निकाय चुनाव 2025, क्या बदल पाएगी बीजेपी केरल का समीकरण?
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निकाय चुनाव 2025, क्या बदल पाएगी बीजेपी केरल का समीकरण?

केरल निकाय चुनाव में बीजेपी तिरुवनंतपुरम और त्रिशूर जीतने को बेताब है, लेकिन आंतरिक विवाद, प्रवासी राजनीति और विपक्षी हमले बड़ी चुनौती बने हैं।


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जब नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तब केरल के बीजेपी नेताओं ने एक बड़ा दावा किया था। उन्होंने कहा था कि अगले साल जब मोदी तिरुवनंतपुरम आएंगे, तो उनका स्वागत शहर के महापौर करेंगे — और वह महापौर बीजेपी का होगा। यह अधिकार परंपरागत रूप से नगर निगम के मेयर को ही मिलता रहा है। साफ था कि बीजेपी तिरुवनंतपुरम कॉर्पोरेशन पर नियंत्रण हासिल करने को लेकर बेहद उत्सुक थी।

2015 के स्थानीय स्वशासन (एलएसजी) चुनावों में बीजेपी ने यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के वर्चस्व को तोड़ा और निगम में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि, सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने बहुमत न होते हुए भी मेयर पद अपने पास बनाए रखा।2020 के चुनावों में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने अपनी स्थिति और मज़बूत कर ली, जबकि बीजेपी 100 में से 35 सीटें बरकरार रखने में सफल रही। कांग्रेस की स्थिति और भी कमजोर हो गई।

बीजेपी ने बदला चुनावी अंदाज़

इस बार राजधानी पर कब्ज़ा करने के लिए बीजेपी ने अन्य मोर्चों से पहले ही अपनी चुनावी मुहिम शुरू कर दी है। बुधवार (24 सितंबर) को पार्टी ने राज्यव्यापी घर-घर संपर्क कार्यक्रम के साथ एलएसजी चुनाव अभियान का आगाज़ किया। इसे बीजेपी के राज्य अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने तिरुवनंतपुरम के राजाजी नगर कॉलोनी की बस्तियों का दौरा कर शुरू किया।

राजीव चंद्रशेखर, जो पूर्व केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, ने कहा "पिछले सात दशकों से सत्ता यूडीएफ और एलडीएफ के बीच घूमती रही है। लोग अब लगातार 10 वर्षों से एलडीएफ शासन से ऊब चुके हैं। वे बदलाव चाहते हैं और हम उनके सामने विकल्प पेश कर रहे हैं — एक विकसित केरल।"

प्रवासी मज़दूरों पर नज़र

बीजेपी इस बार प्रवासी मज़दूरों को भी अपने अभियान का हिस्सा बनाने की योजना बना रही है। केरल की अर्थव्यवस्था में दूसरे राज्यों से आए प्रवासी कामगार अहम भूमिका निभाते हैं। अनुमान है कि राज्य में लगभग 30 लाख प्रवासी मज़दूर रहते हैं। इन्हीं को ध्यान में रखते हुए केरल बीजेपी पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, उत्तर प्रदेश और बिहार की पार्टी इकाइयों के साथ मिलकर प्रवासी बस्तियों का नक्शा तैयार कर रही है।

राज्य अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने केरल में शुरू किए गए चुनावी अभियान को पार्टी का अब तक का सबसे बड़ा घर-घर संपर्क कार्यक्रम बताया। महज़ एक महीने पहले तक बीजेपी का मनोबल चरम पर था। पार्टी आत्मविश्वास से कह रही थी कि वह 50 से अधिक ग्राम पंचायतों, 10 से 20 नगरपालिकाओं और तीन नगर निगमों में जीत दर्ज करेगी। खासकर तिरुवनंतपुरम और त्रिशूर को लगभग पक्की जीत माना जा रहा था।

चुनौतियों से घिरती बीजेपी

लेकिन लगातार उठे विवादों ने इस जोश को ठंडा कर दिया। तिरुवनंतपुरम में एक मौजूदा पार्षद की आत्महत्या ने पार्टी को गहरा झटका दिया।पिछले हफ्ते बीजेपी पार्षद के. अनिल कुमार, जो तिरुवनंतपुरम निगम के थिरुमला वार्ड का प्रतिनिधित्व करते थे, अपने वार्ड कार्यालय में फांसी पर लटके मिले। पुलिस को एक नोट मिला जिसमें उन्होंने वल्यसाला फार्म सोसायटी (एक सहकारी संस्था जिससे वे जुड़े थे) के वित्तीय संकट को लेकर अपनी पीड़ा जताई। रिपोर्टों के मुताबिक, इस संस्था पर लगभग 6 करोड़ रुपये का कर्ज था।

राजीव चंद्रशेखर ने फिर दोहराया कि लोग सात दशकों से यूडीएफ और एलडीएफ के बीच बदलते शासन से ऊब चुके हैं और लगातार 10 साल से एलडीएफ को झेल रहे हैं। उनका कहना था कि जनता बदलाव चाहती है और बीजेपी उन्हें "विकसित केरल" का विकल्प दे रही है।

पार्टी पर लापरवाही के आरोप

आत्महत्या के पीछे यह भी सामने आया कि अनिल कुमार ने अपने परिचितों को वित्तीय मदद दी थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व से पर्याप्त सहयोग नहीं मिला। इस घटना ने राजनीतिक तूफ़ान खड़ा कर दिया। सीपीआई(एम) ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने एक प्रतिनिधि की अनदेखी और निष्क्रियता दिखाई है और पार्टी नेतृत्व को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।

बीजेपी ने इन आरोपों से इनकार किया। राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि पार्टी ने पार्षद को कभी नहीं छोड़ा। इसके उलट, बीजेपी ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह अनिल कुमार की मौत का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है। बावजूद इसके, यह मामला पार्टी कार्यकर्ताओं के आत्मविश्वास को हिला गया और अभियान की शुरुआती रफ्तार पर पानी फेर दिया। कई कार्यक्रम, जिनमें युवा मोर्चा का मैराथन आयोजन भी शामिल था, स्थगित करने पड़े।

आंतरिक मतभेद भी चुनौती

केवल बाहरी विवाद ही नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर के मतभेद भी बीजेपी की तैयारियों पर साया डाल रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा विवाद सामने आया है केरल में प्रस्तावित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की लोकेशन को लेकर।इससे साफ है कि बीजेपी को चुनावी जोश बनाए रखने के साथ-साथ अपने आंतरिक मुद्दों और संकटों से भी जूझना होगा।

एम्स को लेकर खींचतान

केरल में आगामी स्थानीय निकाय (LSG) चुनाव से पहले बीजेपी की रणनीति लगातार विवादों में घिरती जा रही है। तिरुवनंतपुरम, अलपुझा और कासरगोड के नेता अपने-अपने जिलों में एम्स (AIIMS) की स्थापना की मांग कर रहे हैं। इस मुद्दे ने पार्टी के भीतर सार्वजनिक खींचतान का रूप ले लिया है। जो उपलब्धि बीजेपी दिखा सकती थी, वही अब गुटबाज़ी का सबूत बनती जा रही है।

सुरेश गोपी पर सवाल

पार्टी के इकलौते सांसद और केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी भी अपने बेतरतीब अंदाज़ और विवादास्पद बयानों के चलते चिंता का कारण बने हुए हैं। उनके जनसंपर्क कार्यक्रमों में गाँवों का दौरा और नालों की समस्याओं पर चर्चा शामिल थी, लेकिन विवाद तब खड़ा हुआ जब उन्होंने दो बुजुर्ग नागरिकों से ज्ञापन लेने से इनकार कर दिया और कथित तौर पर उनका मज़ाक उड़ाया। मौके का फ़ायदा उठाते हुए सीपीआई(एम) ने एक बुजुर्ग को घर और दूसरे के बैंक कर्ज की समस्या का समाधान करके राजनीतिक बढ़त बना ली।

संगठनात्मक अनुशासन की चुनौती

बीजेपी का लक्ष्य अपने पारंपरिक प्रभाव क्षेत्रों से आगे बढ़ना है, लेकिन इसके लिए संगठनात्मक अनुशासन और जनविश्वसनीयता दोनों ज़रूरी हैं। मौजूदा विवादों ने पार्टी की अनुशासित छवि को नुकसान पहुँचाया है और कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर किया है।

पार्टी चुनावी समीकरण मज़बूत करने के लिए प्रवासी मज़दूरों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। अनुमान है कि केरल में लगभग 30 लाख प्रवासी मज़दूर रहते हैं। बीजेपी पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, उत्तर प्रदेश और बिहार की इकाइयों के साथ मिलकर प्रवासी समूहों की मैपिंग कर रही है। विपक्ष का आरोप है कि इस कवायद के जरिए मतदाता सूची में गड़बड़ी की जा सकती है।

सीपीआई(एम) नेता हबीब तनवीर (त्रिशूर) ने कहा, “हम अपने विधानसभा क्षेत्र में कड़ी निगरानी रखते हैं। यहाँ बीजेपी किसी को बिना वैध दस्तावेज़ के मतदाता सूची में शामिल नहीं कर पाई, लेकिन अन्य इलाकों में जहां प्रवासी बड़ी संख्या में रहते हैं, स्थिति अलग हो सकती है।”

2020 के चुनाव और बीजेपी की बढ़त

2020 के LSG चुनावों में बीजेपी ने 941 ग्राम पंचायतों में से 10 पर और पलक्कड़ व पंडालम नगरपालिकाओं पर कब्ज़ा किया था। कोल्लम और तिरुवनंतपुरम निगमों में पार्टी दूसरे स्थान पर रही। सबरीमला आंदोलन के बाद पंडालम नगर पालिका में बीजेपी की जीत को सबसे बड़ी उपलब्धि माना गया।

बदलते समीकरण

लेकिन इस बार समीकरण उतने अनुकूल नहीं लग रहे। नायर सर्विस सोसाइटी (NSS) और श्री नारायण धर्म परिपालना योगम (SNDP) जैसी प्रमुख सामाजिक संस्थाएँ हाल ही में आयोजित ग्लोबल अयप्पा कॉन्क्लेव के बाद एलडीएफ के करीब आ गई हैं। NSS महासचिव जी. सुкуमारन नायर ने खुले तौर पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों की आलोचना की। ऐसे में पंडालम में बीजेपी की पकड़ बनाए रखना आसान नहीं होगा।

अहम मुकाबले: तिरुवनंतपुरम और त्रिशूर

तिरुवनंतपुरम और त्रिशूर निगम बीजेपी के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। ये शहर पार्टी की शहरी राजनीति में पैठ के लिए प्रवेश द्वार हो सकते हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में त्रिशूर से सुरेश गोपी की जीत और तिरुवनंतपुरम निगम में लंबे समय से सत्ता में रही सीपीआई(एम) के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी माहौल बीजेपी को नई उम्मीद दे रहा है।

पार्टी ने पिछले दो चुनावों में कांग्रेस को पीछे छोड़कर मुख्य विपक्ष की भूमिका हासिल की थी। इस बार वह दोनों निगम जीतने को लेकर गंभीर संभावना देख रही है।

ईसाई समुदाय और सामाजिक इंजीनियरिंग

निगमों, ग्राम पंचायतों और नगरपालिकाओं में जीत न केवल बीजेपी की राजनीतिक स्वीकार्यता बढ़ाएगी, बल्कि यह उसके सामाजिक इंजीनियरिंग प्रयासों की भी परीक्षा होगी, खासकर ईसाई समुदाय को अपने साथ लाने की। हालांकि जुलाई 2025 में छत्तीसगढ़ की घटना जिसमें दो ननों को धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोप में विश्व हिंदू परिषद की शिकायत पर रेलवे स्टेशन पर रोका गया इस रणनीति के लिए झटका साबित हुई है।

इस पृष्ठभूमि में 2025 के LSG चुनाव बीजेपी के लिए सिर्फ़ ग्रामीण स्तर पर ताक़त का इम्तिहान नहीं होंगे, बल्कि यह भी तय करेंगे कि क्या वह राष्ट्रीय स्तर की गति को केरल की स्थानीय राजनीति में स्थायी प्रभाव में बदल सकती है।

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