भगवान राम से मुरुगन तक: क्या तमिलनाडु में बीजेपी की रणनीति लाएगी रंग?
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भगवान राम से मुरुगन तक: क्या तमिलनाडु में बीजेपी की रणनीति लाएगी रंग?

तमिलनाडु में बीजेपी की मुरुगन केंद्रित रणनीति एक नई दिशा की ओर इशारा करती है। लेकिन यह राज्य की गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को चुनौती देती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में ये रणनीतियां किस हद तक प्रभावी होती हैं।


तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपनी चुनावी स्थिति सुधारने के लिए एक नई धार्मिक रणनीति अपना रही है। पार्टी ने अयोध्या राम मंदिर के मुद्दे से आगे बढ़ते हुए तमिल संस्कृति से जुड़ी भगवान मुरुगन को अपनी राजनीति का केंद्र बनाने का निर्णय लिया है। यह कदम राज्य में बीजेपी की पहचान को मजबूत करने और तमिल हिंदुत्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।

बीजेपी की रणनीति

राजनीतिक विश्लेषक आर. रंगराज के अनुसार, भगवान राम और अयोध्या मंदिर का मुद्दा तमिलनाडु में ज्यादा प्रभावी नहीं रहा। इसके विपरीत भगवान मुरुगन तमिल संस्कृति और भक्ति में गहरे रूप से निहित हैं। बीजेपी मानती है कि मुरुगन की स्थानीय पहचान पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकती है, विशेषकर जब अधिकांश भक्त शैव पंथ के हैं।


धार्मिक या राजनीतिक रणनीति

यह कदम पूरी तरह से राजनीतिक है। बीजेपी का उद्देश्य धार्मिक भक्तों को, चाहे वे राम भक्त हों या मुरुगन भक्त, बीजेपी या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का समर्थक बनाना है। तमिलनाडु में बार-बार चुनावी विफलताओं के बाद पार्टी अब धार्मिक पहचान के माध्यम से अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

तमिल संस्कृति में मुरुगन की भूमिका

मुरुगन केवल एक देवता नहीं हैं; वे तमिलों के देवता या "तमिल कडावल" हैं। वे तमिल साहित्य और संगीत में गहरे रूप से निहित हैं। कुछ कथाओं में मुरुगन ने अपने पिता शिव को 'ॐ' मंत्र सिखाया, जिससे वे शिव से भी उच्च स्थान पर माने जाते हैं। तमिल ग्रंथों और गीतों में मुरुगन का उल्लेख भरा पड़ा है, जिससे वे उत्तर भारतीय देवताओं से कहीं अधिक तमिल लोगों से जुड़ी संस्कृति और भावनाओं से जुड़े हैं।

क्या बीजेपी ने पहले यह रणनीति अपनाई है?

हां, 2020 में बीजेपी ने मुरुगन के भाले (वेल) को केंद्रीय प्रतीक बनाकर "वेल यात्रा" शुरू की थी। हालांकि, यह प्रयास सफल नहीं रहा। पार्टी ने गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों का भी उपयोग हिंदू भावनाओं को जागृत करने के लिए किया, लेकिन तमिलनाडु में यह रणनीतियां प्रभावी नहीं रही। दुर्भाग्यवश, देवताओं ने यहां उनकी राजनीतिक मदद नहीं की।

डीएमके की प्रतिक्रिया

डीएमके ने बीजेपी की रणनीति का मुकाबला करने के लिए मुरुगन सम्मेलन आयोजित किया। तमिलनाडु के हिंदू धार्मिक और चैरिटेबल एंडोमेंट्स (HR-&CE) मंत्री शेखर बाबू ने कहा कि उनकी पार्टी सभी धर्मों को समान मानती है और किसी भी विश्वास का विरोध नहीं करती। उन्होंने यह भी बताया कि डीएमके सरकार ने 2021 से अब तक 2,000 से अधिक मंदिरों का पुनः प्रतिष्ठापन किया है। इससे यह संदेश जाता है कि डीएमके हिंदू विरोधी नहीं है।

बीजेपी की हिंदुत्व अपील

तमिलनाडु में बीजेपी की हिंदुत्व अपील ज्यादा प्रभावी नहीं रही है। पार्टी को एक उत्तर भारतीय, हिंदी भाषी और आर्य जाति की पार्टी के रूप में देखा जाता है, जो तमिलनाडु की बड़ी पिछड़ी और अनुसूचित जाति की आबादी से मेल नहीं खाती। यह सांस्कृतिक असंगति उनकी राजनीतिक पहुंच को प्रभावित कर रही है।

बीजेपी की जाति आधारित राजनीति

उत्तर भारत में बीजेपी जाति आधारित ध्रुवीकरण के माध्यम से सफलता प्राप्त करती है, जैसे उत्तर प्रदेश में वे गैर-यादव OBCs को लक्षित करती हैं। लेकिन तमिलनाडु में जाति का समीकरण अधिक जटिल और सांस्कृतिक रूप से गहरे से जुड़ा हुआ है। अब तक, वही जाति आधारित सूत्र यहां बड़ी सफलता नहीं दिला पाए हैं।

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