गुजरात लोकल बॉडी चुनाव: BJP को बुलडोजर राजनीति का खामियाजा, द्वारका में हुई विफल
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गुजरात लोकल बॉडी चुनाव: BJP को बुलडोजर राजनीति का खामियाजा, द्वारका में हुई विफल

आक्रोश से भरे मुस्लिम मछुआरों ने विध्वंस अभियानों में अपने घर और आजीविका खो दी थी. उन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिया. इस क्षेत्र को हमेशा से भगवा का गढ़ माना जाता रहा है.


जो बीजेपी हमेशा गुजरात में अपराजेय दिखती थी, अब अपनी बुलडोज़र राजनीति के परिणाम भुगत रही है. हालांकि, पार्टी ने पिछले सप्ताह गुजरात के लोकल बॉडी चुनावों में 2,178 सीटों में से 1,600 सीटें जीती. लेकिन द्वारका जिले में वह एक भी सीट नहीं जीत सकी. जो परंपरागत रूप से बीजेपी का गढ़ रहा है. द्वारका जिले की कुल 28 सीटों में से कांग्रेस ने 15 सीटें और आम आदमी पार्टी (AAP) ने 13 सीटें जीतीं थी.

इन नतीजों के पीछे की वजह वहां की मुस्लिम मछुआरों की समुदाय की गहरी नाराजगी है. जिन्होंने बीजेपी की विध्वंस अभियान के चलते अपने घर और आजीविका खो दी है. यह समुदाय अक्सर बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति को नजरअंदाज कर उसे बार-बार वोट करता रहा है, इस बार "अब बहुत हो चुका" कहता नजर आया है.

द्वारका का विरोध

द्वारका एक तटीय जिला और सौराष्ट्र क्षेत्र का हिंदू धार्मिक केंद्र है, पारंपरिक रूप से बीजेपी का गढ़ रहा है. सलया, द्वारका का एक छोटा सा कस्बा है, जो अरब समुद्र के किनारे स्थित है. यहां मुस्लिम आबादी 45 प्रतिशत है. जबकि OBC समुदाय के कोली पटेल्स की 10 प्रतिशत हिस्सेदारी है और खारवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है. कांग्रेस और AAP ने यहां मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा था. जिन्होंने जीत हासिल की, भले ही मुस्लिम समुदाय इस तालुका में बहुमत में नहीं था. बीजेपी के उम्मीदवार, जो खारवा समुदाय से थे, बहुमत वाले समुदाय से होने के बावजूद हार गए.

पोरबंदर में भी बीजेपी पिछड़ी

बीजेपी को पोरबंदर और छोटा उदेपुर जिलों में भी भारी नुकसान हुआ. पोरबंदर सौराष्ट्र का एक और तटीय जिला है, में पार्टी की सबसे बड़ी हार पुराने नेता ढेलेबेन ओडेड़ारा की हार रही. 58 वर्षीय ओडेड़ारा, जिन्होंने 1995 से कुटियाना नगरपालिका जीतने का रिकॉर्ड रखा था, अब पहली बार विपक्ष में बैठेंगी. पोरबंदर की 24 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ 10 सीटें मिलीं. जबकि 14 सीटें समाजवादी पार्टी (SP) को गईं. रोचक बात यह है कि समाजवादी पार्टी, जिसने पहली बार लोकल चुनाव लड़ा था, ने छोटा उदेपुर जिले में भी महत्वपूर्ण सफलता हासिल की, जहां उसने 28 सीटों में से 6 सीटें जीतीं. बीजेपी को 8 सीटें मिलीं, कांग्रेस को 1, और BSP को 4 सीटें मिलीं.

विध्वंस अभियान

वह तीन जिले जहां बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, वहां पिछले तीन सालों से बड़े पैमाने पर विध्वंस अभियान चलाए गए थे. साल 2022 में, बीजेपी ने यह मुद्दा उठाया और एक घोषणापत्र जारी किया, जिसमें दावा किया गया कि बीजेपी विशेष समुदाय के अतिक्रमण को हटाने का काम कर रही है, जो कांग्रेस ने कभी नहीं किया, वोट बैंक की राजनीति के कारण. इसके बाद गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने जनवरी 2023 में गुजरात विधानसभा में कहा था कि बीजेपी ने जो वादा किया था, वह नहीं भूली है. मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई का बुलडोज़र आपके लिए आ रहा है.

मुसलमानों को निशाना बनाया गया?

जल्द ही, द्वारका जिले में एक बड़े विध्वंस अभियान की शुरुआत हुई, जो जनवरी 2025 में समाप्त हुआ. 1,200 से अधिक घर गिराए गए और मुस्लिम मछुआरों की नावें और मछली पकड़ने के जाल नष्ट कर दिए गए. 36 इस्लामिक धार्मिक स्थल, जिनमें कई मज़ार, 9 दरगाहें और 3 मस्जिदें शामिल हैं, को भी 2022 से नष्ट किया गया है. इन संरचनाओं में से एक था हज़रत पीर गुंज दरगाह, जो 1,200 साल पुरानी संरक्षित संरचना थी और 1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षित थी.

बीजेपी को क्यों वोट दें?

इब्राहीम पटेलिया, एक मछुआरा, जिन्हें विस्थापित किया गया, ने 'द फेडरल' से कहा कि हम द्वारका में रहते थे और कई चुनावों में बीजेपी को वोट दिया था. इसके बावजूद हमारे घर तोड़े गए और हमारा परिवार सड़क पर आ गया. हमारी नावें और मछली पकड़ने के जाल भी नष्ट कर दिए गए. हम पिछले दो सालों से कठिनाई में हैं और दिन में ₹150 कमाने के लिए छोटे-मोटे काम कर रहे हैं. 2023 के चुनाव में हमारे नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए थे. एक साल की मेहनत के बाद, हम अपने दस्तावेज वापस पा सके. अब हम बीजेपी को क्यों वोट दें?

दूसरा चरण

मार्च 2022 में बीजेपी सरकार ने पोरबंदर में अपने विध्वंस अभियान के दूसरे चरण की शुरुआत की. एक पूरे गांव – गोसाबरा – को जो करीब 300 मुस्लिम मछुआरों का घर था, एक रात में नष्ट कर दिया गया. उस साल मई में, मछुआरों और उनके परिवारों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया और समुदाय के वकील को "अदालत का समय बर्बाद करने" के लिए जुर्माना लगाया.

बीजेपी के खिलाफ नाराजगी

गुजरात मछुआरा संघ के पूर्व अध्यक्ष जीवन जंगी ने 'द फेडरल' से कहा कि 2022 से विध्वंस अभियान शुरू होने के बाद, हमने बहुत से मुस्लिम श्रमिकों को खो दिया है. हम गुजरात में मछली पकड़ने की एक पुरानी प्रणाली का पालन करते हैं. पीढ़ियों से, खारवाओं को सबसे अच्छे तंदेल (जो ट्रॉलर में मछली पकड़ते हैं) माना जाता है, जबकि कोली सहायक होते हैं और अधिकांश तकनीशियन मुस्लिम समुदाय से आते हैं.

गुजरात में मछुआरा समुदाय तीन उप-समुदायों में विभाजित है – मुसलमान, खारवा और कोली. जबकि कोली समुदाय, जो छोटा है, मुख्य रूप से ताजे पानी में मछली पकड़ने का काम करता है, खारवा राज्य में प्रमुख मछली पकड़ने वाला समुदाय है. मुस्लिम मछुआरे, जो आमतौर पर छोटे नावों के मालिक होते हैं, शैलो वॉटर फिशिंग, मछली धोने और सुखाने का काम करते हैं.

आजीविका का नुकसान

जंगी ने कहा कि क्योंकि मुसलमानों को विस्थापित किया गया, उन्हें उनके उपकरण और नावें भी खोनी पड़ीं. कोई तकनीशियन जो उपकरण बॉक्स न रखता हो, उसे कौन काम पर रखेगा? मेरी अपनी ट्रॉलर में, मैं सहायक के साथ काम कर रहा हूं. लेकिन अगर समुद्र के बीच में ट्रॉलर के इंजन में कोई बड़ी खराबी आई तो ये लोग काम के नहीं होंगे. कुछ लोग उनके लौटने का इंतजार कर रहे थे. लेकिन पैसे और घर के बिना, उन्होंने मछली पकड़ने की बजाय छोटे-मोटे काम करना शुरू कर दिया. समुदाय की महिलाएं, जो मछली धोने और सुखाने का काम करती थीं, भी अब काम पर नहीं लौटीं. यह स्थिति सौराष्ट्र में मछली पकड़ने के पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर रही है और इस पूरी स्थिति ने बीजेपी के खिलाफ भारी नाराजगी पैदा की है.

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