार ने बंगाली फिल्मों के लिए 50 प्रतिशत प्राइम टाइम स्लॉट आरक्षित कर दिए हैं और बंगाली साइनेज अनिवार्य कर दिए हैं, जिससे भाषाई ध्रुवीकरण पर बहस छिड़ गई है।


पश्चिम बंगाल इन दिनों अपनी भाषाई पहचान को पहले से कहीं अधिक सशक्त तरीके से सामने ला रहा है। सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्स में बंगाली फिल्मों को प्राइम टाइम स्लॉट में प्राथमिकता देने से लेकर व्यापारिक प्रतिष्ठानों के साइनबोर्ड पर बंगाली भाषा को अनिवार्य करने तक, राज्य सरकार कई ठोस कदम उठा रही है। ये बदलाव न सिर्फ़ नीति स्तर पर, बल्कि सड़क पर हो रहे प्रदर्शनों तक में महसूस किए जा रहे हैं, जो बंगाली और गैर-बंगाली समुदायों के बीच खाई को गहरा करने का जोखिम भी पैदा कर रहे हैं।

सिनेमाघरों में 50% प्राइम टाइम स्लॉट बंगाली फिल्मों के लिए

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर मंत्री अरूप विश्वास की अध्यक्षता में हुई बैठक में फ़िल्म निर्माताओं, वितरकों और प्रदर्शकों के साथ यह तय हुआ कि राज्य भर में थिएटर और मल्टीप्लेक्स में 50% या उससे अधिक प्राइम टाइम स्लॉट (दोपहर 2 बजे से रात 9 बजे तक) बंगाली फिल्मों के लिए आरक्षित होंगे। यह बंगाली फ़िल्म इंडस्ट्री, जिसे ‘टॉलीवुड’ कहा जाता है, की लंबे समय से चली आ रही मांग रही है।

बंगाली फ़िल्मकारों का कहना था कि मौजूदा नियमों के बावजूद, जिसमें साल में कम से कम 120 शो बंगाली फिल्मों के लिए अनिवार्य हैं, उन्हें प्राइम टाइम में जगह पाना मुश्किल होता है। हालिया विवाद की वजह 14 अगस्त को रिलीज होने वाली बंगाली फ़िल्म धूमकेतु और ऋतिक रोशन की हिंदी फ़िल्म वॉर 2 का टकराव है। आरोप है कि हिंदी फ़िल्म के वितरक ने सिंगल-स्क्रीन थिएटरों में सभी शो अपने लिए माँगे, जिससे बंगाली रिलीज़ को किनारे कर दिया गया।

भाषाई ध्रुवीकरण का आरोप

पूर्वी भारत के फ़िल्म टेक्नीशियन संघ (FCTWEI) ने स्लॉट आवंटन के लिए मुख्यमंत्री का आभार जताया। लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता चंदन घोष चौधरी का आरोप है कि यह फैसला महज़ क्षेत्रीय फ़िल्मों को बढ़ावा देने का प्रयास नहीं, बल्कि भाषाई ध्रुवीकरण की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद सादुद्दीन के अनुसार, इसे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाषा-आधारित राजनीति के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए।इसी क्रम में टीएमसी-शासित कई नगर निगमों ने व्यापारिक प्रतिष्ठानों के साइनबोर्ड पर बंगाली का इस्तेमाल अनिवार्य किया है।

व्यापारिक प्रतिष्ठानों को अल्टीमेटम

कोलकाता के मेयर और शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने 8 अगस्त को शहर के सभी व्यापारिक प्रतिष्ठानों को दो महीने का समय दिया है कि वे अपने नाम बंगाली में (अन्य भाषाओं के साथ) लिखें, वरना उनके साइनबोर्ड हटा दिए जाएंगे। सिलिगुड़ी, दुर्गापुर और आसनसोल नगर निगमों ने भी यह नियम लागू कर दिया है। कोलकाता नगर निगम ने तो पार्षदों को मासिक बैठकों में केवल बंगाली में बोलने का निर्देश दिया है।

सड़क पर बढ़ती भाषा-आधारित सक्रियता

यह भाषाई主 दावा अब महज़ सरकारी आदेशों तक सीमित नहीं है। बंगला पक्षो नामक संगठन, जिसकी स्थापना 2018 में हुई थी, अब राज्य के कई जिलों में सक्रिय है। हाल के महीनों में इसने बैंकों में बंगाली फॉर्म की मांग, रेलवे कार्यालयों के बाहर बंगाली साइनबोर्ड की कमी पर विरोध, और सरकारी नौकरियों में 100% तथा अन्य क्षेत्रों में 90% आरक्षण की मांग जैसे आंदोलन किए हैं।

11 अगस्त को हल्दिया औद्योगिक क्षेत्र में इस संगठन ने चार कंपनियों पर बाहरी लोगों को प्राथमिकता देकर बंगालियों को नौकरी से हटाने का आरोप लगाते हुए विरोध रैली निकाली। इसी दिन दुर्गापुर नगर निगम के सामने भी 90% आरक्षण और सभी साइनबोर्ड पर बंगाली के प्रयोग की मांग को लेकर प्रदर्शन हुआ।

'बंगाल में काम है, लेकिन बंगालियों के लिए नहीं'

संगठन के महासचिव गर्गा चटर्जी का कहना है कि राज्य में 2 करोड़ से अधिक बाहरी प्रवासी काम कर रहे हैं, जबकि 20 लाख से अधिक बंगाली रोज़गार के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं। यह असंतुलन अब राजनीतिक बहस का मुद्दा बन गया है।

खेल मैदान में भी भाषा का रंग

यह आंदोलन खेल मैदान तक पहुँच गया है। 9 अगस्त को साल्ट लेक स्टेडियम में मोहुन बागान समर्थकों ने बंगाली भाषा और लोगों पर कथित हमलों के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर की कविता और राष्ट्रवादी नारों वाले बैनर लहराए। दो दिन पहले ईस्ट बंगाल के प्रशंसकों ने भी ऐसा ही प्रदर्शन किया था।

दुर्गा पूजा पंडालों में सांस्कृतिक संदेश

दुर्गा पूजा समितियाँ भी अब अपने पंडालों में बंगाली संस्कृति और भाषा को केंद्र में रखकर थीम बना रही हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर इस भाषाई主 दावे का रूप अधिक उग्र और कभी-कभी नफ़रत भरे भाषणों में बदलता जा रहा है।

राजनीतिक लाभ बनाम समाधान

कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी-शासित राज्यों में बंगाली भाषियों पर हमलों के मुद्दे को टीएमसी समाधान ढूँढने के बजाय राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है। पार्टी ने इस पर सभी दलों की बैठक बुलाने की मांग की है, ताकि तनाव को खत्म किया जा सके।

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