होली पर नफरती बोली : सस्ते प्रचार की चाह या कोई छिपा एजेंडा?
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होली पर नफरती बोली : सस्ते प्रचार की चाह या कोई छिपा एजेंडा?

यूपी की बीजेपी विधायक केतकी सिंह मेडिकल कॉलेज में मुसलमानों के लिए अलग विंग की मांग करके सुर्खियों में आ गई हैं। आखिर इस बयान की पूरी इनसाइड स्टोरी क्या है?


आप केतकी सिंह के बारे में एक दिन पहले तक कितना जानते थे? दिमाग पर जोर डालकर देखिए, मुमकिन है कि आपको याद नहीं आएगा कि इससे पहले आपने केतकी सिंह का नाम कभी सुना भी था।

लेकिन एक जहरीला बयान देकर वह इस कदर सुर्खियों में आ गई हैं कि अब सब लोग उन्हें जानने लगे हैं। वह टीवी, अखबारों से लेकर सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं।

कौन हैं केतकी सिंह?

केतकी सिंह उत्तर प्रदेश में बीजेपी की विधायक हैं। बलिया जिले की बांसडीह सीट से वो चुनकर आई हैं। लेकिन उनकी ऐसी कोई उपलब्धि नहीं है कि प्रचँड बहुमत वाली यूपी सरकार में उनकी अपनी कोई अलग पहचान बन पाती। तो इसके लिए एक शॉर्टकट अपनाया गया और वो है मुसलमानों के खिलाफ जहरीली बयानबाजी।

बीजेपी विधायक केतकी सिंह ने बाकायदा मीडिया के कैमरों पर कहा बलिया में बन रहे मेडिकल कॉलेज में मुसलमानों के लिए अलग विंग या बिल्डिंग बनाई जानी चाहिए, ताकि हिंदू समुदाय सुरक्षित महसूस कर सके। केतकी सिंह ने कहा कि अगर मुसलमानों को हिंदुओं के त्योहारों से दिक्कत है तो हो सकता है कि उन्हें हमारे साथ इलाज कराने में भी दिक्कत होने लगे।

शपथ भूल गईं केतकी सिंह

आपको ताज्जुब होगा कि ये बयान एक निर्वाचित विधायक का है.जिसने कि निर्वाचित होने के बाद पहली बार विधानसभा में प्रवेश करते समय संविधान की शपथ ली हुई है। उस संविधान की, जिसमें कहा गया है कि वो जनप्रतिनिधि। किसी के साथ धर्म, संप्रदाय, भाषा या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा जिसकी शपथ लेते हुए विधायक ने कहा कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा या रखूंगी।

आखिर धार्मिक विद्वेष बढ़ाने वाला बयान देने से पहले केतकी सिंह ने संविधान के प्रति जताई गई अपनी श्रद्धा और निष्ठा को किस खूंटी पर टांग दिया? लेकिन सवाल सिर्फ केतकी सिंह का नहीं है। सवाल उस सोच का है, उस राजनीति का है, जो ऐसे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को ऐसे भड़काऊ बयानों के लिए जाने-अनजाने प्रोत्साहित कर रही है। उन्हें डपटने के बजाय उनकी पीठ थपथपा रही है।

केतकी को कहां से मिली ताकत?

संभल के सीओ अनुज चौधरी का किस्सा तो आपको पता ही होगा। वो तो सरकारी अधिकारी हैं। उनकी पहली जिम्मेदारी कानून व्यवस्था को बनाए रखने की है। लेकिन वही सीओ अनुज चौधरी कह बैठे कि-होली का दिन साल में एक बार आता है, जबकि जुमा साल में 52 बार आता है. अगर किसी को लगता है कि होली के रंग से उसका धर्म भ्रष्ट होता है तो वह उस दिन घर से ना निकले.

आप यकीन कर पाएंगे ऐसा कहने वाला एक खाकी वर्दी वाला अफसर है? वो वर्दी वाला अफसर जिसकी निष्ठा किसी राजनीतिक दल के प्रति नहीं, बल्कि कानून के प्रति होनी चाहिए। संविधान के प्रति होनी चाहिए। वो अपनी निजी धार्मिकता की नुमाइश करके खुद ही उकसाने वाला बयान दे रहा है।

क्या सिर्फ चर्चा में आना मकसद?

तो चाहे वी बीजेपी विधायक केतकी सिंह हों या संभल के सीओ अनुज चौधरी हों, ऐसे विभाजनकारी और वैमनष्य बढ़ाने वाले बयान देने के पीछे इनका मकसद क्या रहा होगा? क्या ये बयान किसी सुनियोजित तरीके से दिए गए होंगे? या इन्होंने सिर्फ सुर्खियों में रहने के लिए ऐसी बयानबाजी की होगी?

केतकी सिंह चूंकि एक अनजाना चेहरा हैं तो हो सकता है कि उन्होंने खुद को चर्चा में लाने के लिए ऐसी कोशिश की हो, लेकिन ये भी संभव है कि उनसे ऐसा बयान सोची समझी रणनीति के तहत दिलवाया गया हो। संभल के सीओ अनुज चौधरी की भी सुर्खियां बटोरने की भूख किसी से छिपी नहीं है।

लेकिन जब कोई चुना हुआ विधायक या कोई सरकारी अधिकारी ऐसे बयान देता है तो वो सिर्फ उन्हीं के बयान मान लेना, भूल होगी। विधायक एक राजनीतिक आदमी है तो हो सकता है कि इसका उसने फायदा उठा लिया हो लेकिन किसी सरकारी अफसर की और वो भी वर्दीधारी अफसर की तो बहुत सी लक्ष्मण रेखाएं होती हैं।

सीओ और विधायक को किसका संरक्षण?

अब बड़ा सवाल ये उठता है कि चाहे वो संभल के सीओ अनुज चौधरी हों या बलिया जिले से बीजेपी की विधायक केतकी सिंह हों, इन जैसे लोगों को ताकत कहां से मिल रही है? इनका हौसला कौन बढ़ा रहा है? इनको संरक्षण कहां से मिल रहा है? तो ये समझने के लिए हमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान सुनना और समझना जरूरी है।

अपने बड़बोड़े पुलिस अधिकारी के बयान का संज्ञान लेने, उसे डपटने या उसके खिलाफ एक्शन लेने के बजाय वो खुद सीओ अनुज चौधरी की बात का समर्थन करते हुए दिखे। बोले कि वो हमारा पुलिस अधिकारी है, वो पहलवान रहा है. अब पहलवानी के लहजे में बोलेगा तो कुछ लोगों को बुरा लग सकता है।

कुछ लोगों को बुरा लग सकता है मतलब? और बुरा क्यों नहीं लगना चाहिए? कोई पुलिस अफसर ऐसे भड़काऊ बयान दे और सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग उसे डपटने के बजाय उसकी तारीफों के पुल बांधने लगें तो किसी भी जिम्मेदार नागरिक को बुरा लगना चाहिए। संविधान की शपथ तो योगीजी ने भी ली हुई है।

उसके प्रति आस्था और निष्ठा उन्होंने भी जताई हुई है। बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो किसी के साथ धर्म, संप्रदाय, भाषा या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव नहीं करने की बाकायदा शपथ ली हुई है।

क्या ये स्टेट पॉलिसी का हिस्सा है?

अब सवाल ये है कि ये जो वैमनष्य फैलाने वाली बयानबाजी का पैटर्न दिख रहा है, ये क्या कहता है? क्या ये किसी खास राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है? आखिर वो क्या वजह है कि सरकार में बैठे लोग ही माहौल खराब करने वाला बयान दे रहे हैं? और सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों से उनको दाद मिल रही है?

सवाल तो ये भी है कि क्या किसी मुख्यमंत्री को समाज को बांटने वाले बयान देने वाले लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए? उनकी पीठ थपथपानी चाहिए? वरना किसी अधिकारी की ऐसी मजाल नहीं हो सकती कि वो वर्दी पहनकर इस तरह के नफरत फैलाने वाले बयान दे?

अगर वो ऐसा कर रहा है तो क्या ये माना जाए कि ये स्टेट पॉलिसी का हिस्सा है। मतलब सरकार का अपना हिडन एजेंडा है? अगर ये कोई राजनीतिक एजेंडा है तो इससे सिर्फ माहौल खराब ही होगा। किसी भी सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी देश या प्रदेश में सौहार्द बनाए रखने की होती है, लेकिन अगर सरकार की सौहार्द बिगाड़ने में लिप्त हो जाए तो फिर किससे उम्मीद करें।

अभी भी समय है, ऐसी नफरती बयानबाजियों पर, चाहे वो पुलिस अफसर दे रहा हो या कोई विधायक दे रहा हो, सख्ती दिखानी जरूरी है। अगर इनको नजरअंदाज कर दिया गया तो ऐसे लोगों का हौसला बढ़ेगा। अभी तो अनुज चौधरी या केतकी सिंह ही सुर्खियों में है, कल को ऐसे विभाजनकारी बयानों की होड़ मच जाएगी। क्या ये किसी राज्य और उसके नागरिकों के हित में होगा? कतई नहीं...। इस देश ने अतीत में भी भाईचारा बिगड़ने की बड़ी कीमत चुकाई है। इतिहास से इतना सबक तो लिया ही जा सकता है।

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