
बिहार में कांग्रेस का सवर्ण-दलित कार्ड, NDA में सेंधमारी RJD पर दबाव?
बिहार की सियासत में जातीय जकड़ बेहद मजबूत है। विकास की बात कितनी भी हो चुनावी लड़ाई में यह विषय मुद्दा कम बनता है। ऐसे में कांग्रेस सवर्ण-दलित गठजोड़ से क्या संदेश दे रही है।
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में जातीय जकड़न और जातीय हदबंदी इतनी तगड़ी है कि इसे नजरंदाज करना किसी भी पार्टी के लिए घाटे का सौदा बन जाता है। बिहार में विधानसभा चुनाव होने में अभी लगभग 7 महीने बाकी हैं। ऐसे में चुनाव का समय नजदीक आता देख सभी दलों ने संगठन में बदलाव करने से लेकर चुनावी अभियान को धार देना शुरू कर दिया है। कांग्रेस भी इसमें पीछे नहीं है। पार्टी ने बड़ा कदम उठाते हुए अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश प्रसाद सिंह की छुट्टी कर दी गई है। सिंह की जगह प्रदेश अध्यक्ष की कमान राजेश कुमार को सौंपी गई है।
औरंगाबाद के कुटुंबा से एमएलए हैं राजेश कुमार
राजेश कुमार औरंगाबाद के कुटुंबा से विधायक हैं। वह दलित समुदाय से आते हैं। इनके पिता बालेश्वर राम भी सांसद थे। राजेश अब तक दो बार 2015 और 2020 में विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। वह कांग्रेस का युवा चेहरा माने जाते हैं और पार्टी के आयोजनों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। दलित समाज में इनकी पहचान एक सशक्त नेता के रूप में है। प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश सिंह को हटाकर राजेश को कमान सौंपना सामाजिक समीकरणों को साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कांग्रेस ने यह निर्णय ऐसे समय में लिया है जब राज्य में जातीय समीकरण काफी प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। कांग्रेस के इस कदम को दलित मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने की एक पहल के रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि, इस बदलाव के पीछे की वजह बिहार कांग्रेस में बीते कुछ समय से चल रही अंदरूनी कलह, गुटबाजी और अखिलेश सिंह के खिलाफ प्रादेशिक नेताओं की नाराजगी बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और पार्टी के प्रदेश प्रभारी के बीच पिछले कुछ महीनों से मतभेद चल रहे थे। कांग्रेस की यात्रा को लेकर भी अखिलेश सिंह ने नाराजगी जाहिर की थी। इसके अलावा संगठन में समन्वय की कमी और गुटबाजी की शिकायतें भी सामने आई थीं। अखिलेश सिंह लालू यादव के करीबी माने जाते हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का प्रदर्शन बिहार में भले ही जो भी रहा हो, लेकिन जिस तरह उन्होंने अपने बेटे को टिकट दिलाया और राजद से सीट हासिल की, यह बात भी पार्टी नेताओं को नागवार गुजरी।
राजेश कुमार को कांग्रेस मे कमान क्यों दी उसे समझने से पहले कुछ आंकड़ों को समझना जरूरी है।
- बिहार में दलित आबादी एनडीए की दलित राजनीति में आज सबसे बेहतर स्थिति में है.
- 2011 की जनगणना के आधार पर राज्य में दलित समुदाय की आबादी लगभग 19.65%
- लोक जनशक्ति पार्टी,हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा साथ होने से एनडीए मजबूत
- 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक दलित विधायक एनडीए से।
- बिहार विधानसभा में इस समय 38 दलित विधायक हैं कुल विधायकों का 16.04% हैं.
- 22 दलित विधायकों का नाता एनडीए और 16 का महागठबंधन से है
- 2024 के लोकसभा चुनाव में भी एनडीए ने बिहार की 40 में से 30 सीटें जीतीं
- जेडीयू ने 12, बीजेपी ने 12, एलजेपी (रामविलास) ने 5 और HAM ने 1 सीट हासिल की.
इन आंकड़ों से समझ सकते हैं कि दलित समाज का झुकाव किस तरफ है। राजेश कुमार को प्रदेश की कमान देने के पीछे यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस इस बार विधानसभा चुनाव बेहद मजबूती के साथ लड़ना चाहती है। खासकर दलित चेहरे के जरिए इस बार उसने दलित वोटबैंक पर दांव लगाया है। वह बिहार चुनाव को काफी गंभीरता से ले रही है। उसने बिहार के लिए नया प्रभारी भी नियुक्त किया है। पिछले महीने उसने युवा, आक्रामक टेक्नोक्रेट कृष्णा अल्लावरु को बिहार का नया प्रभारी बनाया। अनुभवी नेता मोहन प्रकाश की जगह लेने वाले अल्लावरु ने हाल ही में पटना के दौरे पर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे, जब उन्होंने कांग्रेस को राजद की बी टीम बताने वाले सुझावों को खारिज करते हुए कहा था कि हम लोगों की ए टीम हैं।
एनडीए के वोटबैंक में सेंधमारी, आरजेडी पर दबाव
अगर साल 2015 की बात करें तो दलित समाज से आने वाले अशोक चौधरी कांग्रेस की अगुवाई कर रहे थे। कांग्रेस को उस चुनाव में 27 सीटों पर जीत मिली। हालांकि इस नतीजे के बारे में कहा जाता है कि नीतीश और लालू के गठजोड़ का फायदा मिला था। बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि आमतौर पर बिहार का दलित समाज महागठबंधन से अधिक एनडीए के पक्ष में मतदान करता रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि कांग्रेस कुछ हद तक उनका नुकसान कर सकती है। जहां तक आरजेडी का सवाल है कांग्गेस सीट शेयरिंग को लेकर राजद पर दबाव बनाए और पहले से ज्यादा सीटें देने की मांग करे। जाहिर है कि कांग्रेस की यह आक्रामकता महागठबंधन में राजद के रसूख और हैसियत दोनों को प्रभावित करेगी।