
भगदड़ की चपेट में बेंगलुरु पुलिस, सरकार ने बनाया बलि का बकरा!
बेंगलुरु भगदड़ में 11 मौतों के बाद पुलिस अधिकारियों के निलंबन पर पूर्व कमिश्नर भाष्कर राव ने कहा कि असली दोषी नेता हैं। अफसरों को बलि का बकरा बनाया।
4 जून को बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुई भयावह भगदड़ में 11 युवाओं की दर्दनाक मौत के दो दिन बाद बेंगलुरु सिटी पुलिस कमिश्नर बी. दयानंद सहित पांच वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को कर्तव्य में भारी लापरवाही के आरोप में निलंबित कर दिया गया। निलंबित किए गए अधिकारियों में तीन आईपीएस अफसर भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के राजनीतिक सचिव के. गोविंदराज को भी निलंबित किया गया है, जबकि कर्नाटक पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (खुफिया) हेमंत निंबालकर का तबादला कर दिया गया है।
हालांकि, इन निलंबनों को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये अधिकारी सिर्फ बलि का बकरा बनाए गए हैं, जबकि असली दोषी अब भी बेनकाब हैं। इस मुद्दे पर पूर्व बेंगलुरु पुलिस आयुक्त भास्कर राव ने ‘द फेडरल’ को दिए एक साक्षात्कार में बेबाकी से अपनी राय रखी।
हादसे पर पूर्व पुलिस कमिश्नर की पहली प्रतिक्रिया
भास्कर राव के मुताबिक, सरकार, बीसीसीआई, आईपीएल, आरसीबी, कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन और इवेंट मैनेजमेंट एजेंसी डीएनए द्वारा 24 घंटे के भीतर विजयी जुलूस और समारोह आयोजित करने का निर्णय जल्दबाजी में, बिना योजना के और गलत सोच पर आधारित था।उन्होंने कहा, "पुलिस पहले से ही रात भर ड्यूटी पर थी। खिलाड़ी अहमदाबाद से चार्टर्ड फ्लाइट में लाए गए, फाइव-स्टार होटल में ठहराए गए, और फिर विधानसभा सीढ़ियों पर परेड कराई गई, जो निषिद्ध क्षेत्र है।"
जब केसीए स्टेडियम में प्रशंसकों का स्वागत हो रहा था, उसी दौरान बाहर भगदड़ हो चुकी थी और लोग मर चुके थे। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से कार्यक्रम जारी रहा। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री त्रासदी को स्वीकारने के बजाय, युवाओं के साथ कनेक्शन बनाने और सुर्खियों में बने रहने में ज्यादा रुचि रखते दिखे। यह एक शासन का मज़ाक था।
क्या दयानंद को 'बलि का बकरा' बनाया गया?
पूर्व पुलिस कमिश्नर भास्कर राव साफ कहते हैं, यह महज़ आरोप नहीं है, बल्कि यही हुआ है। कमिश्नर, एडिशनल कमिश्नर, डिप्टी कमिश्नर, एसीपी और यहां तक कि स्थानीय इंस्पेक्टर तक को निलंबित कर दिया गया। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि कब्बन पार्क पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर से आईपीएल और केसीए के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई। राव सवाल उठाते हैं, जो अधिकारी खुद निलंबित हैं वे कैसे निष्पक्ष एफआईआर दर्ज कर सकते हैं?
क्या इन निलंबनों से न्याय होगा?
भास्कर राव निराशा जताते हैं, “एक हफ्ते में सब कुछ भुला दिया जाएगा सिवाय उन परिवारों के दर्द के, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया। मीडिया का ध्यान कुछ दिनों तक बना रहेगा, लेकिन असली दोषियों को कुछ नहीं होगा। वे आरोप लगाते हैं कि मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री असली 'ए1', 'ए2' आरोपी बिना किसी जवाबदेही के बच निकलेंगे।
क्या यह सिर्फ पुलिस विभाग की विफलता थी?
राव कहते हैं, पुलिस कमिश्नर महज़ प्रशासनिक अधिकारी नहीं होते, बल्कि सरकार के साथ रणनीतिक निर्णयों में भागीदार होते हैं। अगर सरकार उन्हें नाकाम मानकर निलंबित करती है, तो यह उसकी अपनी विफलता की स्वीकारोक्ति है। उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी पुलिस अधिकारी किसी मंत्री से टकरा नहीं सकता। कमिश्नर को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के साथ तालमेल बिठाकर काम करना होता है।”
क्या जश्न जारी रखना अमानवीय था?
भास्कर राव स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, पूरी तरह अमानवीय और असंवेदनशील था। बोरिंग अस्पताल में दो लोगों की मौत 4:33 और 4:36 बजे घोषित हो चुकी थी। इसके बावजूद 5 बजे के बाद तक शॉल, माला, पटाखों के साथ कार्यक्रम चलता रहा। जब बाहर लोग मर रहे हों, तब अंदर खुशियां मनाना कैसी संवेदनशीलता है?”
क्या इस घटना ने पुलिस बल का मनोबल तोड़ा?
राव कहते हैं, बिलकुल। वरिष्ठ अधिकारी का बलिदान पूरे विभाग का हौसला तोड़ता है। पुलिस में फुर्ती और निर्णय क्षमता जरूरी होती है, लेकिन इसके लिए समर्थन चाहिए न कि धोखा।”
क्या पुलिस को पर्याप्त समय और संसाधन मिले थे?
स्पष्ट रूप से नहीं, राव कहते हैं। पूरा कार्यक्रम जल्दबाजी में किया और जब सरकार- पुलिस के बीच टकराव होता है, तो पुलिस ही असुरक्षित बनती है।”