बिहार की राजनीति में वोट चोरी बनाम दस्तावेज़, यह है जमीनी तस्वीर
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द फेडरल देश की टीम ने शेखपुरा, मुंगेर, खगड़िया, भागलपुर, कटिहार, पूर्णिया और अररिया के इलाके का दौरा किया था। उस दौरे में करीब करीब समाज के हर तबके से बातचीत की थी।

बिहार की राजनीति में वोट चोरी बनाम दस्तावेज़, यह है जमीनी तस्वीर

बिहार में लोगों के बीच महागठबंधन के नेता वोट चोर, गद्दी छोड़ को चुनावी हथियार के तौर पर पेश कर रहे हैं। उनकी यह तरकीब जमीन पर कितनी काम कर रही है उसे द फेडरल देश ने समझने की कोशिश की।


Bihar Voter Adhikar Yatra Ground Report: नवंबर के महीने में जब बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे जारी होंगे तो तस्वीर पूरी तरह साफ हो जाएगी कि जीत का सेहरा किसके सिर बंधा। लेकिन उससे पहले महागठबंधन और एनडीए की तरफ से अपनी अपनी जीत के दावे किए जा रहे हैं। वैसे भी सियासत का अपना उसूल है कि जमीन पर हालत कितनी भी पतली क्यों ना हो चेहरे पर मुस्कान बरकरार रहे, बोलने की कला कभी उन्नीस ना हो। इन सबके बीच महागठबंधन की वोटर अधिकार यात्रा चर्चा में है। इस यात्रा को महागठबंधन के नेता यानी राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और दूसरे अन्य नेता गेमचेंजर बता रहे हैं। अब यह कवायद उनकी नजर में क्यों अहम है उसे समझने से पहले यह भी जानना जरूरी है कि इसका आगाज कब हुआ।

17 अगस्त की वो तारीख थी। जगह बिहार का सासाराम। यहीं से महागठबंधन के नेताओं ने आवाज दी कि चुनाव आयोग जिस तरह से वोटर लिस्ट सत्यापन के जरिए दलित, शोषित, वंचित और पिछड़े समाज के साथ अन्याय कर रहा है उससे लड़ने के लिए हम आपके बीच हैं, साथ हैं। आपके हर एक कदम के साथ आगे बढ़ेंगे और वोट चोर, गद्दी छोड़ को जमीनी स्तर पर साकार करेंगे।

यहां बता दें कि इस स्लोगन का इस्तेमाल पहली बार संसद में इंडिया गठबंधन के नेताओं ने की और उसके बाद सड़कों के जरिए यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि ना सिर्फ समाज के वंचित वर्ग की आवाज बुलंद कर रहे हैं, बल्कि केंद्र की सत्ता में बैठी सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर देंगे।

महागठबंधन के इस दावे को परखने के लिए द फेडरल की टीम जमीन पर पहुंची। हमारी टीम ने इस यात्रा के दूसरे चरण यानी शेखपुरा, मुंगेर, भागलपुर,कटिहार, पूर्णिया और अररिया के लोगों के मिजाज को समझने और परखने की कोशिश की। हमारी कोशिश थी कि सवाल ना सिर्फ वोट अधिकार यात्रा बल्कि महागठबंधन की नीति, बिहार के सीएम नीतीश कुमार की छवि, एनडीए की सोच के साथ साथ जन सुराज के प्रशांत किशोर के बारे में किया जाए। हमने इन सभी विषयों को एक एक कर मतदाता या गैर मतदाता के सामने रखा।

इस कड़ी में दे फेडरल की टीम सबसे पहले शेखपुरा के बरबीघा इलाके में पहुंची। बता दें कि बरबीघा में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को भी आना था। लेकिन उप राष्ट्रपति उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी के नामांकन की वजह से वो शामिल नहीं हो सके थे। हालांकि बरबीघा चौक पर प्रमोद नाम के स्थानीय शख्स ने कहा कि "स्पेशल इंटेंसिव रिविजन का विरोध सिर्फ राजनीतिक है। कांग्रेस, आरजेडी और सीपीआईएमल के नाम दलित, वंचित, शोषित के नाम पर सिर्फ राजनीति कर रहे हैं। बात सीधी सी है अगर किसी शख्स से कुछ दस्तावेजों की मांग की जा रही है तो उसे पेश करने में दिक्कत क्या है लेकिन रैली में शामिल महिलाओं (इन महिलाओं के हाथ में प्रवीन सहनी की विकासशी इंसान पार्टी का झंडा था) ने कहा कि वोट चोरी हो रही है, हमारे आरक्षण पर चोट की जा रही है। हम इसे बर्दाश्त कैसे करें। वोटर अधिकार यात्रा के जरिए हमारे वोटर अलख जगा रहे हैं।

ऐसे में हमने एक सवाल पूछा कि आप लोगों का नाम वोटर लिस्ट में है या नहीं, जवाब मिला कि नाम नहीं कटा है, ऐसे में सवाल किया कि फिर विरोध किस बात का। जवाब गोलमोल लेकिन आवाज में नरेंद्र मोदी- अमित शाह के खिलाफ आवाज खनकदार थी। लेकिन बरबीघा के रहने वाले राजेंद्र साव कहते हैं कि उन्हें यह बात नहीं समझ आ रही है कि अगर गलत लोगों का नाम कट रहा है तो आपत्ति क्यों हो रही है, उनके इस जवाब पर हमने सवाल किया इस बात के साक्ष्य कहां है कि जिन लोगों के नाम कटे वो सब गलत हैं, इस पर वो तीखे अंदाज में कहते हैं कि दस्तावेज देने में क्या दिक्कत हैं। सवाल फिर किया महागठबंधन के नेता कहते हैं कि दस्तावेज के लिए समय कम मिला। लेकिन प्रतिवाद करते हुए कहते हैं कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए लोग दस्तावेज हासिल करने के लिए रात दिन एक कर देते हैं, अब वोटरलिस्ट के मुद्दे पर समय की कमी का रोना रो नौटंकी कर रहे हैं।

शेखपुरा का यह मिजाज वोटर अधिकार यात्रा के पहले का था। यात्रा के बाद क्या कुछ बदलाव हुआ उसे भी समझने की कोशिश की। रंजीत कुमार से सवाल वही पुराना था कि यह सब क्या हो रहा है। उन्होंने कहा कि तेजस्वी का तेज कायम है, चुनाव आयोग किसी के इशारे पर उन लोगों के अधिकारों का हनन कर रहा है जो अति पिछड़े हैं। लेकिन रंजीत को काटते हुए चंदन कुमार कहते हैं कि यह सब बकवास है, जो सही हैं उनका वोट है, जिनमें किसी तरह की दिक्कत है उन्हें मौका दिया जा रहा है। हालांकि इन सबके बीच शहबाज नाम के एक शख्स कहते हैं कि हकीकत में मोदी सरकार निरंकुश हो चुकी है। संवैधानिक संस्थाओं को ईमानदारी से काम नहीं करने दिया जा रहा है। जब उनसे पूछा कि आप सीधी सीधी बात बताओ कि सरकार किसकी तो तपाक से बोला तेजस्वी और किसकी। अब शेखपुरा के मिजाज को समझ कर आप अंदाजा लगाइए कि जमीनी तस्वीर कैसी है इन सबके बीच हमारी टीम अपने सफर पर मुंगेर के लिए बढ़ गई।

मुंगेर में हमने कई इलाकों और गांव का दौरा किया। कहीं महागठबंधन समर्थक तो कहीं एनडीए समर्थक मिले। सबके अपने अपने तर्क। कोई महागठबंधन को तो कोई एनडीए को इस दफा बिहार विधानसभा में सत्ता पक्ष वाली सीट पर बैठे देखना चाहते हैं। ऐसे में चुरम्बा के रहने वाले वाहिद कहते हैं कि जनाब इन लोगों ने समाज को हिंदू और मुस्लिम में बांट दिया। हमने सवाल किया कि किन लोगों ने जवाब मिला कि आप लोग ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं सब समझ रहे होंगे। कुछ अधिक कुरेदने पर बीजेपी का नाम लिया। वाहिद के साथ ही साथ शेख मुस्तफा कहते हैं कि सालों साल से हम लोग इस गांव में रहते आए हैं अब चुनाव आयोग कह रहा है कि दस्तावेज लाओ। आखिर इतना कम समय में कैसे लाएं। बीएलओ समय पर आया नहीं। चुनाव आयोग ने आधार को माना नहीं। लेकिन जब हमने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद आधार को 12वां दस्तावेज माना गया है तो उसने कहा कि अब तो साहब देरी हो चुकी है। यहां बता दें कि अल्पसंख्यक बहुल वाले चुरंबा गांव की आबादी 20 हजार है जिसमें 12 हजार मतदाता है।

चुरंबा के बाद हम एक और गांव पहुंचे छोटी महुली। गंगा किनारे बसे इस गांव से ही मौजूदा विधायक पल्लव कुमार (बीजेपी) आते हैं जो यादव समाज से हैं। इस गांव में कैमरे के पीछे तो लोग पल्लव कुमार को बुरा भला कहते आए। हालांकि कैमरे पर पहले कोई बोलने के लिए तैयार नहीं हुआ। काफी मशक्कत के बाद हमारी टीम गंगा के किनारे एक छोटे से मंदिर के पास पहुंची। वहीं शंभू नाम के एक शख्स कहते हैं कि देखिए जी कोई माने या ना माने, बिहार चुनाव में असर पड़े या ना पड़े वोटर सत्यापन लिस्ट मुद्दा बन चुका है। यहां पर हमने बीएलओ के बारे में भी सवाल किया कि क्या वो पैसा ले रहे हैं। इसके जवाब में छोटी महुली में राय बंटी हुई थी। कुछ लोगों ने कहा कि हां पैसा ले रहे हैं, वहीं कुछ ने कहा कि ऐसी बात नहीं है, जनसेवा केंद्र वाले पैसे लेते हैं जो दस्तावेज बनाने की फीस के तौर पर होती है। यानी कि बीएलओ को पैसे देने के मुद्दे पर थोड़ा कंफ्यूजन या भ्रम की स्थिति नजर आई। शेखपुरा की तरह यहां भी लोगों ने कहा कि इसमें दो मत नहीं कि महागठबंधन के नेता स्पेशल इंटेंसिव रिविजन को मुद्दा बनाने में कामयाब रहे हैं। लेकिन बिहार के लोग जातीय खांचे में बंधे हुए जिसे आप भी समझते हैं।

शेखपुरा और मुंगेर की जमीन पर महागठबंधन के नेता वोट अधिकार यात्रा के जरिए यह लोगों को समझाने में कामयाब नजर आ रहे हैं कहीं कुछ नरेंद्र मोदी और अमित शाह के इशारे पर गड़बड़ हो रहा है। महागठबंधन, कानूनी और जनता के बीच इस लड़ाई को जारी रखेगा जब तक 100 फीसद न्याय नहीं मिल जाता। लेकिन सियासी तौर पर या यूं कहें कि बिहार विधानसभा की 243 सीटों में मैजिक नंबर किसके पक्ष में जाएगा यह देखने वाली बात होगी।

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