संघ से बनी दूरी बीजेपी के लिए हुई घातक, कुछ कैंडिडेट्स पर नहीं थी सहमति
x

संघ से बनी दूरी बीजेपी के लिए हुई घातक, कुछ कैंडिडेट्स पर नहीं थी सहमति

आम चुनाव 2024 में यूपी के नतीजे बीजेपी को हैरान करने वाले हैं. ऐसा माना जाता है कि संघ कई उम्मीदवारों के नाम पर असहमत था और उसका असर नजर भी आया


BJP Defeat In Uttar Pradesh: आम चुनाव 2024 में वैसे तो बीजेपी का प्रदर्शन पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब में अच्छा नहीं रहा. लेकिन चर्चा उत्तर प्रदेश की होती है. दरअसल सिर्फ हरियाणा, राजस्थान और पंजाब की सीटों को जोड़े तो वो संख्या 80 नहीं होती. पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र की सीटों को जोड़े तो वो 90 होती हैं लेकिन उसमें दो राज्यों का मेल है. अगर बात यूपी की करें तो बीजेपी के खाते में सिर्फ 33 सीट आई है जो 2019 की आधी है. ऐसा कहा जा रहा है कि अगर बीजेपी ने सूझबूझ के साथ 25 सीटों पर उम्मीदवार बदले होते तो नतीजा कुछ और रहता. इस तरह की भी खबरें हैं कि बीजेपी ने संघ के सुझावों को दरकिनार कर दिया.

इस वजह से संघ ने बना ली दूरी
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक संघ को प्रतापगढ़,जौनपुर, सीतापुर, बस्ती, अंबेडकरनगर, कौशांबी, कानपुर, रायबरेली के उम्मीदवार पर असहमति थी. लेकिन उसे दरकिनार कर दिया गया. यही नहीं जिस तरह से चुनाव से पहले दूसरे दलों से नेता बीजेपी में शामिल हो रहे थे उसे लेकर भी संघ सहज नहीं था.संघ का मानना था कि ना सिर्फ इससे गुटबाजी बढ़ रही है बल्कि जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता उदासीन थे. उदाहरण के लिए जौनपुर से कृपाशंकर सिंह को लेकर बीजेपी कार्यकर्ता ही सहज नहीं थे. उनका मानना था कि चुनाव के पहले पैराशूट की मदद से कैंडिडेट को उतार दिया गया. ऐसे हालात में संघ सक्रिय नहीं हुआ. इसके साथ ही इस दफा बीजेपी का बूथ प्रबंधन सिर्फ कागजों पर नजर आयाय 2014 और 2019 के चुनाव में संघ से जुड़े लोगों वोटर्स को समझाने का काम करते थे. बूथों तक ले जाने का काम करते थे. लेकिन इस दफा वो प्रबंधन नजर नहीं आया.

जमीन पर सुस्त नजर आया बीजेपी कैडर
इसके साथ ही जिस तरह से बीजेपी ने कुछ क्षेत्रीय और जिला अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर भी संघ खुश नहीं था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गोरक्ष और काशी क्षेत्र में कुछ नामों को लेकर संघ को आपत्ति थी और उसका असर वाराणसी के साथ साथ कई लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत में कमी के तौर पर देखी गई, इसके अलावा बीजेपी की बूथ कमेटियों के अध्यक्ष और पन्ना प्रमुखों के उत्साह में भी कमी नजर आई. पहले संघ के कार्यकर्ता जमीन पर सरकार की योजनाओं के बारे में जानकारी देते थे. लेकिन इस दफा समन्वय की कमी बीजेपी पर भारी पड़ गई. पहले मतदान से ठीक पहले घरों तक चुनावी पर्चियां पहुंच जाया करती थीं. लेकिन इस दफा ऐसा नहीं हो सका. यही नहीं बीजेपी ने इस दफा हर लोकसभा के लिए प्रभारियों की नियुक्ति की थी वो बाहरी थे. उन्हें ना तो इलाके के बारे में ना ही स्थानीय मुद्दों की जानकारी थी और इस वजह से भी मतदाताओं के साथ संवाद स्थापित नहीं हो सका.

Read More
Next Story