चुनावी रण का नया समीकरण, बिहार में महिला वोट बने असली गेम-चेंजर
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चुनावी रण का नया समीकरण, बिहार में महिला वोट बने असली गेम-चेंजर

बिहार चुनाव में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही नकद योजनाओं से महिलाओं को लुभाने में जुटे हैं। देखने वाली बात यह है कि जाति हावी रहेगी या फ्रीबीज़ का असर होगा।


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बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों के जमीनी कार्यकर्ताओं ने अचानक महिलाओं तक पहुंच तेज़ कर दी है। गांव-गांव और शहर-शहर में महिलाओं को फार्म भरवाए जा रहे हैं, ताकि उन्हें चुनावी वादों के तहत मिलने वाली मुफ़्त सुविधाओं (फ्रीबीज़) का लाभ मिल सके। मुकाबला इतना कड़ा हो गया है कि दोनों खेमे महिलाओं को लुभाने के लिए नकद प्रलोभन को हथियार बना चुके हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू और उसके सहयोगी दल बीजेपी, लोजपा (राम विलास) और हम महिलाओं से मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना का फार्म भरवा रहे हैं। दूसरी ओर, आरजेडी और कांग्रेस कार्यकर्ता महिलाओं को माई-बहन मान योजना में नाम लिखवाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

महिलाओं के वोट के लिए जंग

नीतीश कुमार ने अगस्त के आखिर में यह योजना घोषित की और 7 सितंबर को इसका शुभारंभ भी कर दिया। इसके तहत हर परिवार की एक महिला को आर्थिक सहायता देने का वादा किया गया है। दूसरी तरफ, आरजेडी और कांग्रेस ने अपनी योजना चुनाव जीतने की सूरत में लागू करने का भरोसा दिलाया है।

इस दौड़ में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी शामिल हो गई है। कभी एनडीए और आरजेडी दोनों की लोकलुभावन राजनीति की आलोचना करने वाले पीके अब “परिवार लाभ कार्ड” का वादा कर रहे हैं, जिसके तहत हर परिवार को 20,000 रुपये महीने देने का दावा किया गया है।

नकद हस्तांतरण की होड़

नीतीश कुमार की योजना के मुताबिक, महिलाओं के बैंक खाते में चुनाव से पहले 10,000 रुपये की पहली किस्त सीधे जाएगी और छह महीने बाद अतिरिक्त 2 लाख रुपये मिलेंगे। 40 लाख से अधिक महिलाएं आवेदन कर चुकी हैं और 15 सितंबर के बाद खातों में राशि भेजी जानी है। साइबर कैफे और ऑनलाइन दुकानों में आवेदन कराने वाली महिलाओं की भीड़ साफ दिखाई देती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार के चुनावी इतिहास में महिलाओं के लिए यह सबसे बड़ा नकद प्रलोभन है, जिसे संभावित गेम-चेंजर कहा जा रहा है। हालांकि, यह वोट में तब्दील होगा या नहीं, इस पर संदेह बना हुआ है क्योंकि राज्य में बदलाव की लहर भी साफ दिख रही है।

विपक्ष का पलटवार

आरजेडी और कांग्रेस माई-बहन मान योजना के जरिए हर गरीब महिला को 2,500 रुपये मासिक देने का वादा कर रहे हैं। उनके कार्यकर्ता 8,000 पंचायतों और सैकड़ों कस्बों में फार्म भरवा रहे हैं। जेडीयू और बीजेपी इसे खोखला वादा बताते हुए वित्तीय व्यावहारिकता पर सवाल उठा रहे हैंइसी बीच, प्रशांत किशोर की पार्टी 50 लाख आवेदन इकट्ठा करने का दावा कर रही है।

जाति बनाम नकद योजना

विशेषज्ञ मानते हैं कि चुनावी राजनीति में महिलाओं को नकद देने की रणनीति अब नया सामान्य (न्यू नॉर्मल) बन चुकी है। बीजेपी ने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में, झामुमो ने झारखंड में इसका इस्तेमाल किया। लेकिन बिहार में जाति समीकरण अब भी सबसे बड़ा फैक्टर माना जाता है।

नीतीश कुमार की जेडीयू, जिसने 2020 में सबसे खराब प्रदर्शन किया था, महिलाओं के बीच अपनी पकड़ दोबारा मज़बूत करने की कोशिश में है। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव आधी उम्र में ही महिलाओं को नकद वादों से लुभाकर नीतीश को सीधी चुनौती दे रहे हैं।

महिला वोटरों की ताकत

बिहार में महिलाओं का मतदान प्रतिशत लगातार पुरुषों से अधिक रहा है। 2020 में 59.7% महिलाओं ने वोट डाला, जबकि पुरुषों का प्रतिशत 54.7% रहा। प्रवासी पुरुषों के बाहर रहने से यह अंतर और बढ़ जाता है।राज्य में 3.5 करोड़ महिला मतदाता हैं, यानी आधी आबादी। 2010 से लेकर अब तक नीतीश कुमार महिलाओं के लिए साइकिल योजना, नौकरी में 35% आरक्षण, पंचायतों में 50% आरक्षण और शराबबंदी जैसी नीतियों से मज़बूत आधार बना चुके हैं।

अब देखना यह होगा कि क्या महिलाओं का यह समर्थन नीतीश कुमार को सत्ता में बनाए रखेगा या नकद योजनाएँ और बदलाव की चाहत बिहार को तेजस्वी यादव की ओर मोड़ देंगी।

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