
ऑपरेशन सिंदूर पोस्ट पर छात्रा को जेल भेजने पर बॉम्बे हाईकोर्ट की फटकार
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और पुणे कॉलेज को फटकार लगाते हुए कहा कि उस छात्रा को अपराधी की तरह क्यों ट्रीट कर रहे हैं?'
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे की सिंहगड एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग की द्वितीय वर्ष की आईटी छात्रा को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है। उस छात्रा ने सोशल मीडिया पर 'ऑपरेशन सिंदूर' को लेकर एक पोस्ट किया था, जिसके बाद कॉलेज ने उसे निष्कासित कर दिया और पुलिस ने गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया।
छात्रा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उसने निष्कासन रद्द करने और परीक्षा में बैठने की अनुमति की मांग की। मंगलवार को सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की अवकाश पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति गौरी वी. गोडसे और सोमशेखर सुंदरासन शामिल थे, ने कहा कि छात्रा को परीक्षा देने के लिए जेल से रिहा किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा, "उसे पहले ही उसके पोस्ट के लिए परिणाम भुगतने पड़े हैं, और उसने खेद व्यक्त किया है। अब उसे सुधार की ज़रूरत है, न कि दंड की। आप उसे अपराधी की तरह क्यों ट्रीट कर रहे हैं?"
मामला क्या है?
9 मई को पुणे के कोंढवा पुलिस स्टेशन में छात्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद कॉलेज ने उसे निष्कासित किया और उसी दिन उसे गिरफ्तार कर येरवडा जेल भेज दिया गया।
छात्रा ने बॉम्बे हाईकोर्ट से गुहार लगाई कि निष्कासन को रद्द किया जाए और उसे 24 मई से शुरू हुई सेमेस्टर परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए।
कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति गोडसे ने कॉलेज के वकील से पूछा, "यह किस तरह का व्यवहार है? कोई कुछ कहता है और आप उसकी ज़िंदगी बर्बाद करना चाहते हैं? आपने उससे कोई स्पष्टीकरण माँगा क्या? कार्रवाई करनी है तो कीजिए, पर परीक्षा में बैठने से कैसे रोक सकते हैं?"
कॉलेज के वकील ने जब "राष्ट्रीय हित" का हवाला दिया, तो कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की, "क्या राष्ट्रीय हित? यह उम्र होती है गलती करने और उसे सुधारने की। उसने अपनी गलती मानी और पोस्ट हटा दिया। वह पहले ही भुगत चुकी है। अब आपको उसे सुधारना चाहिए, सहायता करनी चाहिए या आप उसे सचमुच एक अपराधी बनाना चाहते हैं?"
कॉलेज का पक्ष
कॉलेज की निष्कासन चिट्ठी में कहा गया, "संस्थान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करता है, लेकिन यह अपेक्षा करता है कि छात्र अपने अधिकारों का प्रयोग जिम्मेदारी से करें। छात्रा के सोशल मीडिया पोस्ट कॉलेज की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकते हैं और परिसर या समाज में असामंजस्य फैला सकते हैं।"
छात्रा की ओर से अधिवक्ता फरहाना शाह ने याचिका दायर कर कहा कि कॉलेज से निष्कासन मनमाना था और उसे कोई शोकॉज़ नोटिस नहीं दिया गया। इस मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(a) और 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।