
ADANI PROJECT के लिए 3,500 बीघा जमीन खाली, 1,600 परिवार हुए बेघर
बिलासीपारा में चल रही यह बेदखली कार्रवाई असम के विकास और मानवाधिकारों के बीच टकराव को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ले आई है। जहां एक ओर सरकार इसे विकास की दिशा में कदम बता रही है, वहीं दूसरी ओर हजारों बेघर लोग अभी भी जवाब और न्याय की तलाश में हैं।
असम के धुबरी ज़िले में मंगलवार सुबह से चली बुलडोज़र कार्रवाई ने 1,600 से ज्यादा परिवारों को बेघर कर दिया। ज़्यादातर प्रभावित अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से हैं। प्रशासन के अनुसार, यह ज़मीन अडानी समूह की प्रस्तावित थर्मल पावर परियोजना के लिए खाली कराई जा रही है। बेदखली अभियान संतोषपुर, चारुबखरा और चिरकुटा पार्ट 1 और 2 जैसे राजस्व गांवों में चलाया गया, जहां करीब 3,500 बीघा 'खास' जमीन खाली कराई गई। भारी पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती में यह कार्रवाई अंजाम दी गई। प्रशासन का दावा है कि कार्रवाई से पहले अधिकारिक नोटिस जारी किए गए थे और करीब 95% परिवारों ने पहले ही क्षेत्र खाली कर दिया था।
मुआवजे का दावा और जमीनी हकीकत
अतिरिक्त जिला आयुक्त संतना बोरा ने बताया कि हर परिवार को पुनर्वास के लिए ₹50,000 की राशि देने की पेशकश की गई थी। लेकिन प्रभावित लोगों और विपक्षी नेताओं का आरोप है कि बहुत कम परिवारों को ही मुआवजा मिला, ज़्यादातर लोग बिना किसी सहायता के छोड़ दिए गए।
35,000 नौकरियों का वादा
यह ज़मीन गौरांग नदी के पास है और सड़क तथा रेल से अच्छी तरह जुड़ी हुई है। सरकार का दावा है कि यहां बनने वाला थर्मल पावर प्लांट निर्माण के दौरान 25,000 और स्थायी रूप से 10,000 नौकरियां देगा। पिछले महीने अडानी समूह के निदेशक जीत अडानी ने बिलासीपारा और कोकराझार के बासबारी क्षेत्रों का दौरा किया था। यह परियोजना राज्य में ₹50,000 करोड़ के निवेश का हिस्सा है, जिसकी घोषणा फरवरी में हुए Advantage Assam 2.0 समिट में की गई थी।
अफरा-तफरी और विरोध
हालांकि, पहले से दिए गए नोटिस के बावजूद मौके पर भारी अफरा-तफरी देखी गई। कई परिवारों ने अपने घर खुद ही तोड़ दिए थे, जबकि कुछ लोग आखिरी समय तक अपने बच्चों और बुजुर्गों के साथ घरों से चिपके रहे। राइजर दल के नेता और शिवसागर विधायक अखिल गोगोई जब घटनास्थल पर पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें रोका, जिसके बाद झड़प और प्रदर्शन शुरू हो गया। पुलिस की लाठीचार्ज में कई प्रदर्शनकारी घायल हुए और दो जेसीबी मशीनें क्षतिग्रस्त हो गईं। गोगोई ने प्रशासन पर मानवाधिकारों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए बेघर हुए लोगों के पुनर्वास के लिए कम से कम 500 बीघा जमीन देने की मांग की। साथ ही उन्होंने धार्मिक स्थलों, कब्रिस्तानों और स्कूलों को न छूने की अपील की।
मुख्यमंत्री का बयान
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि सरकार सिर्फ अवैध बांग्लादेशी बस्तियों को हटाने का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि अगर किसी को 350 बांग्लादेशियों को हटाने से दिक्कत है तो उसे सहना पड़ेगा। सरमा ने यह भी संकेत दिया कि आने वाले समय में धुबरी के चापर और अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की बेदखली अभियान चलाए जाएंगे।
विपक्ष और मानवाधिकार संगठनों का विरोध
AIUDF अध्यक्ष और पूर्व सांसद मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने इस कार्रवाई को "नस्लभेदी और अमानवीय" करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर कॉरपोरेट हितों को फायदा पहुंचा रही है। इन लोगों के पास ज़मीन के कागज़, NRC और वोटर लिस्ट में नाम हैं। फिर भी उन्हें बिना उचित पुनर्वास के जबरन हटाया जा रहा है।
कोर्ट आदेश की अवहेलना
AIUDF विधायक शमसुल हुड्डा ने आरोप लगाया कि यह विकास के नाम पर एक खास समुदाय को निशाना बनाने की साजिश है। उन्होंने कहा कि गुवाहाटी हाई कोर्ट का आदेश होने के बावजूद सरकार ने उसका पालन नहीं किया। ड्रोन सर्वे भी हुआ था, लेकिन जिन लोगों के पास वैध दस्तावेज़ हैं, उन्हें भी हटा दिया गया। हुड्डा ने कहा कि ₹50,000 का मुआवजा केवल कुछ परिवारों को मिला, बाकी बिना किसी सहारे के सड़क पर हैं।
विकास की कीमत इंसानियत नहीं
बिलासीपारा में चल रही यह बेदखली कार्रवाई असम के विकास और मानवाधिकारों के बीच टकराव को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ले आई है। जहां एक ओर सरकार इसे विकास की दिशा में कदम बता रही है, वहीं दूसरी ओर हजारों बेघर लोग अभी भी जवाब और न्याय की तलाश में हैं।