A file photo of slow-moving traffic in Bengaluru.
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बेंगलुरु में धीमी गति से चलती ट्रैफिक का एक फ़ाइल फोटो।

'पागलपन की हद तक है बेंगलुरू का ट्रैफिक', सबीर भाटिया की पोस्ट से सोशल मीडिया में उबाल

Hotmail के सह-संस्थापक सबीर भाटिया ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में यात्रा में लगने वाले समय की बात करते हुए सवाल किया कि बेंगलुरु के लोग रोज़ाना इस ट्रैफिक को "कैसे सहन करते हैं?"


Hotmail के सह-संस्थापक सबीर भाटिया ने बेंगलुरु के बदनाम ट्रैफिक पर एक बार फिर सोशल मीडिया पर बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में यात्रा समय की तुलना करते हुए पूछा कि "बेंगलुरु के लोग रोज़ाना इस ट्रैफिक को कैसे झेल लेते हैं?"

भाटिया ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “मुझे पता है कि बेंगलुरु के लोग इसे नकारात्मक कह सकते हैं… लेकिन यहाँ का ट्रैफिक INSANE यानी पागलपन की हद तक है। मैं बे -एरिया में साइकिल से उतनी ही दूरी एक-तिहाई समय में तय करता हूँ। लोग इसे हर दिन कैसे सहते हैं?”

प्रतिक्रियाएं और बहस

भाटिया की पोस्ट पर X पर तीखी बहस शुरू हो गई। कुछ ने उनका समर्थन किया तो कुछ ने दो देशों की तुलना पर सवाल उठाए।

उद्यमी अक्षय शाह ने तो बेंगलुरु का बायकॉट करने तक की बात कह दी। उन्होंने लिखा, “हमें बेंगलुरु का बहिष्कार शुरू करना चाहिए, ताकि सरकार को होश आए। टेक प्रोफेशनल्स और स्टार्टअप्स को अपने बेस शिफ्ट करने चाहिए, तभी इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक होगा।”

इस पर एक यूज़र (@VijayPa53435511) ने पलटकर पूछा, “और बहिष्कार के बाद जाएंगे कहां? दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे? अंत में इन्हीं जैसी या उससे भी बुरी ट्रैफिक में फंसेंगे। साथ ही बेंगलुरु के टैलेंट पूल और टेक ईकोसिस्टम से भी हाथ धो बैठेंगे।”

शाह ने जवाब दिया, “ऐसा कुछ नहीं कि टैलेंट पूल सिर्फ बेंगलुरु में है। दूसरे शहरों में भी टैलेंट है और टैलेंट माइग्रेट भी करता है। मैं 2005 से IT सेटअप चला रहा हूँ, पुणे और मुंबई में अच्छा टैलेंट है। बेंगलुरु सिर्फ एक हाइप है। मुंबई में 30-45 मिनट में एयरपोर्ट पहुंच जाते हैं, जो बेंगलुरु में सुनने तक को नहीं मिलता।”

कॉरपोरेट ज़िम्मेदारी पर भी सवाल

एक अन्य यूज़र (@balajiworld) ने लिखा, “बेंगलुरु में कॉरपोरेट ज़िम्मेदारी गायब है। अगर कंपनियाँ अपनी इमारतों के सामने की सड़कें ही ठीक करवा दें तो बड़ा बदलाव आ सकता है। मेरे एम्प्लॉयर के पास 50,000 से ज़्यादा कर्मचारी हैं, जो हर दिन खुद गाड़ी चलाकर ऑफिस आते हैं क्योंकि कंपनी कैब पिकअप नहीं देती।”

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