बंगाली अस्मिता को साधने की कोशिश में भाजपा, मोदी की रैली में दिखा नया तेवर
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बंगाली अस्मिता को साधने की कोशिश में भाजपा, मोदी की रैली में दिखा नया तेवर

मोदी की रणनीति ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि भाजपा ‘राम’ से हटकर बंगाली देवी-देवताओं और नेताजी की छवि के सहारे बंगाली जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहती है। हालांकि, सवाल उठता है क्या इस सांस्कृतिक रणनीति से बंगाली वोट बैंक पर असर पड़ेगा?


भविष्य के विधानसभा चुनावों की तैयारियों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दुर्गापुर रैली में भाजपा ने अपनी हिंदुत्व संस्कृति को बंगाली पहचान से जोड़ने की रणनीति अपनाई। रैली में ‘जय माता दुर्गा’ और ‘जय माता काली’ के बाद अब शामिल हुआ ‘जय नेताजी’। यह स्पष्ट रूप से सुभाष चंद्र बोस को संकेत करता है। बोस भले ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे। लेकिन मोदी ने उन्हें बुलाकर बंगाली आत्मगौरव को खुद के पक्ष में मोड़ने की कोशिश की।

बंगाली देवी देवताओं का जाप

भाजपा ने रैली का निमंत्रण पत्र ‘जय श्री राम’ के बजाय ‘जय माता दुर्गा’ और ‘जय माता काली’ के वाक्यांशों से सजाया। मोदी ने भाषण की शुरुआत भी इन स्थानीय आह्वानों से की, जबकि ‘राम’ शब्द का कहीं उल्लेख नहीं हुआ।

नवबदलाव

2021 की अभियान में ‘जय श्री राम’ का उपयोग टीएमसी के खिलाफ सियासत की डोर बना था। मोदी नेताओं द्वारा इस नारे का प्रयोग खास तौर पर ममता बनर्जी को चिढ़ाने के लिए किया गया। लेकिन अब भाजपा ने इस रणनीति से पलटकर बंगाली देवी-देवताओं और नेताजी की जगह को ही अपना लिया है।

मोदी का भव्य स्वागत

प्रधानमंत्री को दुर्गापुर ने रजनीगंधा और कमल की माला पहनाकर स्वागत किया—रजनीगंधा बंगाली संस्कृति में अत्यधिक प्रिय फूल है, जबकि कमल भाजपा का चुनाव चिह्न। साथ ही, उन्हें दो मां दुर्गा की मूर्तियां—एक मिट्टी और एक स्टील भी दी गई।

नेताजी की भूमिका

पूर्व सांसद लोकत्त चट्टोपाध्याय ने मंच पर घोषणा की कि यह स्वागत “बंगाली अस्मिता” का प्रतीक है। मोदी ने भी भाषण में इस बात की पुष्टि की और कहा कि भाजपा बंगाली गौरव को किसी भी साजिश से नहीं टूटने देगी। मोदी ने TMC पर आरोप लगाया कि राज्य में निवेश और उद्योग को भ्रष्टाचार व जातिवाद रोक रहे हैं। मुर्शिदाबाद में झड़पों, सिंडिकेट और अवैध गतिविधियों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि राज्य की आर्थिक वृद्धि TMC की नीतियों की भेंट चढ़ी है।

घुसपैठियों का मुद्दा

मोदी ने कहा कि ग़ैर-कानूनी प्रवासियों को संविधान के अनुसार कठोर कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। उन्हें स्पष्ट संकेत थे कि यह अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा और बंगाली संस्कृति संरक्षण का हिस्सा है।

आलोचना

राजनीतिक विश्लेषक अमल सरकार कहते हैं कि ये घोषणाएं असली समस्याओं का समाधान नहीं है—जिनमें बंगाली प्रवासियों की उत्पीड़न, पहचान जोखिम और टीएमसी की कथित भ्रष्ट आदतें शामिल हैं। उनका मानना है कि बंगाली प्रवासी अब भी ‘बांग्लादेशी’ या ‘रोहिंग्या’ कहे जा रहे हैं—जो वास्तविक पहचान के साथ खिलवाड़ है। विश्लेषकों की राय है कि भाजपा की यह रणनीति “ग्लोबल हिंदुत्व को बंगाली रंग देकर खुद को असली गर्व का प्रतिनिधि दिखाने का शॉर्टकट है।”

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