योगी आदित्यनाथ की अग्निपरीक्षा! यूपी का मिल्कीपुर उपचुनाव इतना क्यों है अहम
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योगी आदित्यनाथ की अग्निपरीक्षा! यूपी का मिल्कीपुर उपचुनाव इतना क्यों है अहम

Yogi Adityanath: क्या बीजेपी अपनी पकड़ बरकरार रख पाएगी या सपा जीत हासिल करने के लिए जातिगत समीकरणों का फायदा उठाएगी? इस लेख से जानने की कोशिश करते हैं.


Milkipur by-election: द फेडरल के कैपिटल बीट के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान और हिंदुस्तान टाइम्स की सलाहकार संपादक सुनीता एरन ने उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में मिल्कीपुर उपचुनाव पर चर्चा करने के लिए होस्ट नीलू व्यास के साथ चर्चा की. 5 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के साथ होने वाला यह उपचुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए महत्वपूर्ण है. पैनल ने इस बात पर चर्चा की कि क्या भाजपा इस सीट पर फिर से कब्ज़ा कर सकती है या उसे आगे और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

मिल्कीपुर का राजनीतिक महत्व

शरद प्रधान ने कहा कि मिल्कीपुर सिर्फ़ एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं है, बल्कि अयोध्या में भाजपा की कहानी का प्रतीक है. यहां हारना योगी आदित्यनाथ की राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर प्रतिष्ठा को बड़ा झटका दे सकता है. ऐतिहासिक रूप से मिल्कीपुर भाजपा का गढ़ नहीं रहा है. यहां जीत केवल 1991 और 2017 में प्रमुख राजनीतिक लहरों के दौरान ही हासिल हुई थी. मिल्कीपुर में हार भाजपा के वर्चस्व की कहानी को और भी कमजोर कर सकती है. खासकर पिछले आम चुनाव के दौरान अयोध्या में मिली असफलताओं के बाद.

भाजपा के लिए चुनौतियां

सुनीता एरन ने बताया कि यह उपचुनाव भाजपा के लिए अपनी चुनौतियों के साथ आता है. जातिगत गतिशीलता और अयोध्या में हाल ही में हुई असफलताएं इसे पार्टी के लिए एक कठिन युद्धक्षेत्र बनाती हैं. जबकि भाजपा पिछले उपचुनावों में नौ में से सात सीटें जीतने में सफल रही, मिल्कीपुर की जनसांख्यिकीय संरचना - जिसमें महत्वपूर्ण दलित और पिछड़े समुदाय की उपस्थिति शामिल है - एक अनूठी चुनौती पेश करती है. प्रधान ने कहा कि अवदेश प्रसाद के बेटे को मैदान में उतारने का सपा का फैसला इस मतदाता आधार को छूता है. लेकिन इससे वंशवादी राजनीति के कारण होने वाले विरोध का भी खतरा है.

चुनाव के आरोप और रणनीति

दोनों पैनलिस्टों ने चुनाव की निष्पक्षता को लेकर चिंताएं जताईं. जिस तरह से चुनाव आयोग ने मिल्कीपुर उपचुनाव में देरी की, उससे सवाल उठते हैं. प्रधान ने कहा कि भाजपा द्वारा प्रशासनिक मशीनरी का कथित दुरुपयोग विवाद का विषय है. एरन ने जोर देकर कहा कि कुन्दरकी जैसे पिछले उपचुनावों में देखा गया मतदाता दमन और पक्षपातपूर्ण प्रबंधन, यहां भी मुद्दा बन सकता है. अखिलेश यादव द्वारा अंतरराष्ट्रीय मीडिया को चुनाव पर नज़र रखने का आह्वान इन चिंताओं का सीधा जवाब है.

भाजपा में तनाव

प्रधान ने भाजपा के भीतर आंतरिक कलह का उल्लेख करते हुए कहा कि योगी आदित्यनाथ और अमित शाह के बीच कथित शीत युद्ध ने जटिलता की एक और परत जोड़ दी है. इस उपचुनाव का इस्तेमाल पार्टी के भीतर योगी के भविष्य के लिए बैरोमीटर के रूप में किया जा सकता है. एरन ने इसे दोहराते हुए कहा कि दिल्ली का केंद्रीय नेतृत्व इस चुनाव में योगी का पूरी तरह से समर्थन नहीं कर सकता है. क्योंकि उन्हें लखनऊ से बाहर स्थानांतरित करने की अटकलें बढ़ रही हैं.

जातिगत राजनीति

मिल्कीपुर में जाति की राजनीति एक निर्णायक भूमिका निभाने की उम्मीद है. प्रधान ने कहा कि दलित और पिछड़े समुदाय कथित तौर पर भाजपा की नीतियों से मोहभंग हो गए हैं. एरन ने कहा कि अंबेडकर की विरासत और जाति जनगणना के मुद्दों पर सपा का ध्यान रणनीतिक रूप से इन मतदाताओं को लामबंद करने के उद्देश्य से है. प्रधान के अनुसार कि मिल्कीपुर के उपचुनाव पर न केवल इसके परिणाम के लिए बल्कि उत्तर प्रदेश की उभरती राजनीतिक गतिशीलता के बारे में इसके संकेतों के लिए भी बारीकी से नज़र रखी जाएगी.

एरन ने निष्कर्ष निकाला कि भाजपा के लिए, यह उसके शासन और हिंदुत्व रणनीति की परीक्षा है. सपा के लिए, यह हाशिए के समूहों के बीच अपने आधार को मजबूत करने का अवसर है. जैसे-जैसे मतदान का दिन नज़दीक आ रहा है, मिल्कीपुर में दांव बढ़ते जा रहे हैं. चुनाव का परिणाम न केवल निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि को निर्धारित करेगा, बल्कि उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों को भी नया रूप दे सकता है, जिससे यह योगी आदित्यनाथ और उनकी पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण पल बन जाएगा.


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