बिहार में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं 65 लाख मतदाता, पुनरीक्षण का पहला चरण पूरा
x
चुनाव आयोग ने कहा था कि केवल उन्हीं मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट लिस्ट में शामिल किए जाएंगे, जिनके फॉर्म 25 जुलाई तक प्राप्त हो गए।

बिहार में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं 65 लाख मतदाता, पुनरीक्षण का पहला चरण पूरा

हालांकि पहले चरण में 65 लाख नाम हटाए जा सकते हैं, लेकिन अंतिम सूची जो 30 सितंबर को प्रकाशित होगी, उसमें और भी नाम हटाए जा सकते हैं क्योंकि सभी दस्तावेजों की जांच अभी बाकी है।


बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के पहले चरण के समापन पर शुक्रवार को चुनाव आयोग (EC) ने कहा कि राज्य के 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से लगभग 92% नाम 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में बने रहेंगे।

आयोग के अनुसार करीब 8% या लगभग 65 लाख नाम ड्राफ्ट लिस्ट से हटाए जा सकते हैं, क्योंकि ये या तो मृत पाए गए, एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत थे, स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं या फिर अज्ञात हैं।

चुनाव आयोग ने बताया कि 7.23 करोड़ मतदाताओं ने अपने फॉर्म जमा किए हैं। इनमें से लगभग 22 लाख की मृत्यु हो चुकी थी, लगभग 7 लाख एक से अधिक स्थानों पर दर्ज थे, और लगभग 35 लाख स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं या उन्हें खोजा नहीं जा सका। यह कुल मतदाताओं का 99.8% है। आयोग ने बताया कि शुक्रवार शाम तक 1.2 लाख मतदाताओं के फॉर्म प्राप्त नहीं हुए थे।

चुनाव आयोग ने एक बयान में कहा, “7.23 करोड़ मतदाताओं के फॉर्म प्राप्त कर लिए गए हैं और डिजिटाइज कर लिए गए हैं; इन सभी के नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल किए जाएंगे। शेष मतदाताओं के फॉर्म और बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) की रिपोर्ट्स का डिजिटाइजेशन 1 अगस्त तक पूरा कर लिया जाएगा।”

आयोग ने कहा कि जिन लोगों ने अपने फॉर्म जमा नहीं किए, या जो मृत अथवा पलायन कर गए पाए गए हैं, उनकी सूची 12 राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टियों को भेज दी गई है।

हालांकि पहले चरण में 65 लाख नाम हटाए जा सकते हैं, लेकिन अंतिम सूची जो 30 सितंबर को प्रकाशित होगी, उसमें और भी नाम हटाए जा सकते हैं क्योंकि सभी दस्तावेजों की जांच अभी बाकी है। जिनके नाम ड्राफ्ट में नहीं आए हैं, वे 1 अगस्त से 1 सितंबर के बीच दावे और आपत्तियां चरण में आवेदन कर सकते हैं।

आयोग ने कहा, “पहले चरण की सफल पूर्णता का श्रेय बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO), 38 जिला निर्वाचन अधिकारियों (DEOs), 243 निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (EROs), 2,976 सहायक EROs, 77,895 मतदान केंद्रों पर तैनात BLOs, स्वयंसेवकों, 12 राजनीतिक दलों, उनके 38 जिला अध्यक्षों और 1.60 लाख बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) को जाता है।”

SIR आदेश के अनुसार, 1 अगस्त से 1 सितंबर के बीच कोई भी मतदाता या राजनीतिक दल निर्धारित फॉर्म भरकर पात्र मतदाताओं को जोड़ने या अपात्रों को हटाने के लिए ERO को आवेदन दे सकता है।

चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सत्यापन अभियान की घोषणा की थी। राज्य में विधानसभा चुनाव इस साल के अंत में होने हैं। EC के कार्यक्रम के अनुसार, सभी मौजूदा मतदाताओं को 25 जून से 25 जुलाई के बीच नामांकन फॉर्म जमा करने थे। आयोग ने कहा था कि केवल उन्हीं मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट लिस्ट में शामिल किए जाएंगे, जिनके फॉर्म 25 जुलाई तक प्राप्त हो गए।

जो मतदाता 1 जनवरी 2003 के बाद जोड़े गए हैं, उन्हें मतदाता बनने की पात्रता—जैसे उम्र और नागरिकता—साबित करने के लिए आयोग द्वारा तय 11 दस्तावेजों में से एक प्रस्तुत करना होगा।

हालांकि 24 जून के आदेश में स्पष्ट किया गया था कि दस्तावेजों को फॉर्म के साथ जमा करना होगा, EC ने 6 जुलाई को स्पष्ट किया कि दस्तावेज “क्लेम्स एंड ऑब्जेक्शन्स” चरण में भी दिए जा सकते हैं।

इस प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। आलोचकों का कहना है कि इस प्रक्रिया में मतदाताओं पर अपनी पात्रता साबित करने की ज़िम्मेदारी डाल दी गई है, जबकि EC का नया फॉर्म-6 नागरिकता प्रमाण मांगता ही नहीं है—सिर्फ एक घोषणा पत्र होता है कि व्यक्ति भारतीय नागरिक है।

विपक्षी दलों ने इस कदम का विरोध किया है, इसे मतदाताओं को सूची से हटाने की कोशिश करार दिया है।

बुधवार को RJD नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि उनकी पार्टी इस प्रक्रिया के विरोध में चुनाव का बहिष्कार करने पर विचार कर सकती है, वहीं कांग्रेस ने कहा कि “सभी विकल्प खुले हैं”।

मीडिया रिपोर्ट्स बता रही हैं कि SIR प्रक्रिया ने बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक समुदायों और यहां तक कि सवर्णों में भी बेचैनी पैदा की है। यह बेचैनी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के क्षेत्र नालंदा और RJD प्रमुख लालू प्रसाद के राघोपुर से लेकर मुस्लिम बहुल सीमांचल तक देखी गई।

Read More
Next Story