
लंदन फैशन वीक में भिवानी जमकलम का जादू,पारंपरिक हैंडलूम को मिली वैश्विक पहचान
लंदन फैशन वीक में भिवानी जमकलम के लक्ज़री बैग ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। पारंपरिक बुनाई और बुनकरों की मेहनत को वैश्विक पहचान मिली।
21 सितंबर को लंदन फैशन वीक में दुबई आधारित डिजाइनर विनो सुप्रजा ने तमिलनाडु के भिवानी से आए धोतीधारी बुनकर पी. सक्थिवेल के साथ रैम्प वॉक किया। बुनकर ने अपने हाथों में रट्टाई (स्पिनिंग व्हील) रखा, जो भारत की हैंडलूम विरासत का प्रतीक है, जबकि सुप्रजा ने उनके द्वारा बुने गए कालीनों से बनाए गए लक्ज़री बैग पेश किए। दर्शक इस अनोखे संयोजन को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए।
भिवानी जमकलम की विशिष्टता
भिवानी जमकलम, भिवानी का हस्तनिर्मित कॉटन कालीन और कंबल, अपनी पारंपरिक कारीगरी, मजबूत बुनाई और बहुरंगी धारियों के लिए प्रसिद्ध है। हालाँकि इसे लगभग दो दशकों पहले जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिला था, लेकिन नवाचार और बाजार समर्थन की कमी के कारण कई बुनकरों ने अपने ताने-बाने छोड़ दिए।
सुप्रजा ने अपने शोध के दौरान जाना कि भिवानी में कभी लगभग 5,000 हैंडलूम थे, लेकिन आज केवल एक-पाँचवां हिस्सा ही सक्रिय है। उन्होंने बताया कि जमकलम कभी तमिलनाडु के हर घर में आमतौर पर हॉल में फैलाने के लिए जरूरी था, मेहमानों का स्वागत करने या समारोहों में बैठने के लिए। लेकिन फर्श पर बैठने की परंपरा घटने और फर्नीचर के बढ़ने के कारण इसकी मांग धीरे-धीरे घट गई।
लक्ज़री उत्पाद में रूपांतरण
सुप्रजा ने बताया कि भिवानी जमकलम में लक्ज़री उत्पाद की सभी विशेषताएँ हैं। इसकी गुणवत्ता, जीवंत रंग और मजबूती इसे विशिष्ट बनाती हैं। कालीन अब कम उपयोग में हैं, इसलिए सुप्रजा ने इसे लक्ज़री बैग में बदलने का निर्णय लिया।
बुनकर के लिए गर्व का पल
70 वर्षीय सक्थिवेल, जो तीन पीढ़ियों से पारंपरिक बुनाई से जुड़े हैं, लंदन फैशन वीक में दर्शकों की सराहना देखकर बेहद खुश हुए। यह उनका पहला विदेश यात्रा अनुभव था, और सुप्रजा ने उनकी यात्रा की सभी व्यवस्थाएँ कीं। सक्थिवेल ने मुस्कुराते हुए कहा, “मेरे कालीन ने जादू कर दिया।”
विदेशों में मांग की उम्मीद
फैशन वीक के बाद, कई बुनकरों को उम्मीद है कि भिवानी जमकलम की विदेशों में मांग फिर से बढ़ेगी। तमिलनाडु हैंडलूम वीवर्स को-ऑपरेटिव सोसाइटी (Co-optex) के अधिकारियों ने बताया कि बुनकरों के मेहनत के सम्मान में भिवानी कालीन को केवल हैंडलूम उत्पादन के लिए आरक्षित किया गया है।
इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी वकील पी. संजय गांधी ने कहा कि GI टैग हासिल करने में मदद करने के बाद इस उत्पाद को वैश्विक पहचान मिलना गर्व की बात है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार और निजी कंपनियाँ इसे प्रीमियम गिफ्ट आइटम के रूप में बढ़ावा दें, जिससे कई बुनकर अपनी आजीविका सुरक्षित रख सकें।
भिवानी जमकलम की ऐतिहासिक पहचान
भिवानी जमकलम की उत्पत्ति 19वीं सदी में हुई, जब जांगमार समुदाय ने कावेरी नदी के किनारे मोटे कॉटन धागों से कंबल और कालीन बनाना शुरू किया। इन कालीनों की मोटी बुनाई, धारियाँ और जीवंत रंग तुरंत पहचान योग्य थे।समय के साथ नरम या मिश्रित धागों (आर्ट-सिल्क सहित) का उपयोग शुरू हुआ, जिससे सजावटी सीमाएं और नई उत्पाद शैलियाँ विकसित हुईं। फिर भी, पावर-लूम की प्रतिस्पर्धा, घटती मजदूरी, युवा पीढ़ी का बुनाई छोड़ना और केवल हैंडलूम का कानूनी पालन चुनौतियाँ बनीं।
पुनरुद्धार की पहल
आज, मूल हैंडलूम का केवल एक अंश ही सक्रिय है, लेकिन भिवानी जमकलम को पुनर्जीवित करने की गति बढ़ रही है। सरकार, सहकारी समितियाँ और डिजाइनर नए रंग, मिश्रित धागे और उत्पाद रूप जैसे बैग, वॉल हैंगिंग, डेकोर पीस पर काम कर रहे हैं और GI स्थिति की सुरक्षा को मजबूत कर रहे हैं।
इस हस्तकला में पीढ़ियों की कहानियाँ बुनाई में जीवित हैं — परिवारों की मेहनत, प्राकृतिक रंगों की छाया, समारोह और मेहमानों के स्वागत की परंपराएँ। सुप्रजा ने लंदन फैशन वीक में जमकलम की पहचान को पुनर्स्थापित करके इसे पारंपरिक गौरव और आधुनिक डिजाइन के संगम में वापस ला दिया।
इस तरह, भिवानी जमकलम अब न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेषता और सांस्कृतिक विरासत के साथ नई जिंदगी पा रहा है।