
असम चुनाव 2026: भूपेन हजारिका की विरासत पर भाजपा की नजर
भूपेन हजारिका की पहचान एक सांस्कृतिक क्रांतिकारी और जनता के आवाज के रूप में रही है। अब उनकी विरासत को लेकर सियासत तेज हो गई है और यह सवाल उठ रहा है कि क्या किसी जन-कलाकार की विचारधारा को राजनीतिक प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए?
असम में अपनी राजनीतिक पकड़ और सांस्कृतिक स्वीकार्यता को मजबूत करने के प्रयास में भाजपा नीत एनडीए सरकार ने एक नई रणनीति अपनाई है। राज्य सरकार ने पूर्वोत्तर भारत के महापुरुषों और सांस्कृतिक प्रतीकों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश है। इनमें से कई आइकॉन वैचारिक रूप से भाजपा की नीतियों से अलग रहे हैं। इसी कड़ी में अब सरकार ने प्रख्यात गायक, गीतकार और भारत रत्न से सम्मानित डॉ. भूपेन हजारिका को भी शामिल कर लिया है, जिनकी जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में असम सरकार द्वारा महीने भर का समारोह आयोजित किया जा रहा है।
भूपेन दा की विरासत पर नजर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13-14 सितंबर को असम दौरे के दौरान इस जन्मशताब्दी समारोह में शामिल होंगे। लेकिन हजारिका के करीबी और सहयोगी इस बात से आहत हैं कि भाजपा सरकार उनकी विचारधारा को विकृत कर रही है। 10 वर्षों तक हजारिका के साथ काम कर चुके सांस्कृतिक दिग्गज लोकनाथ गोस्वामी ने कहा कि भूपेन हजारिका असमिया अस्मिता के प्रतीक हैं। उनके गीत इंसानियत, समानता और सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं — ये सब वर्तमान सरकार की विचारधारा से मेल नहीं खाते। गोस्वामी ने ‘मनुहे मनुहोर बाबे...’ जैसे गीतों का हवाला देते हुए कहा कि हजारिका के गीतों का भाव मानवता का समर्थन है, न कि धार्मिक ध्रुवीकरण।
गोस्वामी ने हजारिका के प्रसिद्ध गीत ‘जय जय नवजात बांग्लादेश’ का उल्लेख किया, जो उन्होंने 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के समय लिखा था। उन्होंने बताया कि यह गीत मुक्ति वाहिनी और भारतीय सेना को समर्पित था। वहीं, आज की सरकार बांग्लादेश को धार्मिक नजरिए से देखती है, जिससे हजारिका की विचारधारा और सरकार की सोच में टकराव साफ नजर आता है। गौरतलब है कि बांग्लादेश सरकार ने 2012 में उन्हें मरणोपरांत ‘मुक्तिजोद्धा पदक’ से सम्मानित किया था।
क्रांतिकारी सोच के धनी थे भूपेन दा
गोगामुख गान नाट्य वाहिनी से जुड़े बिनॉय कृष्ण तमुली फुकन ने कहा कि हजारिका की विचारधारा बचपन से ही क्रांतिकारी थी। उन्होंने 12-13 वर्ष की उम्र में ही गीत ‘अग्निजुगोर फिरिगोटी म'ई’ लिखा था। उन्हें मार्क्स या लेनिन पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ी थी। उनके अंदर स्वाभाविक रूप से शोषितों और वंचितों के लिए लड़ने की भावना थी।
राजनीति में कदम
1967 में भूपेन हजारिका ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में नवबोइसा विधानसभा सीट से जीत दर्ज की थी। उनके कार्यकाल में रवींद्र भवन, ज्योति चित्रबन फिल्म स्टूडियो और आर्ट गैलरी जैसी कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं अस्तित्व में आईं। हालांकि, 2004 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर गुवाहाटी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और हार गए। लोकनाथ गोस्वामी ने बताया कि बाद में उन्होंने इसे “सबसे बड़ी गलती” बताया। उन्होंने एक असमिया अखबार में लिखा था कि उन्होंने भाजपा में शामिल होकर गलती की और इससे खुद को जल्द ही अलग कर लिया।
भाजपा को उम्मीद
सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा यह समझती है कि भूपेन दा का नाम राजनीतिक रूप से लाभकारी है, भले ही वे भाजपा के टिकट पर कभी चुनाव न जीते हों। लेखक और 'अखोम नागरिक समाज' के अध्यक्ष परेश मलाकर ने कहा कि यह जन्मशताब्दी समारोह चुनावी माहौल बनाने का हिस्सा है। सरकार जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाना चाहती है।
सेवा की भावना
फुकन ने कहा कि भूपेन दा ने राजनीति को सत्ता के लिए नहीं, बल्कि वंचितों की सेवा के लिए अपनाया। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल का अनुभव किया था और मौजूदा सरकार जैसी कट्टरता का हिस्सा नहीं थे। अगर उन्हें सत्ता की भूख होती तो वे बार-बार चुनाव लड़ते। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।